दुर्योधन मंदिर, युधिष्ठिर, और हिंदुत्व पोरुवज्ह्य (पोरुवाझी) नाम का ये गांव कुन्नाथूर (कुन्नाथूर) तालुक में आता है। ये कोल्लम जिले का उत्तरी छोर होगा। एनएच 47 से यहां संदेश जा सकता है। यहां एक मंदिर है जिसकी बात ये है कि इस मंदिर में कोई चिपकी नहीं है ! (https://www.keralatourism.org/destination/malanada-duryodhana-temple-kollam/311) अगर आप पूछेंगे कि ऐसा क्यों है तो आपको महाभारत काल की कथा सुनाई देगी। कथा के अनुसार एक बार घोड़े पर बैठे कुछ लोग किसी को ढूंढते हुए इस क्षेत्र में आते हैं। ये दुर्योधन (दुर्योधन) थे, पांडवों के अज्ञातवास के समय वैसे भी ढूंढ रहे थे। परसे राजकुमार को मालानंद अप्पोप्पन (प्रमुख / पुजारी) का घर दिखाते हैं। पानी मोटे तौर पर उनके अनुसार ताड़ का रस दिया गया। इतनी देर में महिला का ध्यान की प्यासा व्यक्ति क्षत्रिय है और राजकुमार का भी ध्यान की पानी देने वाली ने कुर्थलिया पहनावा है जो कि शूद्र आकर्षक हैं। महिला को लगा की उसने क्षत्रिय को खाने की चीजें देकर भूल कर दी है। वो दुर्योधन से माफ़ी लगी तो दुर्योधन ने कहा कि भूख और पन्नों में ऐसा किया गया? इसके बाद दुर्योधन ने उनकी पूजा पद्दतियों और सिद्धियों के बारे में बताया। वहीँ पहाड़ी पर दुर्योधन ने प्रजा की वजह के लिए शिव की पूजा की और बन जाते हैं कई एकड़ जमीन वहां मंदिर बनाने के लिए दान कर गए। आज जो मंदिर इस जगह है वो दुर्योधन के दान की जमीं पर बना है। इसका मुख्य देवता भी दुर्योधन है। दुर्योधन के अलावा यहां उनकी माता गांधारी होती, उनकी बहन दुस्सला, उनके मित्र कर्ण, और गुरु द्रोण की भी पूजा है। इस मंदिर के पुजारी कुरवा जाति के होते हैं (दुनिया के हर मंदिर का पुजारी ब्राह्मण नहीं होता)। मंदिर का प्रचार चलाने के लिए सात सदस्यों की एक कमिटी का चयन होता है। इस मंदिर का टेक्सक्स आज भी दुर्योधन के नाम से जमा किया जाता है। हर साल यहां एक बड़ा सा फेयर भी लगता है जो काफी मशहूर है और उसके लिए प्रशासन को भी एक लाख दो लाख लोगों के आने का अधिकार है। (https://en.wikipedia.org/wiki/Poruvazhy_Peruviruthy_Malanada_Temple)
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