Engineering Days | Friendship day | Poetry By Ankit Paurush | The Ankit Paurush Show
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मैने पूछा जिंदगी से कुछ हसीन पल याद दिला,
जिंदगी ने बोला कुछ क्या,
मैं तुझे पूरे चार साल के पिक्चर याद दिलाती हूं,
एक एक हसीन पल से मिलवाती हूं।
भूल गया वो इंजीनियरिंग,
जिसमें हर दिन हसीन था,
हर दिन रंगीन था,
कॉलेज था, कैंटीन था,
यार थे, दिल दार थे,
वो इंजीनियरिंग के चार साल थे।
जब पहली बार तू आया था,
तेरे जैसे और भी तेरे साथी आए थे,
तेरे मम्मी पापा तुझको,
कॉलेज छोड़ने आए थे,
बेचारे बड़े परेशान थे,
मेरा लड़का अकेला कैसे रहेगा,
उनको क्या पता था,
कमीनो से यारी होने वाली है,
चार साल की इंजीनियरिंग मस्ती से कटने वाली है।
जब हॉस्टल में पधारे,
सीनियर्स कर रहे थे इंतजार हमारे,
बिना रैगिंग दिए काम न चलेगा,
थर्ड बटन, ninety जैसा साल भर चलेगा,
बाल कुछ कर रखे थे बड़े,
सीनियर्स सामने हो गए खड़े,
गोले में सीनियर्स बीच में हम,
रैगिंग का दौर फस गए हम,
सीनियर्स ने बोला गुलाब कि विशेषता बताओ,
हमने बोला
गुलाब खुशबू देता है,
गुलाब भिन भिन रंग का होता है,
गुलाब में कांटे होते हैं,
फिर गुलाब हटाकर अपना नितंब लगाओ,
ऐसा सीनियर्स का आदेश आया,
फिर क्या बोलना पड़ा सीनियर्स थे,
हमारा नितंब खुशबू देता है,
भिन भिन रंग का होता है,
हमारे नितंब में कांटे होते हैं,
और कांटों में फूल खिलते है,
सीनियर्स मजे ले रहे थे दम दमा दम,
वो लोट पोट हो रहे थे और देख रहे थे हम।
सुबह सुबह पूछा अमित बिहारी से,
भाई कहां से आ रहे हो,
लटकी सूरत छोटे बाल,
जो कभी जुल्फें हुआ करती थी,
अमित बिहारी की लटाएं,
यहां वहां झूमा करती थी,
आज शहीद हो गई हैं,
उसी का गम बना के आ रहे हैं,
हम अमित कुमार है बक्सर से,
शिकार है रैगिंग के,
बाल कटा के आ रहे हैं।
बॉयज हॉस्टल में इश्क का मौसम चल रहा था,
इश्क परवान चढ़ रहा था,
ये तेरी वाली, ये मेरी वाली,
तेरे भाई को प्यार हो गया,
आज से ये तेरी भाभी,
जैसे बारिश में मेंडक उछल ते हैं,
ऐसे ही दिल की धड़कन उछल ती थी,
हर रात महफिल सजती थी,
यार थे दिल दार थे,
वो इंजीनियरिंग के चार साल थे।
हर दिन हसीन था,
हर दिन रंगीन था,
यार थे, दिलदार थे,
वो कॉलेज के चार साल थे।
हस्ते खेलते फर्स्ट ईयर निकल गया,
जब रिजल्ट आया,
तो दिल पिघल गया,
बैक पर बैक का सिलसिला चल गया,
जिन जिन की बैक आई उनसे दिल मिल गया,
अपनी बैक से ज्यादा दुख ऑल क्लियर वालों का होता था,
इन सब यादों से फर्स्ट ईयर कंप्लीट होता था।
सेकंड ईयर, थर्ड ईयर भी बड़े हसीन थे,
दोस्तों के साथ हर दिन रंगीन थे,
बोरियत नाम जैसी चीज न थी,
प्रॉफिट लॉस जैसी लकीर न थी,
जब पैसे होते थे तो तेरा यार आज खिलाएगा,
नहीं होते थे तो तू आज यार को खिलाएगा।
सारे हॉस्टल्स के रूम अपने रूम थे,
एक यार ने अपना रूम किराए पर चढ़ा दिया,
दूसरा यार का रूम को अपना रूम बना लिया।
वो कॉलेज की एक एक क्लास याद आती हैं,
कॉलेज की कैंटीन, लाइब्रेरी याद आती है,
हर एक दोस्त मुझे कॉलेज का याद आता है,
दोस्ती का मायना कॉलेज सिखाता है।
फाइनल ईयर की घड़ी आई,
हम सब सीरियस हो गए,
कैरियर बनाने के लिया,
किताबों में खो गए,
कुछ जल्दी, कुछ लेट,
कंपनीज में प्लेस हो गए।
फाइनल ईयर खतम हो गया,
जुदा होने की घड़ी आई,
हम सब दोस्तों की आंख भर आई,
क्या पता था,
वो चार साल इतनी जल्दी गुजर जाएंगे,
साथ में थे कभी, अब अलग अलग भटक जाएंगे।
वो चार साल गुजर गए,
कैसे गुजर गए,
सालों साल निकल गए,
वो चार साल किधर गए।
कभी यारों के साथ हर शाम महफिल बन जाया करती थी,
अब शाम सुबह होने का इंतजार करती है।
यारी जवान बना देती है,
महफिल में चार चांद लगा देती है।
अगर चार यार न बनाए तो क्या बनाया,
जब भी खुद को अकेला पाया,
कोई न कोई यार ही नजर आया।
कभी यारों के साथ हर शाम महफिल बन जाया करती थी,
अब शाम सुबह होने का इंतजार करती है।
जाती न पूछो साधु की पूछ लीजियो ज्ञान,
कुछ ऐसा ही रिश्ता कॉलेज में नजर आता था,
जात धर्म , प्रॉफिट लॉस से बड़ा दोस्ती का रिश्ता बन जाता था।
अगर वो कॉलेज के यार तुम्हारे पड़ोसी बन जाए
तो सोचो जिंदगी वापस कितनी रंगीन हो जाए,
घुल जाए, मिल जाए,
यारों के परिवार के साथ अपना परिवार मिल जाए,
बीबी, बच्चों सबको कॉलेज days की स्टोरी सुनाए।
Lajawb poetry. Really loved it very much ❤ ♥ 👍👍👍👍👍👍
Very nice and thoughtful!! Took us back in the days..
Bahut badiya
Bahot khoob Mr. Paurush ji👌🫰
😁😁😁👍