अंतर्राष्ट्रीय मजदुर दिवस की ढेरो शुभकामनाएं,
मजदुर है कौन ?
आजकल सभी मजदूर ही तो हैं कोई आइटी कंपनी में मजदूरी कर रहा है तो कोई फाइनेंस , सिर्फ ईटा ढोना या फिर फिर किसी कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करना या फिर किसी भी प्रकार का शारीरिक श्रम करनेवाला ही मुजदुर नही ।
जिसकी जितनी योग्यता है वो उस प्रकार का काम चुनता है । आपमें जितनी क्षमता और योगता है क्या आप उतनी क्षमता का पूरा उपयोग कर पा रहें हैं ?
परिवार वाद, श्रम और मजदूरी
हम सभी लोग अडानी अंबानी या फिर किसी भी अमीर को देख कर जलते हैं और अपने हाल पर रोते हैं। मगर वास्तव में अगर गौर कीजिए तो उनके पुरखो ने वो श्रम किया वो पसीना बहाया जिसकी फसल उसके बच्चे काट रहे हैं ।
राजनेता का बेटा अगर कुर्सी पर बैठ जाए तो तुरंत ही नेपोटिज्म का राग हम अलापने लगते हैं , तुरंत यह भूल जाते हैं की उसका बाप कभी लाठी भी खाया है, पहले आप विरासत बनाते हैं श्रम करके फिर या तो आप उपभोग करते हैं फिर अपनी विरासत को आने वाले पीढ़ी को तोहफा स्वरूप देकर चले जाते हैं, जरा आप ही सोचिए की आपकी संपत्ति का वारिश कौन होगा ? आपके बच्चे या फिर समाज अगर समाज में मरने के बाद आपकी विरासत दे भी दी जाए फिर भी कितना मिलेगा इस समाज को और क्या ये उसके श्रम का उचित मूल्याकन होगा !
कभी हम एक्टर पर तो कभी राजनेता या फिर कॉरपोरेट घरानों के नेक्स्ट जेनरेशन पर कटाक्ष करते दिख जाते हैं । क्योंकि ये हमारी सहूलियत में हैं मगर उसके 1st जेनरेशन ने इसके लिए जो श्रम उठाया उसको भूलने में वक्त लगाते हैं क्या ?
हमको सलमान खान का परिवारवाद तो दिखता है मगर सलीम खान की मेहनत नजर नही आती, हमे मुकेश अंबानी का परिवारवाद तो दिखता है मगर धीरू भाई अंबानी के श्रम को भूल जाते हैं, एक बड़ी पुरानी लोकोक्ति याद आई पुत कपूत तो को धन संचय पुत सपूत तो को धन संचय अर्थात पुत अगर मुकेश जैसा होगा तो वो विरासत भी संभाल लेगा मगर अनिल जैसा हुआ तो फिर क्या होगा ! घर के गहने भी बेचने की नौबत आ सकती है ।
पुत अगर तेजस्वी जैसा हो तब क्या होता है ! और तेजप्रताप जैसा हो तब क्या होता है ! पुत राजीव भी हुए और राहुल भी , अंतर आप देख सकते हैं वास्तव में संपति का सदुपयोग या दुरुपयोग भी आनेवाले जेनरेशन पर निर्भर करता है, बड़ी बड़ी किश्ती भी डूब जाती है जब किश्ती गलत कप्तान के हवाले हो जाए।
शर्म के प्रकार और योग्यता अनुसार
श्रम सिर्फ शारीरिक ही नही मानसिक भी होता है, मोटे तौर पर हम कह सकते हैं की जिसमे जितना ज्ञान और योग्यता उसको काम भी वैसा ही करना चाहिए , कोई काम छोटा और बड़ा नही होता है ये बिलकुल ठीक बात है और किसी को भी किसी का उपहास नहीं उड़ाना चाहिए उसके काम को देखकर , समझनेवाली बात यहां पर यह है कि मान लिया जाए आपने पी एच डी कर रक्खी है और आप ईट भट्टा में श्रम कर रहे हैं फिर आपके पीएचडी करने का क्या लाभ ? आपने कोई बड़ी डिग्री लेकर चाय की दुकान खोल दी फिर उस डिग्री को क्यों हासिल किया ?
क्या ये उस सरस्वती का अपमान नही ? काम चुनने की आजादी तो है मगर देखने और समझनेवाली बात यह भी है की आपने ज्ञान कितना अर्जन किया है ! आपकी रुचि और विषय किस ओर है ! अगर शुरू से ही किसी कारणवश आपने कोई ज्ञान का अर्जन नही किया हो कोई डिग्री न हो फिर आप ईंट उठाए या कोई भी काम करे ये आप पर निर्भर करता है कोई वही से उठकर इतिहास भी रचता है और कोई कीड़े मकोड़े की तरह मार जाता है । अब करना क्या है ये तो सोचना आपको ही पड़ेगा क्या आप अपनी आनेवाली पीढ़ी को अंबानी जैसा साम्राज्य देना चाहते हैं या लालू जैसी विरासत ? या फिर सरकारी नौकरी से रिटायर होकर 50 लाख से 1 करोड़ रुपया ये तो निर्भर आप पर और आपकी योग्यता पर निर्भर करता है।
करना क्या चाहिए ?
