किसी भी राष्ट्र के मूल में कुछ तत्व निहित होते हैं, जिनके बल पर वह देश आगे बढ़ता है और समाज के विभिन्न वर्गों को एकता के सूत्र में पिरोए रखता है। भारत के एक राष्ट्र के रूप में, इसके मूल में, सनातन हिंदू संस्कृति का आधार है जो हजारों वर्षों से भारत को आज भी भारत के मूल रूप में ही जीवित रखे हुए है। अन्यथा, पिछले लगभग 1000 वर्षों में भारत को तोड़ने के लिए अरब के आक्रांताओं और अंग्रेजो द्वारा अनेकानेक प्रयास किए गए हैं। अरब के आक्रांताओं एवं अंग्रेजों ने बहुत अधिक प्रयास किए कि किसी तरह भारतीय मूल संस्कृति को तहस नहस किया जाय, शिक्षा पद्धति को ध्वस्त किया जाय, बलात हिंदुओं का धर्म परिवर्तन किया जाय, आदि आदि। इन प्रयासों में उन्हें कुछ सफलता तो अवश्य मिली परंतु पूर्ण रूप से भारतीय संस्कृति को समाप्त नहीं कर पाए। जबकि कई अन्य देशों (ईरान, लेबनान, इंडोनेशिया, मिस्त्र, ग्रीक आदि) में इनके यही प्रयास पूर्ण रूप से सफल रहे एवं वहां के लगभग सम्पूर्ण नागरिकों को इस्लाम में परिवर्तित करने में वे सफल रहे। भारत में चूंकि सनातन हिंदू धर्म का बोलबाला है अतः यहां इन तत्वों को आज तक सफलता नहीं मिली है, हालांकि इनके प्रयास अभी भी जारी हैं। भारतीय सनातन संस्कृति ने न केवल भारत को एकता के सूत्र में पिरोया है बल्कि पूरे विश्व को ही भारत के साथ जोड़ा है। अब तो भारत में ‘एक भारत – श्रेष्ठ भारत’ के रूप में एक महत्वपूर्ण अध्याय लिखा जा रहा है।

भारत में प्राचीन ऋषियों और मनीषियों की परंपरा एक गृहस्थ परंपरा रही है और उस गृहस्थ परंपरा में आध्यात्म के साथ-साथ सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक चिंतन भी जुड़ा रहा है। अपने राज्य के ऋषियों के जीवन यापन की चिंता जहां राजा की प्राथमिकता में रहता था वहीं राजा को राज्य चलाने के लिए उचित मार्गदर्शन देने का सांस्कृतिक कार्य उन ऋषि-मुनियों द्वारा किया जाता था। इसलिए उन मनीषियों का चिंतन आर्थिक दिशा में भी सदैव बना रहता था। राजा अपने राज्य का विस्तार करने के साथ-साथ उसे आर्थिक रूप से और अधिक समृद्ध कैसे बनाएं इसके बारे में ऋषि-मुनियों के साथ बैठकर ही राज दरबार में चिंतन होता था और राज्य आर्थिक रूप से सशक्त बन जाते थे। इसलिए भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था।

भारत की कुटुंब व्यवस्था अपने आप में एक अनूठी कुटुंब व्यवस्था है। भारत के संयुक्त परिवार विश्व के लिए आश्चर्य का विषय रहे हैं। इन दिनों संयुक्त परिवार विघटित अवश्य होते जा रहे हैं, लेकिन बावजूद उसके आपातकाल में एक दूसरे के लिए सबके एकत्र होने की जो जिजीविषा उन सबके भीतर है वह भारत में कुटुंब व्यवस्था का अनूठा स्वरूप है, तथा यह स्वरूप देश की अर्थव्यवस्था को भी आगे बढ़ाने का काम करता है। एक परिवार में दो हाथ कमाने जाते हों और वहीं दस हाथ कमाने जाते हों, दोनों बातों का फर्क होता है। इसलिए कुटुंब व्यवस्था में एक दूसरे के लिए आपस में खड़े होने का जो व्यवहार होता है,वह व्यवहार आर्थिक चिंतन के साथ भी जुड़ कर परिवार को आगे बढ़ाने का काम करता है।

