जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 25 सितम्बर ::
बच्चों को सुलाने या कोई काम करने या खाना नहीं खाने पर खाना खाने के लिए कहीं लोरी तो कहीं डरावनी कहानी सुनाई जाती है और बच्चे प्यार भरी लोरी सुनने के बाद सो जाता हैं या फिर डरावनी कहानी सुनने के बाद खाना खाने या कोई काम करने पर विवश हो जाता है। इसलिए बहुचर्चित फिल्म ‘‘शोले’’ में यह कथन भी है कि “सो जा नहीं तो गब्बर सिंह आ जाएगा।”
इस तरह की घटनाओं के शिकार कभी मेरे जैसे बच्चे भी हुआ करते थे। लगभग 60 वर्ष पूर्व जब मेरी उम्र 6-7 वर्ष का था और मैं अपने पटना जिला स्थित एक छोटी सी गांव में रहा करता था। एक दिन की बात है गर्मी का समय था मैं लगभग 4 बजे सो गया और संध्या समय लगभग 7 बजे उठा। उस समय बाहर अंधेरा छा चुका था। मेरे घर के आगे करीब दो कठ्ठे में पड़ती चबुतरा बना हुआ था। उस चबुतरे पर शाम के समय गांव के कुछ बुढ़े बुजुर्ग बैठे थे। चबूतरे से ठीक लगभग दो-तीन बांस की दूरी पर मेरा एक लगभग 60 डिसमिल का बगीचा था। उक्त बगीचा के एक कोने पर बांसवारी तथा तीन कोने पर विशालकाय पीपल वृक्ष था। आज के समय में बांसवारी तो नहीं है, परन्तु पीपल वृक्ष अभी भी तीन कोने पर उसी तरह विशालकाय काया के साथ वृद्ध अवस्था में खड़ा है। उस बगीचे से दूर लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर एक बल्व जलने की लाईट दिखाई पड़ी। यहां यह बताना उचित होगा कि उस समय पटना शहर से उस गाँव तक बिजली, सड़क एवं आवागमन की सुविधा नहीं थी। वह बल्व कभी जलता और कभी बुझता था, कहने का तात्पर्य है कि वह भकभुक कर रहा था। करीब 10 मिनट के बाद वह बल्व हमारे बागीचे से लगभग आधा किलोमीटर दूर दिखाई पड़ने लगा। हमारे चबुतरे पर बैठे सभी लोग उसे चुपचाप देख रहे थे। फिर लगभग 10 मीनट बाद वह बल्व हमारे बगीचे के बांसवारी में गुम हो गयी। परन्तु तुरंत ही हमारे बांसवारी से निकल कर बांसवारी के ठीक पुरब एक कोने पर विशालकाय पीपल के पेड़ की ओर भकभुक करते हुए बढ़ने लगा और वह आगे बढ़ते-बढ़ते हमारे बगीचे से पूरब की ओर जहाँ बड़ी पगडंडी हुआ करता था उस पगडंडी की ओर चला जा रहा था। इतनी सारी घटनाओं के क्रम में चुकी अंधेरा का समय था इसलिए केवल बल्व जैसा ही प्रतीत होता रहा।
बुर्जुग लोग जो हमारे चबूतरे पर बैठे थे उनमें से एक ने बताया कि यह बल्ब जैसा जलने वाला चीज बल्ब नहीं है, बल्कि राकस है, जो जब भी मुंह खोलता है तो उससे आग निकलता है और जब मुंह बंद करता है तो आग बंद हो जाता है। इसलिए वह बल्ब लगभग एक किलोमीटर से चलते हुए चबूतरे से लगभग तीन बांस की दूरी तक आया और अपनी दिशा बदल कर दूसरी ओर चला गया।
चूंकि उस समय मेरी उम्र 6-7 वर्ष की थी तो डर भी लगता था परन्तु पुरी कहानी सुनने की इच्छा हुई की आखिर राकस क्या होता है और वह करता क्या है।
वुजुर्गों में से एक वुजुर्ग ने गांव के एक व्यक्ति का नाम लेते हुए बताया कि चार दिन पहले जब वह दूसरे गांव के बाजार से सामान लेकर घर आ रहा था तो रात आठ बज गया था और गांव में आज से 60 वर्ष पहले शहर की तरह गांव में कोई बाजार नहीं होता था बल्कि एक दूसरे गांव में घर में ही दुकान खोल कर आवश्यक सामान अनाज के बदले में दिया जाता था। ऐसी स्थिति में जब अपने गांव में कोई सामान नहीं मिलता था तो दूसरे गांव के दुकान से उसे लाना पड़ता था। इसी क्रम में उसे दूसरे गांव से लौटने में आठ बज गया था, तो उसी चौड़ी पगडंडी से घर आ रहा था तो उसे उस पंगडंडी पर कोई भयानक नहीं बल्कि एक आदमी दिखा, जिसका वाल लड़कियों की तरह बड़ा-बड़ा और उलझा हुआ था। उस व्यक्ति ने मेरे गांव के आदमी को कहा कि कहां जा रहे हो। उस आदमी ने जबाब दिया कि मैं घर जा रहा हूँ तो उसने उससे पूछा कि तुम चढ़ोगे या चढ़ावगे। चूंकि मेरे गांव के आदमी शरीर से बलवान हठ्ठा कठ्ठा था इसलिए उसने सोचा कि इ तो एक लीवर का आदमी है इस पर हम चढ़ेगे तो वह मर जायेगा, क्यों न हम इसे अपने उपर चढ़ा ले और उसने कह दिया कि चढ़ावेंगे। इतना कहना था कि उसने उसके कंधे पर झठ से चढ़ गया और उसे पुरे गांव रात भर घुमाता रहा जिससे उस हठ्ठे कठ्ठे आदमी की हालत मरनासन्न हो गया। पूरी रात बीतने पर जब उजाला का बहुत ही हल्का-हल्का प्रकाश होने लगा तो वह दुबला पतला व्यक्ति ने मेरे गांव के उस आदमी को गांव के एक कुआं के पास पकट कर चल दिया। जब दिन होने का प्रकाश कुछ ज्यादा हुआ तो वह किसी तरह से उठकर अपने घर पहुंचा और उस व्यक्ति ने उसका हुलिया जो उसने देखा था गांव के बड़े बुर्जुग को बताया। तब बड़े वुर्जुग ने पूछा कि क्या वह जब मुहं खोलता था तो उसके मुंह से आग निकलता था। इस पर उस आदमी ने उसके साथ हादसा हुआ था ने बताया कि धीरे से जब बोलता था तो आग नहीं निकलता था इसलिए तो मैं उसे अपने ऊपर चढ़ने के लिए कहा। लेकिन जब वह मेरे उपर चढ़ गया और जोड़ से मुंह खोलता था तो उसके मुंह से आग की हल्की लपट निकलता था जिससे मैं डर गया और उसकी आग की हल्की लपट में पगडंडी साफ दिखाई देता था जिससे मैं पुरी गांव में रातभर घुमता रहा। तब बुर्जुगों ने उसे बताया कि वह व्यक्ति जिसे तुम बैठाए थे वह राकस था। यदि तुम उस पर चढ़ते तो वह तुम्हें पटक-पटक कर मार देता।
सुनने और पढ़ने में यह कहानी काल्पनिक लगती है, परन्तु यह घटना है और पूरी तरह सही घटना है जो खुली आँखों से देखी और सुनी गई है।
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