ये कथा है ऋषि शमीक की, जो कहीं से अपने आश्रम की ओर लौटते हुए कुरुक्षेत्र के मार्ग से अपने आश्रम की ओर लौट रहे थे। ये तब की घटना थी जब महाभारत का युद्ध बीते कुछ ही समय हुआ था। ऋषि को वहीँ कहीं से पक्षियों के चहकने की ध्वनि सुनाई दी। उन्होंने इधर उधर देखा, क्योंकि आस पास कोई पेड़ या ऐसा कुछ नहीं था जिसपर घोंसला होने और छोटे पक्षियों के होने की संभावना होती। सामने एक हाथी के गले में टांगने वाला बड़ा सा घंटा धरती में धंसा सा पड़ा था। ऋषि शमीक ने उसे उखाड़ा तो पाया कि उसके अन्दर चार छोटे-छोटे पक्षी के बच्चे हैं और वही चहचहा रहे थे!
वो घंटे के अन्दर कैसे पहुंचे? महाभारत के युद्ध में अर्जुन जब भगदत्त से लड़ रहे थे उसी वक्त एक चिड़िया उधर से उड़कर जा रही थी। अर्जुन का एक बाण चिड़िया का पेट चीरता हुआ निकल गया। चिड़िया तो मारी गयी किन्तु उसके अंडे जमीन पर आ गिरे। हाथियों-रथों से अंडे कुचले जाते, मगर भाग्य से एक हाथी का घंटा किसी प्रहार से टूटा और जब वो गिरा तो अण्डों को ढकता हुआ भूमि में थोड़ा धंस गया। धातु धूप से गर्म होती तो अण्डों को भी गर्मी मिल जाती, इस तरह अंडे फूटे और उसमें से चिड़िया के बच्चे निकल आये थे! ऋषि पक्षी शावकों को साथ ले गए और अपने शिष्यों से उनकी देखभाल करने कहा क्योंकि उनका मानना था कि संसार में दैव का ऐसा अनुकूल होना भी पूर्व जन्म के पुण्यों का फल होगा।
इन पक्षियों के पूर्व जन्म की कथा भी उतनी ही विचित्र है। ये किसी तपस्वी की संतान थे जिनकी परीक्षा लेने इंद्र एक वृद्ध पक्षी का रूप धारण करके आये। उन्होंने तपस्वी से कहा कि उन्हें भूख लगी है। जब तपस्वी ने उन्हें भोजन देना स्वीकार लिया, तब पक्षी ने कहा कि उसे तो मानव मांस प्रिय है! अब तपस्वी ने अपने चारों पुत्रों को बुलाकर अपने मांस से पक्षी को तृप्त करने कहा। जब चारों ऐसे कठिन कार्य के लिए तैयार नहीं हुए तो तपस्वी ने अपने पुत्रों को अगले जन्म में पक्षी होने का शाप दिया और स्वयं अपना मांस देने प्रस्तुत हुआ। तपस्वी के वो चारों पुत्र ही ये पक्षी थे! थोड़े बड़े होते ही पक्षी मनुष्यों की भांति बात करने लगे फिर ऋषि शमीक से आज्ञा लेकर विन्ध्यगिरी पर्वत पर निवास करने चले गए।
ये वो कथा है जिससे मार्कंडेय पुराण की करीब-करीब शुरुआत होती है। करीब-करीब शुरुआत इसलिए क्योंकि इन पक्षियों की कथा मार्कंडेय जी महर्षि जैमिनी को सुना रहे होते हैं। महाभारत से सम्बंधित प्रश्नों के उत्तर लेने के लिए मार्कंडेय जी ने महर्षि जैमिनी को इन्हीं पक्षियों के पास भेजा था। मार्कंडेय पुराण की बात क्यों? ऐसा सोच सकते हैं कि शायद दुर्गा पूजा नजदीक ही है। उस दौरान जिस दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है, वो मार्कंडेय पुराण का हिस्सा है, शायद इसलिए। ये पूरा सच नहीं होगा। ये पुराण इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ऋतध्वज और उनकी पत्नी मदालसा का आख्यान आता है। मदालसा ने अपने चौथे पुत्र अलर्क को राजनीति, धर्म और अध्यात्म का जो उपदेश दिया था वो अलर्कोपख्यान के नाम से प्रसिद्ध है।
जो पहली लोरी थी, वो भी संभवतः संस्कृत की ही रही होगी। मदालसा का ये भाग “स्त्री को देवी मत बनाओ”, “स्त्री को स्त्री ही रहने दो”, वाले तथाकथित नैरेटिव को भी तोड़ देता है। सामान्य स्थिति में वो कैसे गुरु भी होती है, या कहिये कि पहली गुरु स्त्री ही होगी, इस हिन्दू सत्य को स्थापित करने में ये काम आ सकता है। दुर्गा सप्तशती मार्कंडेय पुराण के सावर्णिक मन्वंतर की कथा के अंतर्गत आती है। यानि मन्वंतरों और 14 मनुओं की बात इस पुराण में होगी, इतना तो समझ में आता है। जब दूसरे मनु औत्तम की बात हो रही होती है तब ये बात होती है पत्नी-त्याग अपराध है। जिस प्रकार पत्नी अपने पति का त्याग नहीं कर सकती उसी प्रकार पति भी पत्नी का त्याग नहीं कर सकता।
हो सकता है कि कुछ लोग सवाल करें। कोई धूप में बाल पकाए बैठे कूढ़मगज चीर-युवा जबरन सवाल करे, या कुछ सचमुच के युवा अपनी जिज्ञासा में पूछें कि बताओ कहाँ लिखा है कि हिन्दुओं को पति का या पत्नी का त्याग नहीं करना चाहिए? ऐसी स्थितियों के लिए याद रखियेगा। जैसे मार्कंडेय पुराण में सावर्णि नाम के मनु की कथा में दुर्गा सप्तशती आती है, वैसे ही औत्तम नाम के मनु की कथा में पति-पत्नी के त्याग को अपराध बताया गया है।