भारत में प्राचीन काल से पर्यावरण को पर्याप्त महत्व दिया जाता रहा है। देश में नदियां शुद्ध रहती थी वृक्ष घने जंगलों के रूप में रहते थे और पूरा पर्यावरण शुद्ध रहता था। पूरे विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां पर नदियों को, पहाड़ों को, वृक्षों को एवं धरती को पूजा जाता है। पूरे पर्यावरण से परिवार का जुड़ाव धार्मिक रूप से रहता है। बहुत सारे व्रत और त्यौहार पर्यावरण से जुड़े हुए रहते हैं। इसलिए सनातन काल से भारत में पर्यावरण की चिंता रही है। जैविक विविधता ने भी भारत के सनातन काल को समृद्ध किया। पर्यावरण संरक्षण को उस समय में नैतिक कर्तव्य माना गया है। बाद में जब मुगलों ने भारत में शासन किया और हिंदुओं का धर्मांतरण किया तो बहुत सारी परंपराएं भी खंडित होने लगी। सनातन काल में जिस गौ माता को पूजा जाता था मुस्लिम उस गौ माता को खाने लगे। मुस्लिम शासन काल भारत के पतन और विखंडन का समय था। उनके बाद जब इस देश में अंग्रेज आ गए तो उनकी निगाह में भारतीय अपरिपक्व और मूर्ख रहे इन दोनों के समय में, मुगलों ने और अंग्रेजों ने भारत को दोनों हाथों से लूटकर खाली कर दिया। जो भारतीय अर्थव्यवस्था कभी विश्व की अर्थव्यवस्था का 33 प्रतिशत हिस्सा थी वह बहुत नीचे जा चुकी थी। पर्यावरण बिखरने लगा। नालंदा जैसे विश्वविद्यालय को नुकसान पहुंचाया गया। उसकी लाइब्रेरी को जला दिया गया। इस सब के पीछे भारत को ज्ञान के स्तर पर समाप्त करने की साजिश काम कर रही थी। मुस्लिम शासक हिंदुओं के धर्मांतरण पर, हिंदुओं को मारने पर और उनकी संपत्ति हड़पने पर काम कर रहे थे। ऐसा कहा जाता है कि औरंगजेब ब्राह्मणों को मारकर रोज सवा मन जनेऊ जलाता था। मंदिरों को नष्ट कर उन पर मस्जिदें बना दी गई। दक्षिण ने अपने आपको इस मुस्लिम आक्रमण से बहुत बचाया और इसीलिए भारत के दक्षिण भाग में आज भी समृद्ध मंदिर हैं, जो उस कालखंड के गौरव की प्रस्तुति के रूप में हमारे सामने खड़े हुए हैं। इसी कालखंड में भारत का भक्ति काल जरूर समृद्ध हुआ और उसने भारत के निवासियों को मानसिक ताकत प्रदान की। तुलसीदास की भक्ति के सामने अकबर जैसा आदमी डर गया और झुक गया।

प्राचीन भारत में धार्मिक आयोजनों एवं धार्मिक पर्यटन का भारत के आर्थिक विकास पर पूर्ण प्रभाव रहा है। प्राचीन भारत में धार्मिक आयोजनों से अर्थव्यवस्था को बल मिलता रहा है इसलिए उस कालखंड में धार्मिक आयोजन निरंतर होते रहे हैं। भारत की ऋषि परंपरा ने जन सामान्य को उन सबके साथ जोड़ कर रखा था। त्यौहारों की निरंतरता और उन्हें मनाए जाने का उत्साह भारत की तत्कालीन अर्थव्यवस्था को गति देता रहा है। आज के वक्त में भी धार्मिक पर्यटन के चलते भारतीय पर्यटन उद्योग में रोजगार के नए अवसर निर्मित हो रहे हैं। वर्तमान केंद्र सरकार के द्वारा भी पिछले 10 वर्षों में भारत में विभिन्न तीर्थस्थलों को विकसित किया जा रहा है। अभी तक जो तीर्थस्थल विकसित हो चुके हैं,वहां का पर्यटन एकदम से कई गुना बढ़ गया है। वहां की आर्थिक समृद्धि बढ़ गई है। वहां के लोगों का जीवन स्तर बढ़ गया है। वहां संपत्तियों के दाम बढ़ गए हैं। इसलिए इस दिशा में सरकार अब आगे और कार्य करने जा रही है तथा कई नवीन धार्मिक कारीडोर बनाने जा रही है,क्योंकि इससे रोजगार के लाखों नए अवसर उत्पन्न होंगे।

भारतीय संस्कृति के अनुसार, व्यक्ति के ऊपर परिवार, समाज, राष्ट्र, सृष्टि एवं परमेशटी को क्रमशः माना गया है। अतः भारतीय विचारधारा इस्लाम एवं चर्च की विचारधारा के ठीक विपरीत आचरण करना सिखाती है, विशेष रूप से सनातन संस्कृति में जो व्यक्ति जितना विशेष होगा वह उतना ही विनयपूर्ण होगा और इस नाते भारतीय सनातन संस्कृति अविभाजनकारी दर्शन पर चलकर सर्वसमावेशी है। इसमें ईश्वरीय भाव जाहिर होता है। जो मेरे अंदर है वही आपके अंदर भी है अर्थात मुझमें भी ईश्वर है और आपमें भी ईश्वर का वास है। इस प्रकार प्रत्येक भारतीय, चाहे वह किसी भी जाति का हो, किसी भी मत, पंथ को मानने वाला हो, अपने आप को भारत माता का सपूत कहने में गर्व का अनुभव करता है। और, इसलिए भारतीय सनातन संस्कृति अन्य संस्कृतियों को भी अपने आप में आत्मसात करने की क्षमता रखती है। इतिहास में इस प्रकार के कई उदाहरण दिखाई देते हैं। जैसे पारसी आज अपने मूल देश में नहीं बच पाए हैं लेकिन भारत में वे रच बस गए हैं। इसी प्रकार इस्लाम पंथ को मानने वाले लगभग सभी फिर्के भारत में निवास करते हैं जबकि विश्व के कई इस्लामी देशों में केवल एक विशेष प्रकार के फिर्के पाए जाते हैं।

