जितेंद्र कुमार सिन्हा, पटना, 27 दिसंबर, 2024 ::

नववर्ष की खुशी विभिन्न देशों में विभिन्न परंपराओं और सांस्कृतिक मान्यताओं के साथ मनाई जाती है। भारत, जो विविध संस्कृतियों और परंपराओं का देश है, यहां नववर्ष का उत्सव विभिन्न समयों और तरीकों से मनाया जाता है।

दुनिया के अधिकांश देश पहली जनवरी को नववर्ष मनाते हैं। इसके पीछे हजारों साल पुरानी कहानी है। 45 ईसा पूर्व, रोमन राजा जूलियस सीजर ने पहली बार पहली जनवरी को नववर्ष के रूप में मान्यता दी। इससे पहले अधिकांश ईसाई बाहुल्य देशों में 25 मार्च और 25 दिसंबर को नया साल मनाया जाता था।

भारत में, हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष का प्रारंभ माना जाता है। इसे विक्रम संवत के नए साल की शुरुआत भी कहा जाता है। इस दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि अप्रैल महीने में आती है।

कैलेंडर नववर्ष के आगमन पर लोग 31 दिसंबर की रात को जश्न मनाते हैं। नए साल के सही ढंग से बीतने के लिए कई लोग ग्रह-गोचर की जानकारी प्राप्त करने में व्यस्त रहते हैं। इस अवसर पर ज्योतिषी भविष्यवाणियां करते हैं और ग्रह-गोचर के प्रभावों को शांत करने के उपाय सुझाते हैं।

ग्रेगोरियन कैलेंडर का इतिहास: जूलियस सीजर ने खगोलविदों के सहयोग से पृथ्वी की सूर्य की परिक्रमा के समय की गणना की। उन्होंने पाया कि पृथ्वी को सूर्य के चक्कर लगाने में 365 दिन और छह घंटे लगते हैं। इसलिए उन्होंने रोमन कैलेंडर को 365 दिन का बनाया और हर चार साल बाद फरवरी के महीने को 29 दिनों का किया। 46 ईसा पूर्व जूलियन कैलेंडर जारी किया गया। ग्रेगोरियन कैलेंडर को 1582 में इटली, फ्रांस, स्पेन, और पुर्तगाल ने अपनाया। भारत ने 1752 में ब्रिटिश शासन के तहत इसे स्वीकार किया। इसे अंग्रेजी कैलेंडर भी कहते हैं।

भारत में नववर्ष की विविधता: भारत के विभिन्न राज्यों में नववर्ष विभिन्न नामों और परंपराओं से मनाया जाता है। जैसे:

  • उगाडी (तेलुगू न्यू ईयर)
  • गुड़ी पड़वा (मराठी नववर्ष)
  • बैसाखी (पंजाबी न्यू ईयर)
  • पुथंडु (तमिल न्यू ईयर)
  • बोहाग बिहू (असमी नववर्ष)
  • बंगाली नववर्ष
  • गुजराती नववर्ष
  • विषु (मलयालम नववर्ष)
  • नवरेह (कश्मीरी नववर्ष)
  • हिजरी (इस्लामिक नववर्ष)

गुड़ी पड़वा के दिन हिंदू नव संवत्सर का आरंभ माना जाता है। इसे चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस दिन को विजय पताका के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा और आंध्र प्रदेश व कर्नाटक में इसे उगादी कहते हैं। इसी दिन चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ होता है।

सनातन धर्म और आधुनिकता का परिप्रेक्ष्य: कैलेंडर नववर्ष (1 जनवरी) पर लोग 31 दिसंबर की रात केक काटते हैं, बत्तियां बुझाते हैं, और आतिशबाजी करते हैं। यह परंपरा आधुनिकता का प्रतीक मानी जाती है। परंतु सनातन धर्म में दीप जलाने को शुभ और अंधकार को अज्ञान का प्रतीक माना गया है। दीपक और ज्योति का सनातन संस्कृति में विशेष महत्व है। दीपक जलाना शुभ कार्यों का प्रतीक है, जबकि दीप बुझाना अपशगुन माना जाता है।

आजकल केक काटने की परंपरा हर धर्म और संस्कृति में प्रवेश कर गई है। परंतु यह सनातन संस्कृति के विपरीत है। केक पर मोमबत्ती जलाकर उसे बुझाने और फिर केक काटने की प्रथा अंधकार और एकाकीपन का संदेश देती है। इसके विपरीत, सनातन धर्म में मोतीचूर के लड्डू को प्रसाद के रूप में बांटने का महत्व है, जो एकता और सामूहिकता का प्रतीक है।

भारतीय संस्कृति का पुनरुत्थान: अब समय आ गया है कि हम भारतीय संस्कृति के मूल्यों को अपनाएं। शाकाहार, गुरुकुल शिक्षा पद्धति, और स्मार्ट विलेज का विकास भारतीयता को पुनः स्थापित करने में सहायक हो सकते हैं। गौ सेवा और बुजुर्गों का सम्मान हमारी संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। इनके बिना मोक्ष संभव नहीं है।

हम सभी को संकल्प लेना चाहिए कि भारतीय संस्कृति को पुनः अपनाकर अपनी जड़ों से जुड़ें और एक नई शुरुआत करें।

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