जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 16 मई, 2024 ::

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जेल से बाहर आते ही चुनाव मैदान में ताल ठोक कर भाजपा नेता एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की संभावनाओं पर संशय पैदा कर रहे हैं। कमोबेश सभी पार्टियाँ भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी की तरह गारंटीमय हो गये हैं। आप पार्टी लोक-लुभावनी 10 गारंटी दे रही है, जिसमें चीन से जमीन लेना, दो करोड़ रोजगार देना, हर घर को बिजली एवं गरीबों को मुफ्त बिजली, फसलों का समर्थन मूल्य पर बिक्री की गारंटी, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देना, अग्नि वीर योजना बंद करने, निःशुल्क शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं की गारंटी, सरकारी स्कूलों का कायाकल्प करने, शिक्षा का स्तर प्राइवेट स्कूलों की तुलना में और बेहतर बनाने को शामिल किया है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का प्रभाव दिल्ली और पंजाब में है, उन्हें अंतरिम जमानत ऐसे समय में मिली है, जब दोनों राज्यों में चुनाव प्रचार चरम पर है। अरविंद केजरीवाल यह भी जताने की कोशिश कर रहे हैं कि भाजपा और मोदी सरकार ने खुद को चुनावी हार से बचाने के लिए उन्हें जेल भेजा था, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें बाहर कर दिया है।

अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत ऐसे समय में मिली है, जब वे चुनाव मैदान में अपनी उपस्थिति न सिर्फ उनकी पार्टी, बल्कि इंडी गठबंधन के लिए भी काफी मददगार हो रही है। लिहाजा अब समूचे इंडी गठबंधन आक्रामक हो गये हैं। तीन चरण का चुनाव अभी बाकी है। अब जनता के रूख को देखना दिलचस्प हो गया है। अरविंद केजरीवाल की धुआं धार चुनाव प्रचार को देखते हुए दिल्ली और पंजाब की चुनावी ऊंट किस करवट बैठता है, इसके लिए चार जून को मतगणना के नतीजों का इंतजार करना होगा।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरह लगभग सभी पार्टियाँ लोगों को गारंटी देने में लगे हुए हैं। जबकि आप पार्टी लोकसभा की 22 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। वह भी दिल्ली, पंजाब और गुजरात में ही अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। वहीं राजद 23 सीटों पर, कांग्रेस उत्तर प्रदेश और बिहार को मिलाकर 19 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और देश में अपनी गारंटी लागू करने की गारंटी दे रही है। राजद एक करोड़ नौकरी देने की गारंटी दे रही है। टीएमसी सीएए हटाने और यूसीसी लागू नहीं करने की गारंटी दे रही है। समाजवादी पार्टी पूरे देश के किसानों का कर्ज माफ करने की बात कह रही है।
चुनाव प्रचार के जिस एकल ध्येय से सर्वोच्च न्यायालय ने अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत दी, उसमें अरविंद केजरीवाल धार दे रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उन्हीं की भाषा और कार्यशैली में जवाब दे रहे हैं।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अरविंद केजरीवाल की अंतरिम रिहाई लोगों को अटपटी लग रही है। क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने भी अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को वैध माना है और आबकारी मामले के मेरिट पर भी प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की है। लगता है कि ईडी की ठोस दलील की उपेक्षा हुई है। अब तो सभी विचाराधीन राजनीतिक कैदी को चुनाव प्रचार के लिए जेल से बाहर करना होगा। इससे जमानत का एक नया उदाहरण बन गया है। ऐसी स्थिति में समानता के सिद्धांत का विभाजन माना जा सकता है।

माना जाता है कि कानून और संवैधानिक व्यवस्था, कानून के सामने सभी बराबर हैं। लेकिन महज चुनाव प्रचार के लिए किसी को जमानत का आधार मानना कानून के सामने बराबरी का दावा को कमजोर करता है ऐसा प्रतीत होता है, क्योंकि अगर सामान्य आरोपी या व्यक्ति महज चुनाव प्रचार के लिए जमानत पा सकेगा, तब ही बराबरी की अवधारणा सही साबित होगी। जबकि ऐसा नहीं है। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी इडी के मामले में जेल में हैं और वे भी जमानत के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन उन्हें जमानत नहीं मिला है।

देश दुनिया की सबसे तेज गति वाली अर्थव्यवस्था में शामिल हैं। अभी पांचवें स्थान पर हैं और जल्द ही तीसरे स्थान पर होंगी। 21वीं सदी भारतीय युवाओं की है, हम चांद पर पहुंचे चुके हैं। मंगल के दरवाजे पर दस्तक दी गई है। ओलंपिक में भी उपलब्धियां रहीं है और ओलंपिक में पहली बार मेडलों की संख्या सैकड़ा हुआ है। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि आम चुनाव के चार चरण तक आते-आते देश का राजनीतिक विमर्श इतना नकारात्मक हो गया है कि अब लोगों को सकारात्मक मुद्दों पर चुनाव में मतदान करने के लिये प्रेरित नहीं किया जा सकता है। अब सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, मुद्दों में नकारात्मकता ही है। आज मतदाता क्षेत्रवाद, धर्म-संप्रदाय, जातिवाद और अन्य संकीर्णताएं के लुभावने वादों की जाल में उलझ गये है।

शराब नीति मामले में अरविंद केजरीवाल के सबसे निकटतम सहयोगी मनीष सिसोदिया अभी जेल में हैं। हो सकता है कि आप पार्टी मनीष सिसोदिया के लिए भी, चुनाव प्रचार के लिए जमानत की मांग करे। क्योंकि मनीष सिसोदिया भी अरविंद केजरीवाल जैसे ही आप पार्टी के महत्वपूर्ण नेता हैं, इसलिए वे भी जमानत की मांग कर सकते हैं। अब प्रश्न उठ सकता है कि जब पांच साल में एक बार आने वाले चुनाव के प्रचार के लिए अरविंद केजरीवाल को जमानत मिल सकती है, तो मनीष सिसोदिया को क्यों नहीं?
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