भारतीय संस्कृति में एकात्मता का सोच है। भारत पूरे विश्व की मंगल कामना करता है एवं “वसुधैव कुटुम्बकम”, “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय”, जैसे सिद्धांतो पर विश्वास करता है। चाहे किसी भी व्यक्ति की कोई भी पूजा पद्धति क्यों न हो, पूरे भारत में एक जैसा हिंदू दर्शन है। हिंदू दर्शन ही भारत में राष्ट्र तत्व है जो पश्चिम की सोच से अलग है। हिंदू दर्शन एक मौलिक दर्शन है।

भारतीय सनातन संस्कृति का पालन करते हुए भारत के आर्थिक विकास को देखकर अब विकसित देश भी भारतीय संस्कृति को श्रेष्ठ मानते हुए इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं ताकि वे अपनी आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं को हल कर सकें। कुल मिलाकर अब भारतीय आर्थिक दर्शन ही पूरे विश्व को बचा सकता है, क्योंकि वह कर्म आधारित है और एकात्म मानवता पर केंद्रित है।

By Prahlad Sabnani

लेखक परिचय :- श्री प्रह्लाद सबनानी, उप-महाप्रबंधक के पद पर रहते हुए भारतीय स्टेट बैंक, कारपोरेट केंद्र, मुम्बई से सेवा निवृत हुए है। आपने बैंक में उप-महाप्रबंधक (आस्ति देयता प्रबंधन), क्षेत्रीय प्रबंधक (दो विभिन्न स्थानों पर) पदों पर रहते हुए ग्रामीण, अर्ध-शहरी एवं शहरी शाखाओं का नियंत्रण किया। आपने शाखा प्रबंधक (सहायक महाप्रबंधक) के पद पर रहते हुए, नई दिल्ली स्थिति महानगरीय शाखा का सफलता पूर्वक संचालन किया। आप बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग, कारपोरेट केंद्र, मुम्बई में मुख्य प्रबंधक के पद पर कार्यरत रहे। आपने बैंक में विभिन पदों पर रहते हुए 40 वर्षों का बैंकिंग अनुभव प्राप्त किया। आपने बैंकिंग एवं वित्तीय पत्रिकाओं के लिए विभिन्न विषयों पर लेख लिखे हैं एवं विभिन्न बैंकिंग सम्मेलनों (BANCON) में शोधपत्र भी प्रस्तुत किए हैं। श्री सबनानी ने व्यवसाय प्रशासन में स्नात्तकोतर (MBA) की डिग्री, बैंकिंग एवं वित्त में विशेषज्ञता के साथ, IGNOU, नई दिल्ली से एवं MA (अर्थशास्त्र) की डिग्री, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर से प्राप्त की। आपने CAIIB, बैंक प्रबंधन में डिप्लोमा (DBM), मानव संसाधन प्रबंधन में डिप्लोमा (DHRM) एवं वित्तीय सेवाओं में डिप्लोमा (DFS) भारतीय बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थान (IIBF), मुंबई से प्राप्त किया। आपको भारतीय बैंक संघ (IBA), मुंबई द्वारा प्रतिष्ठित “C.H.Bhabha Banking Research Scholarship” प्रदान की गई थी, जिसके अंतर्गत आपने “शाखा लाभप्रदता - इसके सही आँकलन की पद्धति” विषय पर शोध कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न किया। आप तीन पुस्तकों के लेखक भी रहे हैं - (i) विश्व व्यापार संगठन: भारतीय बैंकिंग एवं उद्योग पर प्रभाव (ii) बैंकिंग टुडे एवं (iii) बैंकिंग अप्डेट Note:- किसी भी तरह के विवाद उत्प्पन होने की स्थिति में इसकी जिम्मेदारी चैनल या संस्थान या फिर news website की नही होगी लेखक इसके लिए स्वयम जिम्मेदार होगा, संसथान में काम या सहयोग देने वाले लोगो पर ही मुकदमा दायर किया जा सकता है. कोर्ट के आदेश के बाद ही लेखक की सुचना मुहैया करवाई जाएगी धन्यवाद

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You missed