वैश्विक स्तर पर आज कुछ देशों के बीच प्रत्यक्ष युद्ध चल रहा है (रूस – यूक्रेन के बीच एवं इजराईल – हम्मास के बीच) तो कुछ देशों की बीच शीत युद्ध की स्थिति निर्मित होती दिखाई दे रहे है (ईरान – इजराईल के बीच, रूस – यूरोपीयन देशों के बीच, अमेरिका – हूतियों के बीच, अमेरिका – कुछ अफ्रीकी देशों के बीच) तथा कुछ देशों के बीच व्यापार युद्ध छिड़ता हुआ दिखाई दे रहा है (अमेरिका – चीन, अमेरिका – मेक्सिको, अमेरिका – कनाडा, आदि के बीच)। कुल मिलाकर आज वैश्विक स्तर पर स्पष्टत: शांति का अभाव दिखाई दे रहा है। वैश्विक स्तर पर इन विपरीत परिस्थितियों के बीच सनातनी हिंदुओं द्वारा भारत के प्रयागराज में एक महाकुम्भ का आयोजन शांतिपूर्वक एवं अति सफलता से सम्पन्न किया जाता है। इस महाकुम्भ में पूरे विश्व से सनातनी हिंदू एवं अन्य धर्मों के अनुयायी 66 करोड़ से अधिक की संख्या में पवित्र त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाते हैं। इन 66 करोड़ धर्मावलम्बियों के बीच किसी भी प्रकार का असहयोग एवं किसी भी स्तर पर असहमति नहीं दिखाई देती है। जाति, पंथ, मत, प्रांत, भाषा आदि के नाम पर किसी भी प्रकार का विरोध दिखाई नहीं दिया, बस सभी धर्मावलंबी अपने आप को केवल और केवल सनातनी हिंदू कहते हुए दिखाई दिए हैं। ऐसा आभास हो रहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा इस संदर्भ में पिछले 100 वर्षों से किए जा रहे प्रयास अब सफल होते दिखाई दे रहे हैं।

अब लगभग पूरा विश्व ही यह मानने लगा है कि वैश्विक स्तर पर लगातार पनप रही अशांति का हल केवल भारतीय सनातन संस्कृति के संस्कारों के अनुपालन से ही सम्भव है। इसी संदर्भ में दिनांक 21 मार्च 2025 से 23 मार्च 2025 तक बंगलूरू में सम्पन्न अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने “विश्व शांति और समृद्धि के लिए समरस और संगठित हिंदू समाज का निर्माण” विषय पर एक प्रस्ताव पास किया है। इस प्रस्ताव में यह कहा गया है कि “अनंत काल से ही हिंदू समाज एक प्रदीर्घ और अविस्मरणीय यात्रा में साधनारत रहा है, जिसका उद्देश्य मानव एकता और विश्व कल्याण है। तेजस्वी मातृशक्ति सहित संतो, धर्माचार्यों तथा महापुरुषों के आशीर्वाद एवं कर्तृत्व के कारण हमारा राष्ट्र कई प्रकार के उतार चढ़ावों के उपरांत भी निरंतर आगे बढ़ रहा है।” अर्थात सनातन संस्कृति के संस्कारों की आज के संदर्भ में परख करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह संस्कार हिंदू देवी देवताओं द्वारा समाज के भले के लिए ही लागू किये गए हैं और हजारों वर्षों से भारतीय हिंदू समाज इनका सफलतापूर्वक अनुसरण करता आया है। समय की कसौटी पर सदैव ही यह खरे उतरे हैं। अतः आज भी सनातन हिंदू संस्कारों की प्रासंगिकता बनी हुई हैं। इन्हीं संस्कारों के चलते भारत सदैव से ही “वसुधैव कुटुम्बकम” एवं “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” की भावना को आत्मसात करता आया है। भारत के लिए तो पूरा विश्व ही अपना परिवार है, फिर क्यों एक दूसरे से झगड़ा करना। बल्कि, भारत में तो विश्व के कोने कोने से अन्य धर्मावलंबी भी आकर आसानी से रच बस गए हैं एवं सनातन संस्कृति में समा गए हैं। जैसे, कुषाण, शक, हूण, पारसी, आदि। पूरे विश्व में भारत ही एक ऐसा राष्ट्र है जहां मुस्लिम अनुयायीयों के समस्त फिर्के पाए जाते हैं अन्यथा मुस्लिम देशों में भी समस्त फिर्के शायद ही पाए जाते हों। उक्त प्रस्ताव में इस संदर्भ में आगे कहा गया है कि “अपनी प्राचीन संस्कृति और समृद्ध परम्पराओं के चलते सौहार्दपूर्ण विश्व का निर्माण करने के लिए भारत के पास अनुभव जनित ज्ञान उपलब्ध है। हमारा चिंतन विभेदनकारी और आत्मघाती प्रवृतियों से मनुष्य को सुरक्षित रखते हुए चराचर जगत में एकत्व की भावना तथा शांति सुनिश्चित करता है।”

