स्कूल में साफ़-सफ़ाई और स्वच्छता सुविधाएं होने से माता-पिता को अपने बच्चों को नामांकित करने की प्रेरणा मिलती है। इस संदर्भ में, विद्यालयों में जल, सफाई एवं स्वच्छता (वॉश) सेवाएं बेहद महत्वपूर्ण हैं क्यूंकि वे बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और समग्र विकास में सकारात्मक योगदान देते हैं। यूनिसेफ द्वारा फ़िया (PHIA – पार्टनरिंग होप इनटू ऐक्शन) फाउंडेशन और बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के सहयोग से पूर्णिया और सीतामढ़ी जिलों के 20-20 स्कूलों में बेहतर वॉश सेवाएं सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम किया जा रहा है ताकि उन्हें अनुकरणीय मॉडल के रूप में विकसित किया जा सके।
इसके तहत एक समग्र दृष्टिकोण अपनाते हुए स्कूलों में सक्षम वातावरण बनाने हेतु ढांचागत बदलाव समेत व्यवहार परिवर्तन संबंधी गतिविधियां भी शामिल हैं। स्कूलों में शौचालयों की मरम्मत और पुनःसंयोजन (रेट्रोफिटिंग), पेयजल की सुविधा, हैंडवाशिंग स्टेशन, ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली सहित बुनियादी वॉश ढांचा तैयार किया गया है। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय स्थिरता (सीसीईएस) के महत्व को ध्यान में रखते हुए, इन स्कूलों में रेनवॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, ग्रे वॉटर (शौचालयों को छोड़कर पानी के विभिन्न घरेलू उपयोगों के कारण उत्पन्न होने वाला गन्दला जल) मैनेजमेंट प्रणालियों के साथ-साथ ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों पर जोर दिया गया है। स्कूलों में वॉश और सीसीईएस से जुड़ी गतिविधियों को लेकर शिक्षकों और बच्चों सहित बाल संसद एवं मीना मंच के सदस्यों को सक्षम बनाया गया है।
पूर्णिया जिले के कसबा ब्लॉक में स्थित आदर्श रामानंद मध्य विद्यालय, गढ़बनैली एक ऐसा स्कूल है जो हैंडवाशिंग स्टेशनों, लड़के-लड़कियों के लिए पृथक शौचालय, दिव्यांग अनुकूल शौचालय, अपशिष्ट प्रबंधन इकाई और छत पर वर्षा जल संचयन प्रणाली जैसी वॉश सेवाओं से भलीभांति सुसज्जित है।
स्कूल के प्रधानाध्यापक जलज लोचन ने कहा कि यूनिसेफ और फ़िया फाउंडेशन के सहयोग से विद्यालय के माहौल में सकारात्मक बदलाव आया है। पहले शौचालयों की ख़राब हालत और क्षतिग्रस्त होने के कारण बच्चे, विशेषकर लड़कियां शौचालयों का उपयोग करने से हिचकिचाती थीं। इसलिए, मौजूदा शौचालयों को रेट्रोफिट कर बच्चों के अनुकूल बनाया गया है। इसके अलावा, विशेष जरूरतों वाले बच्चों के लिए भी एक शौचालय का निर्माण किया गया है। नियमित रूप से जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ-साथ सभी बच्चों के इस्तेमाल के लिए मल्टी-टैप हैंडवाशिंग स्टेशन की व्यवस्था की गई है।
उन्होंने आगे कहा कि साबुन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के अलावा, बच्चों के बीच साबुन से हाथ धोने की प्रथा को बढ़ावा देने हेतु हैंडवाशिंग स्टेशन की दीवार पर हैंडवाशिंग के 6 चरणों को चित्रित किया गया है। पेयजल की व्यवस्था में सुधार, सोख्ता गड्ढों के निर्माण, वर्षा जल संचयन प्रणाली, प्रत्येक कक्षा के लिए एक कूड़ेदान सहित स्कूल परिसर के अलग-अलग कोनों में कूड़ेदानों की व्यवस्था जैसी नई सुविधाओं को बच्चों के साथ-साथ माता-पिता व समुदाय द्वारा ख़ूब सराहा गया है।
बच्चों में बढ़ी है जागरूकता
आदर्श रामानन्द मध्य विद्यालय के आठवीं के छात्र ऋषभ कुमार अपने विद्यालय में हुए ढांचागत बदलावों से बहुत ख़ुश हैं। बाल संसद के अन्य सदस्यों के साथ ऋषभ अपने सहपाठियों को साबुन से हाथ धोने के महत्व के बारे में नियमित रूप से जागरूक करते हैं।