जिसने जितने जतन और कष्ट उठाए उसने उतना बड़ा साम्राज्य स्थापित करके दिखाया है लोग शुरू में उसे पागल ख्याली या फिर न जाने कितने उपनामों से नवाज देते हैं मगर सुखद अंत में वही लोग कशीदे भी पढ़ते है। लोगो की प्रवाह करना बंद कर दीजिए और उन्मुक्त होकर अपने कर्मो में ध्यान लगाइए तब आप अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाएंगे अन्यथा वो क्या किया ई ऊ दिस that में ही जीवन कहीं व्यर्थ ना हो जाए !
असमानता क्यों है होना चाहिए या नहीं ?
कृष्ण को तो आप में से कुछ लोग ही मानते हैं चलिए आज रामचरित मानस से सुन लीजिए समर्थ के कुछो दोष ना गोसाई अर्थात जो समर्थवान है उसका कभी कोई दोष होता ही नही। ये ऊंच-नीच होता कैसे है ? ये आपके सामर्थ्य पर निर्भर करता है आप कलेक्टर बन जाइए भले ही आप डोम हो अगर आपका चपरासी ब्राह्मण भी है फिर भी आपको पानी तो उसे पिलाना ही पड़ेगा , अब कहां गई ऊंच नीच ? वास्तव में जो लोग कर्म करनेवाले होते हैं वो अपने कर्मो से ही जाने जाते हैं। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को ही देख लीजिए । ऊपर उठ गए खुद को आम से खास आपने बना लिया बस सब के सब कष्ट खत्म ।
Soclism और captlism कुछ भी नही होता ये सब किताबी बाते हैं । दैनिक जीवन में जो नियम प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति के लिए बना है क्या वही नियम आम लोगो के लिए बने ? जितने अधिकार एक अधिकारी को है क्या वही आम लोगो को है ? अरे भैया पांच उंगली जब बराबर नही फिर इंसान की बराबरी कैसे ?
विनम्रता और ज्ञान
विनम्रता आपके ज्ञान की पहचान है गाली सुनकर भी मुस्कुराना कोई बिरला ही कर सकता है आम इंसान तो मंदिर और मस्जिद के चक्कर में आग लगा देता हैं , ऊपर बैठा हुआ व्यक्ति सब जान कर भी आंख मूंदे बैठे रहता है क्योंकि उसका स्वार्थ उसी में सिद्ध होता है ।
कर्म योग और सफलता
कर्म योग और सफलता दोनो ही अलग रास्ते हैं कोई कर्मयोग को ही सफलता मानता है तो कोई एक उच्च पद को ही सफलता , फर्ज कीजिए आप एवरेस्ट की चोटी पर पहुंच गए तो फिर ऊपर ही रहिएगा या फिर नीचे भी आइएगा . ऊपर ही रह गए तो आपका अंत निश्चित है और नीचे आकर अपनी योग्य के दम पर समाज को एक नई दिशा अगर आप देते हैं तब कही जाकर आप सफल होते हैं , किसी के लिए ऊंचाई पर पहुंचना ही सफलता है और किसी के लिए ऊपर से नीचे फिर नीचे से ऊपर कोई ऊपर और नीचे आने को अपनी जीवन की प्रक्रिया बना लेता है वही कोई ऊपर से ही उठ जाता है। यहां पर समझने वाली बात है कितना ऊपर से नीचे, तो सर्वश्रेष्ठ से नीचे उतरना मतलब आसमान में छेद करके फिर कोई और काम चुनना, आपने अगर एक बार छेद किया है तो आपमें यह क्षमता है कि आप दूसरी बार भी छेद कर सकते हैं फिर उन क्षमताओं को क्यों ना खोजा जाए ! जितनी बार आप आसमान में छेद करेंगे उतनी ही बार आप समाज में उदाहरण प्रस्तुत करेंगे। एक से जिसका जी भर गया और उसने कठिन मार्ग देखकर जैसे तैसे चोटी को छू भी लिया मगर फिर कभी हिम्मत ना हुई चोटी पर पहुंचने की उस इंसान की प्रगति रुक जाती है बहरहाल मुझे पता है आपमें से बड़े ही कम लोग इसको पढ़ेंगे और पढ़कर भी बहुत ही कम लोग समझ पाएंगे ये दिव्य ज्ञान है इतनी आसानी से समझ नही आयेगा, तो भईया मजदूर दिवस की शुभकामनाएं आप खुद को भी दीजिए और सभी कामगारों को भी दीजिए जो आगे बढ़ नहीं सकता उसका हाथ पकड़िए और निजामों के चक्कर से बचिए।
बिजली-पानी स्वास्थ और शिक्षा कैसे मिलेगी मुफ्त ? और मुफ्त की रेवड़ी क्यों है समाज के लिए घातक ?