चूंकि भारत में लगभग 1000 वर्षों तक अरब के आक्रांताओं एवं अंग्रेजों का शासन चलता रहा अतः उस खंडकाल में भारतीय जनमानस को अपनी महान संस्कृति का विस्मृति लोप हो गया था। उक्त प्रस्ताव में इस विचार को आगे बढ़ाते हुए कहा गया है कि “काल के प्रवाह में राष्ट्र जीवन में आए अनेक दोषों को दूर कर एक संगठित, चारित्र्य सम्पन्न और सामर्थ्यवान राष्ट्र के रूप में भारत को परम वैभव तक ले जाने हेतु परम पूजनीय डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने वर्ष 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य प्रारम्भ किया। संघकार्य का बीजारोपण करते हुए, डॉक्टर हेडगेवार ने दैनिक शाखा के रूप में व्यक्ति निर्माण की एक अनूठी कार्यपद्धति विकसित की, जो हमारी सनातन परम्पराओं व मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्र निर्माण का निःस्वार्थ तप बन गया। उनके जीवनकाल में ही इस कार्य का एक राष्ट्रव्यापी स्वरूप विकसित हो गया। द्वितीय सर संघचालक पूजनीय श्री गुरूजी (माधव सदाशिव गोलवलकर) के दूरदर्शी नेतृत्व में राष्ट्रीय जीवन के विविध क्षेत्रों में शाश्वत चिंतन के प्रकाश में कालसुसंगत युगानुकूल रचनाओं के निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। 100 वर्ष की इस यात्रा में संघ ने दैनिक शाखा द्वारा अर्जित संस्कारों से समाज का अटूट विश्वास और स्नेह प्राप्त किया। इस काल खंड में संघ के स्वयंसेवकों ने प्रेम और आत्मीयता के बल पर मान अपमान और राग द्वेष से ऊपर उठ कर सबको साथ लेकर चलने का प्रयास किया।”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह भी मानना है कि धर्म के अधिष्ठान पर आत्मविश्वास से परिपूर्ण संगठित सामूहिक जीवन के आधार पर ही हिंदू समाज अपने वैश्विक दायित्व का निर्वाह प्रभावी रूप से कर सकेगा। अतः हम सभी भारतवासियों का कर्त्तव्य है कि सभी प्रकार के भेदों को नकारने वाला समरसता युक्त आचरण, पर्यावरण पूरक जीवन शैली पर आधारित मूल्याधिष्ठित परिवार, स्वबोध से ओतप्रोत और नागरिक कर्तव्यों के लिए प्रतिबद्ध समाज का चित्र खड़ा करने के लिए हम समस्त भारतीय संकल्प लें। इसके आधार पर ही समाज के समस्त प्रश्नों का समाधान, चुनौतियों का उत्तर देते हुए भौतिक समृद्धि एवं आध्यात्मिकता से परिपूर्ण समर्थ राष्ट्र जीवन खड़ा किया जा सकेगा। इसी कारण से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने सज्जन शक्ति के नेतृत्व में सम्पूर्ण समाज को साथ लेकर विश्व के सम्मुख उदाहरण प्रस्तुत करने वाला समरस और संगठित भारत का निर्माण करने हेतु संकल्प लिया है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समस्त हिंदू समाज को एक करने के प्रयास भारत में तो सफल होते हुए दिखाई दे रहे हैं और इसका स्पष्ट सकारात्मक प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों में पूरे देश में दिखाई भी दे रहा है। आर्थिक प्रगति की गति तेज हुई है, समस्त समाज के बीच सामाजिक समरसता का भाव जागृत हो रहा है, देश के नागरिकों विशेष रूप से युवाओं में पर्यावरण के प्रति सजगता बढ़ रही है, एक बार पुनः भारतीय समाज संयुक्त परिवार के प्रति आकर्षित हो रहा है – बल्कि, विश्व के अन्य कई देशों के नागरिकों में भी संयुक्त परिवार के विभिन्न प्रकार के लाभों की ओर ध्यान आकर्षित हो रहा है, स्वदेशी का भाव जागृत हो रहा है और नागरिकों में देश के प्रति अपने कर्तव्यों के भाव का जागरण हो रहा है। इन्हीं समस्त बिंदुओं को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पंच परिवर्तन (सामाजिक समरसता स्थापित करना, स्वबोध के भाव का जागरण, पर्यावरण पर ध्यान देना, नागरिक कर्तव्यों का बोध, कुटुंब प्रबोधन को बढ़ावा देना) के रूप में पिछले कुछ समय से समाज के बीच में ले जा रहा है। और, समाज को इन बिंदुओं पर जागृत करने का कार्य स्वयंसेवकों द्वारा सफलता पूर्वक किया जा रहा है। आगे आने वाले समय में इन बिंदुओं पर समाज के बीच कार्य को और भी गति दी जाएगी, ऐसी आशा की जा रही है।