बाल संसद के साथ-साथ मीना मंच भी बच्चों में जागरूकता पैदा करने में सक्रिय भूमिका निभाता है। सातवीं कक्षा की छात्रा एवं मीना मंच की सदस्य सोनी कुमारी ने कहा कि इस मुद्दे पर नियमित चर्चा एवं हमारे द्वारा निरंतर निगरानी की बदौलत अधिकांश छात्र-छात्राएं हाथ धोने की उपयुक्त प्रथाओं के बारे में भलीभांति जागरूक हुए हैं। हैंडवाशिंग स्टेशन के इस्तेमाल के साथ हम यह भी सुनिश्चित करते हैं कि नलों को कोई नुकसान न पहुंचे।
उपस्थिति में गुणात्मक सुधार
आमतौर पर, स्कूलों में स्वच्छता को समग्र स्कूल उपस्थिति का निर्धारक माना जाता है। हेडमास्टर जलज लोचन ने बताया कि वॉश सेवाओं के बेहतर प्रावधान के कारण कम बच्चे बीमार पड़ रहे हैं और विशेष कर लड़कियों को शौचालय का उपयोग करने में कोई झिझक नहीं होती। परिणामस्वरूप, बच्चों की उपस्थिति में सुधार देखने को मिला है।
आदर्श रामानंद मध्य विद्यालय की सातवीं की छात्रा श्रेया सुहानी ने कहा कि वह माहवारी के दौरान ख़ास तौर पर शौचालय के इस्तेमाल से परहेज़ करती थी। लेकिन अब नवीनीकृत शौचालयों में सैनिटरी पैड के प्रावधान और उपयोग के बाद उन्हें निपटाने के लिए पैड भस्मक (इंसीनरेटर) की स्थापना होने के बाद उसे अब घर जाने की आवश्यकता नहीं होती है। इससे हम छात्राओं को बड़ी राहत मिली है और माहवारी की वजह से हमें हर महीने 2-3 दिनों की छुट्टी नहीं लेनी पड़ती।
परियोजना के अंतर्गत शामिल अन्य स्कूलों ने भी बेहतर उपस्थिति की दिशा में सकारात्मक रुझान दिखाया है।
बच्चों के व्यवहार में बदलाव
सभी 40 स्कूलों में वॉश प्रथाओं के प्रति बच्चों के व्यवहार में गुणात्मक परिवर्तन देखा गया है। कसबा ब्लॉक अंतर्गत आदर्श मध्य विद्यालय, दोगच्छी के प्रधानाध्यापक राजेश पासवान ने कहा कि पर्याप्त पानी की व्यवस्था और स्वच्छता सुविधाओं के संयोजन के अलावा छात्रों में स्वामित्व की भावना पैदा करने के परिणामस्वरूप सही व्यवहार प्रथाओं को बल मिला है। जहां नोडल शिक्षकों ने बच्चों के बीच वॉश और मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन संबंधी व्यवहार को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, वहीं बाल संसद और मीना मंच द्वारा नियमित संवाद और निगरानी के ज़रिए बच्चों में व्यवहार परिवर्तन और सुदृढ़ हुआ है।
इसी ब्लॉक के मध्य विद्यालय मल्हरिया के प्रधानाध्यापक विद्या प्रसाद सिंह ने कहा कि हमने पंचायत सदस्यों सहित समुदाय के लोगों के साथ नियमित बैठकें आयोजित करके समुदाय की भागीदारी भी सुनिश्चित की है। हम समुदाय को काफी हद तक यह विश्वास दिलाने में सफल रहे हैं कि जल, सफाई एवं स्वच्छता से जुड़े ये उपाय बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य, सीखने-समझने एवं समग्र विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।
चेंज एजेंट की भूमिका में बच्चे
यूनिसेफ बिहार के वॉश अधिकारी, सुधाकर रेड्डी ने कहा कि चूंकि बच्चे स्कूलों में अच्छा-ख़ासा समय बिताते हैं, इसलिए यह अच्छे वॉश व्यवहारों को सीखने, उनका अभ्यास करने और विकसित करने के लिए सबसे अच्छी जगह है। इसके अलावा, बच्चे इन संदेशों को अपने परिवार और समुदाय के सदस्यों तक पहुंचाकर उनके व्यवहार को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में, वे चेंज एजेंट के रूप में कार्य कर सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि बच्चों के लिए एक सुरक्षित और स्वच्छ वातावरण का निर्माण करने के लिए स्कूलों में बेहतर वॉश सेवाएं सुनिश्चित करने हेतु यूनिसेफ द्वारा सरकार को आवश्यक तकनीकी सहयोग प्रदान किया जा रहा है। वर्तमान पहल बिहार स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार के तहत विकसित राज्य विशिष्ट वॉश स्कूल बेंचमार्किंग प्रणाली के मद्देनज़र स्कूलों को पूर्णरूपेण वॉश अनुरूप बनाने की दिशा में योगदान देगी।