आलोक धन्वा के 75 वर्ष वें में प्रवेश के अवसर पर प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ और जन संस्कृति मंच का हुआ संयुक्त आयोजन
पटना, 2 जुलाई । प्रख्यात कवि आलोकधन्वा की 75 वें वर्ष में प्रवेश के अवसर पर प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ और जन संस्कृति मंच द्वारा संयुक्त रूप से कार्यक्रम आयोजित किया गया। आलोकधन्वा इसे संबंधित संस्मरण, बातचीत का लम्बा दौर चला। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शहर के कवि, कहानीकार, साहित्यकार, रँगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता सहित समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लोग मौजूद थे। आगत अतिथियों का स्वागत नागरिक समाज की ओर से पुलिस पदाधिकारी सुशील कुमार ने किया।
पटना विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष तरुण कुमार ने कहा ” आज जो लोग इस आयोजन में आये हैं वे खुद ब खुद आये हैं। ऐसे चमक हाल में किसी आयोजन में नहीं देखी गई थी। जब हिंदी सिनेमा में यन्ग्री यंग मैन का अभ्युदय हुआ उसी वक्त आलोकधन्वा हिंदी कविता में आते हैं । मैं आलोकधन्वा से 1977 में तब मिला था जब मैं पटना कॉलेज में मिंटू हॉस्टल में सांस्कृतिक सचिव था और काव्य पाठ के लिए आलोकधन्वा से मिला था। 1970 के दशक में नई कविता का जो आविर्भाव हुआ उसके तेजोमय धूमकेतु बने आलोकधन्वा। राजकमल चौधरी के बाद बिहार का सबसे अधिक नाम रौशन किया। जहां आग व पानी का खेल चलता है उस विरुद्धों का सामंजस्य आलोकधन्वा ने साधा है। बिना गहरी करुणा के आलोकधन्वा जैसे एकविता नहीं लिखी जा सकती। हिंदी कविता को दाखिल-खारिज की तरह नहींबदेखा जा सकता। आलोकधन्वा विभिन्न भाव भंगिमाओं व काल खंडों के कवि हैं। महिला व पुरूष दोनों इन्हें आकृष्ट करते हैं। आलोकधन्वा के कविता इतिहास के सबसे घिनौने राज खोलने वाली कविता है। ”
राजनेता शिवानन्द तिवारी ने आलोकधन्वा के साथ अपने संस्मरणों को साझा करते हुए कहा ” बनारस में मैं आलोक जी से मिला। भिखना पहाड़ी के उनके फ्लैट में कई बार मिला। 1970-71 में मैं मुंगेर गया। आलोकधन्वा ने ही जाबिर हुसैन से मिलवाया था। तब मैं समाजवादी युवजन सभा मे था।”
वबुजुर्ग कवि श्री राम तिवारी ने कहा ”
आलोकधन्वा के काव्य जीवन की शुरुआत आरा से हुई। आरा से शुरू उनका सफर शुरू हुआ है।”
कहानीकार संतोष दीक्षित ने कहा ” आलोकधन्वा हिंदी कविता के किंवदन्ती पुरुष हैं। जब भी बाहर किसी शहर में जाते हैं तो लोग पूछते हैं कि आलोकधन्वा कैसे हैं?लोग इनका ख्याल रखने के लिए कहते हैं। हमलोगों ने काफी कुछ सीखा है इनके व्यक्तित्व से। कविताओँ की सबसे बड़ी बात है कि कठिन शब्द नहीं रहा करता है। भाव के कवि हैं। कवि का वितान आपको खींच के दूसरी दुनिया मे न पहुँचा देता है। कहानीकारों को वैसे कविता पंक्ति याद नहीं रहती। लेकिन मेरी कहानी, उपन्यास के लिए उनकी स्मृतियाँ धरोहर का काम करता है।”
जसम के सुधीर सुमन ने कहा ” आलोक जी ने हमारे अवचेतन में जगह बना ली है। सत्तर के दशक के जिन लोगों ने हमारी चेतना में जगह बनाई उनमें आलोक धन्वा रहे हैं। आलोक जी रिक्शे से आते थे उनसे सहज ही मिलना जुलना होता था। उनसे मिलने के सुमधुर यादें हैं। आलोक जी से ऐसी अभिन्नता है कि उनसे असहमति जाहिर करते हैं। उनकी कविताओँ में डूबी हुई है। ”
पूर्णिया से आईं नूतन आनन्द ने कहा ” आलोकधन्वा जी रचनाओं गोली दागों पोस्टर, जनता का आदमी कविताओं से परिचित थी लेकिन इस बार प्रलेस का अमृतसर में जालियांवाला बाग में उनसे नजदीक होने का मौका मिला। उनका मोबाइल गम हो गया।मैंने देखा कि इन्हें खुद से अधिक दूसरों को चिंता अधिक थी। जब हम आज का दशक देखते हैं तो आज के मुकाबले सत्तर का दशक अधिक क्रांतिकारी था।”
चर्चित शायर संजय कुमार कुंदन ने कहा ” आलोकधन्वा की आत्मा हमेशा जवान रहती है। जो ये अंदर हैं वही बाहर हैं। आलोकधन्वा ने बुढापा और बीमारी दोनों को ओढ़ रखा है। आलोकधन्वा जैसा सरलतम व्यतित्व बनना बेहद कठिनतम काम है।”