By Prahlad Sabnani

लेखक परिचय :- श्री प्रह्लाद सबनानी, उप-महाप्रबंधक के पद पर रहते हुए भारतीय स्टेट बैंक, कारपोरेट केंद्र, मुम्बई से सेवा निवृत हुए है। आपने बैंक में उप-महाप्रबंधक (आस्ति देयता प्रबंधन), क्षेत्रीय प्रबंधक (दो विभिन्न स्थानों पर) पदों पर रहते हुए ग्रामीण, अर्ध-शहरी एवं शहरी शाखाओं का नियंत्रण किया। आपने शाखा प्रबंधक (सहायक महाप्रबंधक) के पद पर रहते हुए, नई दिल्ली स्थिति महानगरीय शाखा का सफलता पूर्वक संचालन किया। आप बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग, कारपोरेट केंद्र, मुम्बई में मुख्य प्रबंधक के पद पर कार्यरत रहे। आपने बैंक में विभिन पदों पर रहते हुए 40 वर्षों का बैंकिंग अनुभव प्राप्त किया। आपने बैंकिंग एवं वित्तीय पत्रिकाओं के लिए विभिन्न विषयों पर लेख लिखे हैं एवं विभिन्न बैंकिंग सम्मेलनों (BANCON) में शोधपत्र भी प्रस्तुत किए हैं। श्री सबनानी ने व्यवसाय प्रशासन में स्नात्तकोतर (MBA) की डिग्री, बैंकिंग एवं वित्त में विशेषज्ञता के साथ, IGNOU, नई दिल्ली से एवं MA (अर्थशास्त्र) की डिग्री, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर से प्राप्त की। आपने CAIIB, बैंक प्रबंधन में डिप्लोमा (DBM), मानव संसाधन प्रबंधन में डिप्लोमा (DHRM) एवं वित्तीय सेवाओं में डिप्लोमा (DFS) भारतीय बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थान (IIBF), मुंबई से प्राप्त किया। आपको भारतीय बैंक संघ (IBA), मुंबई द्वारा प्रतिष्ठित “C.H.Bhabha Banking Research Scholarship” प्रदान की गई थी, जिसके अंतर्गत आपने “शाखा लाभप्रदता - इसके सही आँकलन की पद्धति” विषय पर शोध कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न किया। आप तीन पुस्तकों के लेखक भी रहे हैं - (i) विश्व व्यापार संगठन: भारतीय बैंकिंग एवं उद्योग पर प्रभाव (ii) बैंकिंग टुडे एवं (iii) बैंकिंग अप्डेट Note:- किसी भी तरह के विवाद उत्प्पन होने की स्थिति में इसकी जिम्मेदारी चैनल या संस्थान या फिर news website की नही होगी लेखक इसके लिए स्वयम जिम्मेदार होगा, संसथान में काम या सहयोग देने वाले लोगो पर ही मुकदमा दायर किया जा सकता है. कोर्ट के आदेश के बाद ही लेखक की सुचना मुहैया करवाई जाएगी धन्यवाद

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *