यह बहस बहुत पुरानी है,
कि किसकी आँखों में पानी है.
जब से हुई द्रोपदी अस्मिताहीन भरी सभा में,
तब से, भीष्म,द्रोण और कृपा हुए निर्लज्ज,
और बना दुर्योधन और दुशासन अभिमानी है.
यह बहस बहुत पुरानी है,
कि किसकी आँखों में पानी है.
जहाँ नारी, वीरांगना और देवी कहलाती थी,
आज अपने घर में ही डरी , सहमी और बेगानी है,
कहो आर्यावर्त .क्यूँ तुम्हारी नज़रों में उतर आई बेईमानी है?
यह बहस बहुत पुरानी है,
कि किसकी आँखों में पानी है.
हर क्षण , हर पल एक बेटी लूटी जाती है,
घर-मोहल्ले, चौक-चौराहे और भरी जवानी में,
पर ये सच भी अब इसी देश की कहानी है.
यह बहस बहुत पुरानी है,
कि किसकी आँखों में पानी है.
कौन बचाएगा ललनाओं की इज्जत,
जहाँ शासित -गरीब, लाचार और शोषित है,
और जहाँ शासक ने ही नोच खाने की ठानी है.
यह बहस बहुत पुरानी है,
कि किसकी आँखों में पानी है.
जहाँ न्याय की तराजू में क़ानून बिकता है,
न्यायाधीश अँधा, गूंगा और बहरा है,
और जिन्हें, तुम्हे तुम्हारा अधिकार न देने की मनमानी है
यह बहस बहुत पुरानी है,
कि किसकी आँखों में पानी है.
पर तुम डरो नहीं, गिरो नहीं, रुको नहीं,
तुम स्वरूपा हो, जननी हो और दुर्गा भी हो,
जग मस्तक झुकाएगा, जब नारी बन जाती झाँसी की रानी है.
यह बहस बहुत पुरानी है,
कि किसकी आँखों में पानी है.
सलिल सरोज
मुखर्जी नगर, नई दिल्ली