बिहार में जाति आधारित जनगणना करवाते समय संभवतः सत्ताधारी राजद और जद(यू) नेताओं ने सोचा होगा कि इसके नतीजे उन्हें जातिवादी राजनीति करने में मदद देंगे, लेकिन अब जब पिछड़ा वर्ग 27 प्रतिशत के साथ पूरी विधानसभा पर कब्जा जमाये और अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36% होने के बाद भी प्रतिनिधित्व विहीन दिखाई देने लगा है, तो उनका दाँव उनपर ही उल्टा पड़ गया है! बिहार के मुश्किल जाति आधारित समीकरणों को समझने के लिए हम चल रहे हैं सौ वर्ष पीछे की जाति आधारित जनगणना पर जब 1931 में ऐसी जनगणना हुई थी. उसकी तुलना अगर आज के 2023 के बिहार के जाति सर्वेक्षण से करें तो क्या नजर आता है?
वीडियो में इस्तेमाल किया गया डाटा एनालिसिस आप एक्स(ट्विटर) पर देख सकते हैं – https://twitter.com/ChinmayTumbe/status/1709082953832411271
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