जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 08 जून, 2024 ::

माँ लक्ष्मी की कई रूप है, जिसे लोग आदि लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, विद्या लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, धैर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, विजय लक्ष्मी और राज लक्ष्मी नाम से जानते है। ऐसी मान्यता है कि इन सभी रूपों की वंदना करने से लोगों को असीम संपदा और धन की प्राप्ति होती है। सर्वविदित है कि अष्ट लक्ष्मी की पूजा-वंदना करने से आठ प्रकार के धन मिलता है और यह धन एक-दूसरे से जुड़ा हुआ रहता हैं। प्रायः देखा जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति में अष्ट लक्ष्मी यानि आठ प्रकार के धन विद्यमान होते हैं, यह अधिक या कम मात्रा में निश्चित रूप से रहता हैं। जिसके पास नहीं रहता उसे अष्ट दरिद्रता कहा जाता है।

श्री नारायण (भगवान विष्णु) के साथ उनकी सेवा करने वाली माता “आदि लक्ष्मी” या “राम लक्ष्मी” कही जाती है, जो पूरी सृष्टि की सेवा करने का प्रतीक माना जाता है। इसलिए लक्ष्मी और नारायण को अलग-अलग नहीं माना जाता है, बल्कि एक ही कहा जाता है। माता लक्ष्मी को नारायण की शक्ति की मान्यता है। अतएव पृथ्वी लोक में धर्म परायण लोगों के लिए “लक्ष्मी नारायण” कहलाते हैं।

ऋषि भृगु की बेटी के रूप में पृथ्वी पर अवतरण होने वाली लक्ष्मी के स्वरूप को अष्टलक्ष्मी, आदि लक्ष्मी या महालक्ष्मी कहते है और यह अवतरण माता लक्ष्मी का एक प्राचीन रूप है। मान्यता है कि आदि लक्ष्मी केवल ज्ञानियों के पास निवास करती है। इसलिए उन्हें कभी खत्म नहीं होने वाली “प्रकृति का प्रतीक” माना गया है, जिसका न कोई प्रारम्भ है और न ही कोई अंत, यानि वह निरंतर है। माता आदि लक्ष्मी की चार भुजा होती हैं, कमल और श्वेत ध्वज धारण करती हैं, अन्य दो हाथ अभय मुद्रा और वरदान मुद्रा में रहता है। जिस व्यक्ति को माता आदि लक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो जाता है वे सभी भय से मुक्त होकर संतोष और आनंद प्राप्त कर लेता है।

माता धन लक्ष्मी को वैभव लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। धन लक्ष्मी लाल वस्त्रों में चक्र, शंख, अमृत कलश, धनुष-बाण, अभय मुद्रा और एक कमल से युक्त होती हैं।
मान्यता है कि धन लक्ष्मी धन और स्वर्ण की देवी हैं। देखा जाए तो जिस प्रकार संतान, आंतरिक इच्छा शक्ति, चरित्र और गुण मनुष्य में निहित हैं, उसी प्रकार बारिश और प्रकृति, महासागर और पहाड़, नदी और नाले, ये सभी हमारे लिए धन के स्रोत है। माता धन लक्ष्मी की कृपा से ये सभी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं।

माता विद्या लक्ष्मी और माता सरस्वती में अन्योनाश्रय संबंध है, क्योंकि माता लक्ष्मी और सरस्वती के चित्र देखने में माता लक्ष्मी को पानी में कमल के ऊपर ज्यादातर दिखाया जाता है। जबकि सभी लोग जानते है कि पानी अस्थिर रहता है यानि माता लक्ष्मी भी पानी की तरह चंचल है। वहीं विद्या की देवी माता सरस्वती को एक पत्थर पर विराजमान दिखाया जाता है यानि स्थिर स्थान पर रहती है। इसलिए विद्या जब आती है, तो जीवन में स्थिरता आती है। जबकि विद्या का लोग दुरुपयोग भी करते हैं, क्योंकि सिर्फ पढ़ने से लक्ष्मी नहीं मिलती है बल्कि पढ़ाई के साथ ही पढ़ाई का लक्ष्य भी निर्धारित होना चाहिए यानि पढ़ना है, फिर जो पढ़ा है उसका उपयोग करना है तब वह विद्या लक्ष्मी बनता है।

