Shubhendu ke Comments
वैधानिक चेतावनी ये आर्टिकल आप अपने रिश्क पर पढ़े विचार पूरंतः निजी है हो सकता है आप असहमत हो मगर मेरे यही विचार है . खुल कर बोलता हु , खुलकर लिखता हु समाज के नियमो में फिट नही होता , मोह माया से मुक्त हु खुद ही बाबा मुझे किसी बागेश्वर की जरूरत नही. बाद बांकी आप अपने विवेक पर ही आर्टिकल पढ़े और अपनी सहमती या असहमति दर्ज करें धन्यवाद.
लेखक के ये विचार पुरतः निजी है इससे संसथान का कोई लेना देना नही
आजकल लोग भावना से प्यार क्यों नही करते ?
रूह से किसी को पसंद कीजिए जिस्म तो आज है कल नही है।
वैसे संस्कार भी राम तक ही सीमित है, कृष्ण भक्ति में लीन लोग अपने आप में संस्कारी होते है। शरीर नश्वर आत्मा अमर है फिर इन सभी बुनियादी बातों को कब का छोड़ चुके हम। मोह माया को ही छोड़ चुके हैं। मोक्ष के द्वार पर है खड़े बस कुछ अभी और जानना बाकी है,
या फिर ये भी हो सकता है की मैं जो सोच रहा हु वो कम हो, दुनिया और दुनियादारी अनंत है बस नजर और नजरिए का फर्क है, कुल मान मर्यादा की जब बात अर्जुन कृष्ण को कहते हैं, तब लॉर्ड कृष्ण रिप्लाइड : “हे पार्थ ये आत्मा अमर है ये बंधन ये नियम सब तुमने बनाए ये जात पात ये सिस्टम सब तुमने बनाए मैने तो सिर्फ मनुष्य बनाया था”।
कुल और जात बंधन और निबंधन कुछ होता ही नही ,
महाभारत में जब हम द्रोपदी को देखते हैं या फिर और भी कैरेक्टर है जो की सारे बंधन से मुक्त है अर्जुन ने तो कई बार ब्याह किया कई व्यह विचार भी किया नर्क मिला या स्वर्ग ये तो सबको पता है।
मर्यादित रहना या ना रहना ये बिलकुल व्यक्तिगत मामला है। किसी भी व्यक्ति का चरित्र का चित्रण उसके विचारों से होता है क्या वो अपने विचारों पर कायम है या रोज बदल रहा है ! जो रोज विचार बदल ले वो विचारहीन है, और वही संस्कार हीन भी है।
वयःह विचार या एक से अधिक लोगो के साथ संबंध चरित्र हीनता नही उन्मुक्ता है। कृष्ण यही कहते हैं जब उनको पढता हु और अपने ख्यालात गढ़ता हु।
मगर जब राम को देखेंगे तो वो सिर्फ सीता के साथ रहते हैं और उसे भी जंगल में छोड़ देते हैं राम त्रेता में थे और कृष्ण द्वापर में , विदेशों में अगर हम देखे तो वहां भी आप देखेंगे कि किस तरह का कल्चर है, आचार-विचार है उसे हम भारतीय गलत कहते हैं। खुद को सही कहते हैं और जब अपने ग्रंथ उल्टे तो उल्टी सी आ गई की संस्कार की परिभाषा, चरित्रहीन की परिभाषा, सब गलत गढ़े गए है। नारियों को नीचा और पुरषों को ऊंचा दिखाया गया है।
पुरुष अगर किसी और महिला से संसर्ग करे तो ठीक, महिला करे तो गलत, अरे इन लोगो ने सारे नियम अपने सहूलियत से बना लिए हैं। बस यही एक सत्य, सारे सामाजिक नियम मेरे लिए बकवास है। मुझे जो ठीक लगता है उसे पढ़ता हूं, और खुल कर गढ़ता हु, कृष्ण के करीब हु इसलिए सत्य की पहचान है।
संस्कार का मतलब है (मेरे लिए) : मां बाप से जो हम सीखते है। सबों के प्रति सम्मान, जो जो चाहे उसके साथ वैसा ही व्यवहार।
चरित्र हीन : जिसका कोई विचार नहीं आज कुछ कहता कल कुछ और आज बोला जयश्रीराम कल अल्लाह अल्लाह करने लगे या फिर अल्लाह अल्लाह करनेवाला जय श्रीराम कहने लगे। ऐसे लोग चरित्रहीन होते है मगर सभ्य समाज ने इसकी पड़ी पार्टी ही बदल डाली व्यह विचार करनेवाला, अरे नही दूसरे महिला से बात करनेवाला, अरे नही पता नही कितने नही ! इसलिए समाज मुझसे दूर हो चला है ।
नोट :- यहाँ पर सबकुछ मेरे लिए है आपके विचार मिले ठीक नही तो अपनी डफली अपना राग।