मुजफ्फरपुर से आये रमेश ऋतम्भर ने कहा ” दुनिया का हर महान आदमी मासूम होता है। आलोकधन्वा के अंदर मासूम, छल-कपट को धता बताने वाले व्यक्ति है। सारी बौद्धिकता और पीढ़ियों के अंतराल को खत्म करते हैं। ये पीढ़ियों के कवि है। पांच- सात पीढ़ियां जो पटना शहर में जवान हुई वह उनके सामने खड़ी हुई है। ऐसा कवि व एक्टीविस्ट बहुत कम होता है। इन्होंने पोस्टर साटे हैं सुंदर समाज बनाने के लिए पुरी जिन्दगी देने वाला पूर्णकालिक कवि हैं आलोकधन्वा। कविता के अलावा दूसरा काम नहीं किया है आलोकधन्वा ने।”
माकपा नेता अरुण मिश्रा ने कहा ” आलोकधन्वा आगे आने वाले वक्त में सृजनशील बने रहें। जिस ढ़ंग का सृजनशील दौर है उसमें हमें जनता का आदमी जैसी कविताएं और सुनने को मिलेगी। बाबा नागार्जुन के बाद हमलोग आलोकधन्वा के पास पहुंचता रहा। इनकी कविताएं सम्मोहित करने वाली थीं। इनके पढ़ने का अंदाज़ भी हमें सम्मोहित करता है। इनके अंदर एक छोटा बच्चा है जो हमेशा उछलता-कूदता रहता है। ”
संस्कृतिकर्मी अनिल अंशुमन ने कहा ” आलोकधन्वा ने नुक्कड़ों पर भाषण दिए हैं और कविता पाठ किये हैं। प्रेमचंद रंगशाला मुक्ति आन्दोलन में जो मुहिम चला उसमें आलोकधन्वा सिर्फ शब्दों के ही नहीं सड़कों के भी कवि है। जैसे 1857 के प्रतीक थे बहादुरशाह जफर उसी तरह आज के जद्दोजहद भरे समय के कवि हैं आलोकधन्वा ।”
विनोद कुमार वीनू ने कहा ” मैंने आलोक जी की जितनी तस्वीरें खींचीं हैं उस सबमें स्त्रियां रहा करती हैं। उनके व्यक्तित्व में एक बेबाकीपन रहा करता है। उनके साथ खूबसूरत यादें जुड़ी हुई हैं। ”
कथाकार रत्नेश्वर के अनुसार ” आलोकधन्वा योगी की तरह कविता पढ़ते हैं। इनकी एक एक तस्वीर में देखें तो ये नायक बनने लायक हैं। जब कविता पढ़ते हैं। पंच तत्वों में जो धड़कन हुआ करती है उसे महसूस कर सकूं । ”
सुनीता गुप्ता ने अपने संबोधन में कहा ” पटना की अनजान धरती पर जब मैं आई टोन्सबसे पहले आलोकधन्वा से मुलाकात हुई। इनकी तरल आत्मीयता से उनसे मुलाकात हुई। उनके अंदर जो स्त्री मन है, कोमलता है वह बेहद आकर्षित करता है। वे संघर्ष के कवि हैं उन स्त्रियों के निकट जाते है जो संघर्ष करती रही हैं। जो हर संकट के काम मे काम आती हैं।”
सभा को गया के आये कवि सत्येंद्र कुमार, भाकपा-माले के नेता के डी यादव , समता राय, विनोद कुमार वीनू, सौम्या सुमन, सीटू तिवारी, घमंडी राम, राष्ट्रीय सहारा के पूर्व सम्पादक चंदन कुमार, नीलांशु रंजन, समारोह का संचालन युवा रँगकर्मी जयप्रकाश ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन राजेश कमल ने किया ।
इस मौके ओर आलोकधन्वा ने जे.एन.यू , कोलकाता सहित कई शहरों अपनी पुरानी स्मृतियों को याद करते हुए कहा ” यह गांधी और नेहरू का देश है, मौलाना आज़ाद का देश है और ऐसी स्थिति में कोई कविता लिखता है तो अपने देश के इतिहास से, दुनिया में अपने संघर्षों के इतिहास से परिचित होना पड़ेगा। ” आलोकधन्वा ने फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के साथ अपनी चर्चित कविता ‘ भागी हुई लड़कियां’ का भी पाठ किया।
समारोह की अध्यक्षता सामाजिक कार्यकर्ता निवेदिता झा ने किया।
कार्यक्रम स्थल पर आलोकधन्वा की पिछले पांच दशकों की तस्वीरों का एक कोलाज बनाया गया था जिसमें विभिन्न साहित्याकारों , रंगकर्मियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ तस्वीरें थीं । तस्वीरों का कोलाज विशेष आकर्षण रहा।
आलोकधन्वा के 75 वें वर्ष के अवसर पर हुए कार्यक्रम बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे । प्रमुख लोगों में थे श्रीकांत, कुमार मुकुल, गालिब खान, जया, नीतीन चैनपुरी, ओसामा खान, रुनझुन, श्रीधर करूणानिधि , मुकेश प्रत्यूष, समीर परिमल, योगेश प्रताप शेखर, विनीत राय, गौतम गुलाल, बी.एन विश्वकर्मा, देवानन्द, छाया, कुमार वरुण, कुमार रजत, अभिषेक, रमेश सिंह, सुमन्त शरण, अनीश अंकुर, सोनी कुमार, मंजुल कुमार दास, मुन्ना सिंह, विभा रानी श्रीवास्तव, सुनील सिंह, अजय कुमार , अरुण सिंह, गोपाल शर्मा, कुलभूषण गोपाल, अर्चना, नवाब आलम, आशुतोष कुमार पांडे, कृष्ण समृद्ध आदि मौजूद थे।