बिजली पानी स्वास्थ और शिक्षा मुफ्त में पप्पू दे या फेकू, जो देगा मेरा वोट उसी को राशन रोजगार हम छीन लेंगे देना है तो क्वालिटी युक्त ज्ञान दो सरकारी स्कूल में पढ़कर कम लोग ही कलेक्टर बनते हैं, वो उदाहरण नही चलेगा, अब मुफ्त की भी आज परिभाषा सुनते जाइए बिजली दो मुफ्त और कॉरपोरेट को भी दो मुफ्त सबको दो मुफ्त मगर हिसाब रक्खे की किसने कितना जलाया जो अधिक जलाए उसके भी और जो कम जलाये उसके भी और जब टैक्स भरने जाए तब उससे वसूल करो। (उसके टैक्स में, इसमें डायरेक्ट टैक्स के दायरे में जो आते है सिर्फ वो)
इससे होगा क्या ? जो लोग टैक्स नही भरते उनकी बिजली तो मुफ्त हुई बड़ी बड़ी फैक्ट्री और कॉरपोरेट घराने जब टैक्स भड़ने आए तब उनपर भी electricity cess लगाओ , पैसा आया जी ! सरकार के पास कहां से होगा ? कैसे होगा ? ये उसका रास्ता है, मिले तो व्यवस्था सबको ही एक समान, कोई बिजली चोरी से जलाए या फिर कैसे भी, अमीर जलाए या गरीब, पैसा किसी को भी नही लगना चाहिए जैसे ही एक को मिलेगा और दूसरा मुंह ताकेगा समाज में असमानता का वायरस घुसेगा, फिर राजनीति शुरू, फिर वो कहेंगे हम पैसा देकर बिजली जलाते हैं तुम खैरात की जलाते हो, जैसे राशन में आजकल चल रहा है अमीर आदमी या मध्यम वर्ग कहता है मोदिया घर दे ही दिया है खाने को हर महीने खैरात में राशन मिल ही जाता है फिर ये लोग काम क्यों करेगा ?
जो ये बात कह रहा होता है वास्तव में वो असंतोष का शिकार होता है और जो सुन रहा होता है उसके मन में भी असंतोष का बीज बो डालता है। इस समाज का सबसे बड़ा दुश्मन अगर कोई है तो वो है Partiality। एक को दो और दूसरे को ना दो ऐसी मुफ्त की रेवड़ी इस समाज को काल कोठडी में धकेल देती है। इसलिए मुफ्त बिजली सभी को दिल्ली की तरह नही या फिर मोदी जी के राशन की तरह नहीं।
ये विष के समान है , मुफ्त शिक्षा मतलब स्कूल अभी जो भी व्यवस्था लागू है वो लागू रहें लेकिन प्राइवेट स्कूल का खर्च प्राइवेट कॉलेज का खर्च सरकार वहन करें और ज्यादा से ज्यादा प्राइवेट स्कूल और कॉलेज खोलने पर जोड़ दिया जाए जिससे की क्वालिटी एजुकेशन भी मिले और बेहतर शिक्षा देने की प्रतिस्पर्धा भी बढ़े, कॉलेज की फीस बस सरकार उठाए अब सवाल है पैसा कहा से आएगा ? शराब और गुटखा पर टैक्स लगा दीजिए इस सुझाव से मेरा पान महंगा हो जाएगा मगर सह लेंगे, पेट्रोल और डीजल पर एजुकेशन सेस लगे सह लेंगे, कॉरपोरेट पर भी एजुकेशन सेस लगे, बाद बाकी जो नियम लगाकर बिजली मुफ्त की गई वही नियम शिक्षा पर भी लागू करे सरकार, स्वास्थ्य पर भी मोटे तौर पर इन्ही नियमों को लगाकर मुफ्त किया जा सकता है। और जब ये सब मुफ्त में आएगा फिर पानी तो मुफ्त हो ही जायेगा साला मोटर बिजली से चलता है बिजली मुफ्त मतलब पानी मुफ्त।
अब मजदूर दिवस के अवसर पर निजाम से कुछ ज्यादा ही उम्मीद लगा ली शायद ! भाईयो और बहनों अरे ये वो निजाम है जो रातों रात नोट बंदी करने की इक्षा शक्ति तो रखते हैं, मगर क्या रातों रात ये घोषणा कर पाएंगे ! नही मोदी जी आपसे न हो पाएगा, लेकिन चलिए उम्मीद तो कर ही सकते हैं पप्पू करे या फेकू मुझे कोई फर्क नही पड़ता मुझे सिर्फ इस समाज की पड़ी है सियासत से मेरा कोई नाता नहीं
भाईयो एवम बहनों जोर से कहिए भारत माता की…..
जय
उम्मीद है आप इस लेख को पढ़कर कुछ तो अच्छा कर ही पाएंगे एक बार फिर से मजदूर दिवस की ढेरो शुभकामनाए। मिलते हैं ब्रेक के बाद #shubhendukecomments