📌 नई दिल्ली | 21 फरवरी 2025 – सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत क्रूरता का अपराध सिद्ध करने के लिए दहेज की मांग आवश्यक नहीं है। यह धारा 1983 में विवाहिता महिलाओं को पति और ससुराल पक्ष की प्रताड़ना से बचाने के लिए लागू की गई थी।
⚖ सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और प्रसन्ना बी वरले की बेंच ने कहा कि धारा 498A का सार क्रूरता के कार्य में ही है, न कि केवल दहेज की मांग में। इसलिए, यदि पति या ससुराल पक्ष किसी भी रूप में महिला के प्रति क्रूरता करते हैं, तो यह धारा 498A IPC के तहत दंडनीय अपराध माना जाएगा, भले ही दहेज की मांग न की गई हो।
बेंच ने कहा:
✅ क्रूरता का कोई भी रूप, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक, धारा 498A के तहत अपराध माना जाएगा।
✅ अगर महिला या उसके परिवार को किसी गैरकानूनी मांग के लिए प्रताड़ित किया जाता है, तो वह भी क्रूरता मानी जाएगी।
👉 आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को पलटा
इस मामले में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने आरोपी पति और ससुराल पक्ष को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि उनके खिलाफ दहेज की मांग का कोई सबूत नहीं है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को रद्द करते हुए कहा कि महिला को दी गई क्रूरता ही इस धारा के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है।
📜 1983 में क्यों लागू की गई थी धारा 498A?
1983 में संसद में दहेज उत्पीड़न और बढ़ती दहेज हत्याओं को रोकने के लिए यह कानून लाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस प्रावधान को केवल दहेज के मामलों के लिए ही नहीं, बल्कि पति या ससुराल वालों द्वारा महिलाओं पर होने वाली किसी भी तरह की क्रूरता को रोकने के लिए लागू किया गया था।
🚨 क्रूरता की परिभाषा
💢 शारीरिक या मानसिक यातना जो महिला के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती है।
💢 किसी भी प्रकार की गैरकानूनी मांग (दहेज सहित) के लिए महिला या उसके परिवार को परेशान करना।
🔎 निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने और धारा 498A के दायरे को स्पष्ट करने में अहम साबित होगा। अब सिर्फ दहेज की मांग नहीं, बल्कि किसी भी तरह की प्रताड़ना पर भी इस धारा के तहत कार्रवाई हो सकती है।