हाँ हक़ीक़त है ये , मज़ाक जैसी लगती है,
भीड़ में भी , तन्हाईयों की महफिल सजती है,
कैसी है ये भीड़, अकेला है हर कोई,
क्या ये भीड , भीड जैसी लगती है.

भीड़ बनाई , पर अपने न बनाए,
सपने बनाये, पर अपने न बनाए,
छुपाया अपनों से , सपने बनाने के लिए,
न सपने बनाये, न ही अपने बनाए.

हाँ हक़ीक़त है ये.

खो गए भीड़ में, अकेले रह गए,
अगर अपने होते तो सफर पार हो जाता,
न तू अकेला हो पाता, न में अकेला हो पाता.
अगर हार भी जाता, तो अपनों को बताता,
कोई अपना आता और हिम्मत जगाता,
न तू अकेला हो पाता, न मैं अकेला हो पाता,
तू भी जीत जाता, मैं भी जीत जाता,
लम्बा सफर ,यूहीं पार हो जाता.

By The Ankit Paurush Show

Note:- किसी भी तरह के विवाद उत्प्पन होने की स्थिति में इसकी जिम्मेदारी चैनल या संस्थान या फिर news website की नही होगी लेखक इसके लिए स्वयम जिम्मेदार होगा, संसथान में काम या सहयोग देने वाले लोगो पर ही मुकदमा दायर किया जा सकता है. कोर्ट के आदेश के बाद ही लेखक की सुचना मुहैया करवाई जाएगी धन्यवाद अंकित पौरुष अभी बंगलोर स्थित एक निजी सॉफ्टवेर फर्म मे कार्यरत है , साथ ही अंकित नुक्कड़ नाटक, ड्रामा, कुकिंग और लेखन का सौख रखते हैं , अंकित अपने विचार से समाज मे एक सकारात्मक बदलाव के लिए अक्सर अपने YouTube वीडियो , इंस्टाग्राम हैंडल और सभी सोसल मीडिया के हैंडल पर काफी एक्टिव रहते हैं और जब भी समय मिलता है इनके विचार पंख लगाकर उड़ने लगते हैं

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