माता धान्य लक्ष्मी कृषि धन प्रदान करने वाली होती हैं। “धान्य” का अर्थ होता है अनाज। माता धान्य लक्ष्मी हरे वस्त्र में सुशोभित, दो कमल, गदा, धान की फसल, गन्ना, केला, अन्य दो हाथ में अभय मुद्रा और वरमुद्रा धारण करती हैं। वह फसल की देवी है। माता धान्य लक्ष्मी की कृपा से व्यक्ति को सभी आवश्यक पोषक तत्व अनाज, फल, सब्जियां और अन्य खाद्य पदार्थ मिलते हैं।

माता धैर्य लक्ष्मी धन के प्रबंधन, धन उपयोग की रणनीति, धन योजना बनाने की शक्ति देती हैं। यानि अच्छे और बुरे समय का सामना करने की आध्यात्मिक शक्ति मिलता है। माता लक्ष्मी का यह स्वरूप असीम साहस और शक्ति का वरदान देता है। जो लोग माता धैर्य लक्ष्मी की पूजा करते हैं, वे बहुत धैर्य और आंतरिक स्थिरता के साथ जीवन जीते हैं। धैर्य लक्ष्मी होने से जीवन में प्रगति होती है चाहे बिजनेस हो या नौकरी।

माता संतान लक्ष्मी, संतान के रूप में, मनुष्य को प्राप्त होने वाला संतान को कहते है, क्योंकि बच्चे प्यार की पूंजी होता है, उससे प्यार का संबंध होता है, उसमें प्यार का भाव होता है, इसलिए वो संतान लक्ष्मी होता है। माता संतान लक्ष्मी, दो कलशों, तलवार, ढाल, गोद में एक बच्चा, अभय मुद्रा में एक हाथ और दूसरा हाथ बच्चा पकड़े हुए रहती हैं और बच्चा कमल धारण किए हुए रहता है। संतान लक्ष्मी जहां वास करती है वहाँ संतान से सुख, घर में समृद्धि, परिवार में शांति रहता है और जहां संतान लक्ष्मी नही रहती है वहाँ संतान से झगड़ा, घर में तनाव, परिवार में परेशानी, घर के लोगों में दुख, दर्द, पीड़ा व्याप्त रहती है।

माता विजय लक्ष्मी जिसे जय लक्ष्मी भी कहा जाता है, सफलता के रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर करके विजय का मार्ग प्रशस्त करती हैं। माता विजय लक्ष्मी साहस, आत्मविश्वास, निडरता और जीत के धन का प्रतीक हैं। जिनके पास माता विजय लक्ष्मी की कमी होता है, उसके पास सब-कुछ होने के बावजूद भी जिस काम में वो हाथ लगाता है वो चौपट हो जाता है, काम होता ही नहीं है और जिनके पास माता विजय लक्ष्मी रहती है, वह धन से चरित्र को मजबूत करता है और अपने जीवन पथ पर सफलतापूर्वक आगे बढ़ता है।

माता राज लक्ष्मी को भाग्य लक्ष्मी भी कहा जाता है। माता राज लक्ष्मी चार भुजाओं वाली, लाल वस्त्रों में, दो कमल धारण करती हैं, अभय मुद्रा और वर्धा मुद्रा में अन्य दो भुजाओं से घिरी हुई हैं, दो हाथी जल के कलश लिए हुए होते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान इंद्र ने जब दुर्वासा ऋषि के शाप से सारा राजपाट गंवा दिया था तब वे भाग्य विमुख हो गए थे, वैसी स्थिति में माता राजलक्ष्मी की आराधना किया था और उनकी आराधना करने पर उन्हें सब कुछ वापस मिला था।
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