Ashneer Grover की किताब दोगलापन भी कुछ कुछ ऐसा ही है पूरी तरह से तो नही मगर उस किताब को भी आप पढ़ सकते हैं, जिसमे उन्होंने इसी को परिभाषित किया है तजुर्बे से।
कुछ लोगो को देख रहा हु, उनके पास पैसा नाम सोहरत सब है जिंदगी में मगर घमंड नही, धीरे धीरे अब लोग पैसा आने के वावजूद भी गुरुर नही करते।
ऐसे ही लोग हमारे इर्द गिर्द है वहीँ कुछ लोग ऐसे भी है जो धन के साथ घमंड वाले सिद्धांत को चरितार्थ करते नजर आ रहे हैं संख्या दोनों ही तरफ 40% और 60% का है 60% वो लोग है जो घमंड नही करते। ये सब चीजो का गुमान नही करते और वही 40% लोगो को लगता है मै ही खुदा हु।
कुछ लोग सरल होने का स्वांग भी रचाते हैं मगर उन्हें भी 60% में ही सामिल कर लिया क्योंकि झूठा ही सही कम से कम प्यार तो करते हैं, इनके सरल होने के chances बढ़ जाते हैं।
सभ्य समाज अब धीरे धीरे ही सही क्लास की चादर से क्लास्लेस समाज की और बढ़ता मुझे दिख रहा है। लोगो को जब आप सम्मान देंगे बिना उसके काम और आय देखे तब जाकर कहीं एक सभ्य समाज का निर्माण आप कर पायेंगे।
आइये इसको एक उदाहरण से समझते हैं मान लिया जाये आपके घर में कोई शादी का आयोजन या किसी भी तरह का पार्टी फंक्शन है , उसमे आपने अपने सगे संबंधियों को भी बुलाया और सिर्फ एक बड़े नेता को बुलाया। उसके आते ही आपने सारे समाज पर से ध्यान हटाकर उस नेता के प्रति सम्मान को प्रदर्शित किया नेता जी खुस तो होंगे मगर मन ही मन यह भी सोच कर मंद मंद मुस्कुराएंगे देंगे की देखो जिस जनता के बल पर हम चुन कर आयें हैं उन्ही का बहिष्कार ये आदमी कर रहा है।
यहाँ पर नेता जी का कोई दोष नही यहाँ पर आयोजक ही हासिये पर है क्योंकि उसने उनके सम्मान में पुरे समाज को कुछ क्षण के लिए भुला दिया अब ना तो आयोजक नेता का हुआ ना ही समाज का।
एक और उदहारण से इसको समझने की कोसिस करते हैं, मान लिया जाए आपका सम्बन्धी दो खेमो में बंटा हो एक जिसने बुलंदी को छु लिया है और दूसरा थोडा गरीब है उसकी प्रतिष्ठा भी समाज में कम है, तब आयोजक जिसने दोनों को ही कार्ड देकर बुलाया है मगर उसकी आस्था आवाभगत उन लोगो के लिए अधिक है जो समाज में अधिक प्रतिष्ठा और धन का अर्जन कर चूका है। अब कम प्रतिष्ठा और धन वाला वर्ग खुद को उप्हासित महसूस करेगा और जहां जाएगा आपकी बुराई करेगा, आपके लिए अप्सब्द का प्रयोग करेगा क्योंकि आपने ही ये किया है इसलिए भुगतना भी आपको भी पड़ेगा।
जो व्यक्ति एक करोड़ पति से भी वैसे ही हाँथ मिलाये और रोड पति से भी वैसे ही उसकी ही कीर्ति समाज में दूर तलक जाती है।
बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर को ही देख लीजिये हिन्दू समाज से कुंठित और उप्हासित होकर उन्होंने बोध धर्म का मार्ग चुना। जो जैसा होता है और बनना चाहता है वो वैसा ही आचरण करता है।
यहाँ भी भगवद गीता का राजसी कर्म को आप देख सकते हैं और जो लोग सबको समान भाव से देखता है वो कर्मयोग की तरफ़ अग्रसर है।
40% लोग राजसी कर्म से गर्षित है, 55% लोग तामसी कर्म से गर्षित है और केवल 5% लोग ही सात्विक कर्म करते हैं और यही लोग कर्मयोगी कहलाते हैं।
