कभी कभी इंसान सही और गलत के तराजू में भटक जाता है और फिर सोचता है कि सही के साथ गलत क्यों होता है । समाज कहता कुछ है और करता कुछ है। पर जितना पूर्वजों से सुना है सच की जीत होती है , शायद थोड़ा या ज्यादा समय लगे। ये कविता इसी विषय पर आधारित है। आप सबसे अनुरोध है कि आपने विचार कमेंट बॉक्स में प्रकट करें ।
सही गलत में , मैं उलझ गया,
समझ न पाया, क्या सही , क्या गलत।
अगर सही सही है, तो सही के साथ क्यू गलत।
गलत अमीर , सही गरीब,क्या समझू सही सही या सही गलत।
अगर सही सही तो रास्ता इतना कठोर क्यों,
हर मोड़ पर, मिलता क्यू, इतना अफसोस क्यों,
क्या बोलूं सही सही या सही गलत।
या फिर ये समझूँ, सही बड़ा अनमोल है,
इसका न कोई तोल है,
खरीदार नहीं, सही को खरीदने के लिए,
सफर लंबा है, चलने के लिए।