तालिबान और भारत का अतीत – भारत और तालेबान के बीच क्या भूतकाल में कोई संबंध हैं? अगर अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन (https://www.washingtonpost.com/opinions/2021/07/13/pakistan-should-not-object-if-india-talking-with-taliban/) में देखें तो इसके बारे में लिखा जाएगा हो रहा है। हालाँकि भारतीय जनमानस आन्दोलन के बारे में जैसा सोचते हैं, केवल अपने होश से देखते हैं तो जालिमों को कट्टरपंथ का चेहरा माना जाता है। जॉब के होश से देखने पर इस सोच में क्या बदलाव आना चाहिए? काफी पहले जब पूरी तरह से आन्दोलन अस्तित्व में नहीं आया था, उस दौर में राहुल संकृत्यायन ने “दकुंडा” नाम की एक पुस्तक का अनुवाद किया था। ये किताब (https://amzn.to/3ANk5PZ) अफगानिस्तान की सामंती व्यवस्था के बारे में है। इसका नायक काफी हद तक कम्युनिस्ट है और बाल-विवाह और दूसरे मजहबी कट्टरपंथी सोच की शिकार के संबंध में है। जब इस दौर के बाद रूसी फौजें लौटीं, तब 1989 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा था। क्या इस बार भी अमेरिकी सेना के लौटने पर ऐसा होगा? अगर अब्दुल सलाम ज़ईफ़ जैसे कट्टरपंथी नेताओं की बात करें तो उनके भारत से पुराने ताल्लुकत रहे हैं। उनकी अपनी सुनाती कहानी, “मय लाइफ विथ बुक द बैंड” (https://amzn.to/37PYrhB) भारत से 2010 में प्रकाशित हुई थी। अपनी इस किताब में वो पाकिस्तान से खासे नाराज़ दीखते हैं। पाकिस्तान को वो दोमुंहा, दोनों तरफ से धोखा देने वाले दावेदार हैं। ऐसे ही दूसरे आबादी नेता अब्दुल गनी बरादर हैं। उन्हें भी पाकिस्तान ने गिरफ्तार करने के बाद अमेरिका को सौंप दिया था। भारत के प्रतिनिधियों से वो 2018 में ही मास्को में मिल गए हैं। पाकिस्तान, तालेबान की भारत से ऐसी मुलाकातों को अपना जंपक फेल होने के तौर पर देखता है। इस वजह से आपके मुल्क में, आपकी ही पले-बढ़ी गलती के हमले को वो बार-बार भारत दर्ज कराने की हरकतें करता रहता है। सवाल ये है कि इन सभी संपर्क का भारत पर क्या असर होगा? एक छोटी सी चर्चा इसी के बारे में…
मैं सोच ही रहा था कि आपका भी चैनल होना चाहिए YouTube पर
बधाई हो
शुभकामनाएं
आवाज बहुत मद्धम है!
😊😊👍