फिर समाज और सामाजिकता की चिंता आप छोड़ ही दीजिये क्योंकि 95% लोगो को मोक्ष नही मिलेगा वो फिर जन्म लेंगे और मरेंगे, युग का इतना लम्बा होने का कारण भी यही है की लोग कई जन्मो के बाद भी कर्मयोग की मार्ग पर नही चल पाते हैं।
मोक्ष का मार्ग कृष्ण जी ने दो बतलाये हैं एक सांसारिक जीवन में रहकर और दूसरा संन्यास ग्रहण कर के, श्रेष्ठ मार्ग कृष्ण जी ने सांसारिक जीवन में रहकर ही मोक्ष की और जाने वाले को बतलाया है।
संन्यास के मार्ग से मोक्ष तक पहुचना आसान है, वहीँ सांसारिक जीवन में रहकर मोक्ष तक पहुचना आसान नही, आप ही सोचिये की क्या आप एक फील्ड सर्वोच्य पद पहुच कर उसको छोड़ना चाहते हैं ? जबाब है नही चाहे फील्ड कोई भी हो आप चाहे डॉक्टर हो इंजनियर हो या फिर राजनीति या व्यवसाय क्या उसको छोड़कर आप किसी नये कर्म को जीरो से शुरू करना चाहेंगे ? आप कहेंगे कौन इतना तकलीफ उठाएगा ! फिर मोक्ष भी समभव नही
इसलिए मोक्ष का मार्ग अक्सर लोग संन्यास को चुनते हैं क्योंकि वो आसान बन जाता है प्रभु ने कहा भी है की ज्ञान की बाते सुन्ना तो सब पसंद करते है मगर जब करने की बारी आती है तब सब भाग खड़े होते हैं।
त्रेता मे राम ने बतलाया था की सामजिक जीवन में मर्यादा पुर्शोतम कैसे बने, उसी को आगे बढाते हुए कृष्ण ने द्वापर युग में बतला दिया की आत्मा सत्य है, हम बड़े ही खुदगर्ज लोग है अपने हिसाब से देवता चुनते है। जो देवता आसान लग जाए उसे फॉलो कर लेते हैं मगर पूरी तरह से नही जो हमारे सहूलियत में होता है सिर्फ उसको चुन लेते हैं।
कृष्ण जी सिर्फ असहुलिय्त और जात पात के बंधन कुल मान मर्यादा के बंधन को तोड़ते नजर आते हैं। उन्होंने सबसे श्रेष्ठ भक्ति इश्वर की भक्ति को बताया है मगर पीछे हमने पढ़ा क्या है गुरु गोविन्द दोनों खड़े काके लागे पाँव बलिहारी गुरु आपने……….. इसको भी कृष्ण ने झूठ कह दिया क्योंकि कोई भी गुरु मनुष्य है और उसमे ऐब तो होगा ही फिर हम तो गोविन्द को ही प्रणाम करेंगे ना की किसी मनुष्य रूपी गुरु को, इस तरह के तमाम नियमो को कृष्ण ने धत्ता बता दिया।
जातिवाद पर तो उन्होंने कुठारा घात ही कर दिया उन्होंने जात व्यवस्था पर कहा भी है की जाती का निर्धारण आपके कर्मो से होता है ना की आप किस घर में पैदा हुए। यहाँ पर कुल के बंधन से मुक्त कर दिया, वो हर जगह दकिया नुशी विचारों पर कुठारा घात करते नजर आ जाते हैं।
इसलिए आप देख्नेगे की कृष्ण की अस्तुति कम और राम के follower ज्यादा मिलेंगे, वास्तव में अपग्रेडेड मोबाइल आपको पसंद है मगर अपग्रेडेड भगवान् पसंद नही।
Ashneer Grover की किताब दोगलापन भी कुछ कुछ ऐसा ही है पूरी तरह से तो नही मगर उस किताब को भी आप पढ़ सकते हैं, जिसमे उन्होंने इसी को परिभाषित किया है तजुर्बे से।
बहरहाल उम्मीद है इस लेख से आप कुछ सिख कर अपने जीवन में कुछ तो बदलाव लायेंगे। उम्मीद कर सकता हु फलो की दूकान पर भीड़ ज्यादा और चाट पकोड़ी के दुकानों पर भीड़ कम होगी ! बस इसी उम्मीद और भरोशे के साथ बने रहें मेरे साथ।
थोड़ा थोडा ही सही बदलाव तो लाऊंगा।
सभी को नही कम से कम 2 से 4 चार लोगो को तो सत्य की और ले जाऊँगा।
इन्ही पंक्तियों के साथ आज का #shubhendukecomments का समापन करता हु,
कल फिर मिलूँगा किसी नये टॉपिक के साथ
धन्यवाद