इब्नेबतूती दिव्य प्रकाश दुबे द्वारा लिखित एक लघु उपन्यास हैl इब्नबतूती एक ऐसा शब्द है जिसका कोई शाब्दिक अर्थ नहीं है अपितु यह शब्द प्रेमज अर्थात प्रेम से उत्पन्न एक शब्द है, एक बहुत प्यारा शब्दl
प्रस्तुत कहानी में अतीत एवं वर्तमान में घटित कुछ अविस्मरणीय स्मृतियों को सहेजा गया हैl कथानक कुछ इस प्रकार है कि राघव जो कहानी का नायक है अपनी मां के साथ रहता हैl उसके पिता माँ-बेटे को छोड़कर बहुत पहले ही अनंत यात्रा पर प्रस्थान कर चुके हैंl राघव उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाना चाहता है परंतु अपनी मां को एकाकी छोड़कर जाने का इच्छुक नहीं हैl परंतु यह उसके भविष्य का भी प्रश्न है इसलिए उसकी मां शालू उससे आग्रह करती है कि वह विदेश जाएl
तभी राघव और उसकी महिला मित्र निशा निश्चित करते हैं कि मां को भी एक सहचर की आवश्यकता है जो इस नितांत एकाकी मार्ग पर उनके साथ चल सकेl वह इस प्रयास में सफल भी होते हैं मां भी उनके इस निर्णय से सहमत प्रतीत होती है।
तभी राघव को एक पुराने संदूक से कुछ प्रेषित पत्र प्राप्त होते हैं जो उसकी मां ने अपने कॉलेज के दिनों में अपने सहपाठी आलोक के लिए लिखे थेl उन पत्रों को पढ़कर राघव यह तो जान हो जाता है की माँ और उनके सहपाठी आलोक में मित्रता के इतर भी कुछ थाl समस्त पत्रों को पढ़कर राघव इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि माँ का एकाकीपन दूर करने के लिए आलोक से मिलना नितांत आवश्यक हैl अगर आलोक और उसकी माँ एक हो जाएं तो निश्चिंता से बाहर जा सकता है और काफी प्रयासों के बाद इसमें सफल भी होता हैl
दिव्य प्रकाश दुबे का यह उपन्यास सामाजिक दृष्टिकोण को परिवर्तित करता है; प्रायः युवा बच्चे अपने माँ-बाप के साथ किसी अन्य को सरलता से स्वीकार नहीं करते परंतु लेखक की यह सोच अत्यंत भिन्न एवं श्रेष्ठ हैl पुस्तक में जो पत्र लिखे गए हैं वह मन में एक कोमल भाव उत्पन्न करते हैंl भाषा अत्यंत सहज एवं सरल हैl पात्रों को ध्यान में रखते हुए कुछ अंग्रेजी भाषा के शब्द प्रयोग किए गए हैं जो उचित प्रतीत होते हैंl
यह उपन्यास समाज के कुछ अवांछित परंपराओं पर प्रहार करता हैl वर्तमान परिपेक्ष में यह आवश्यक है कि युवा वर्ग सभी के हितों को ध्यान में रखें। उपन्यास बहुत रोचक हैl मैं इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करती हूँ।
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