हार गया सब कुछ, अब कुछ नहीं मेरे पास,
थोड़ा दर्द, थोड़ी उम्मीद , थोड़ा मन है निराश।
कुछ उम्मीदों को सिमट कर,
ख्वाब में घर बनाता हूँ,
हार गया हूं फिर भी,
हिम्मत से खड़ा हो जाता हूं,
हिम्मत से कदम बढ़ाता हूं।
थकान इतनी है,
टूट कर बिखर जाता हूं,
उम्मीदों को सिमट कर,
हिम्मत से कदम बढ़ाता हूं,
आशाओं के दीप जलाकर,
मैं फिर खड़ा हो जाता हूं।
सोचता हूं अक्सर, सोचता हूं मैं अक्सर
केवल मैं नहीं हारा इस दुनिया में,
हारे बहुत हैं,
तो क्यों बैठ गया, मैं थक कर।
इस सोच से कुछ हिम्मत मिल जाती है,
थकान काफी हद तक मिट जाती है।
यह सब सोचकर ऐसा लगता है मुझको ,
इंसान हार सकता पर सोच नहीं,
हार गया तो क्या,
हिम्मत है मुझ मैं,
मैं कोई कमजोर नहीं।
अंकित पौरुष