निकाय चुनाव के पहले चरण का मतदान खत्म होने के बाद निषाद पार्टी और सुभासपा के नेता नफा-नुकसान का आकलन करने में जुट गए हैं। क्योंकि दोनों दलों के ज्यादातर प्रत्याशी इसी चरण के चुनावी मैदान में हैं। इसलिए उनका मानना है कि यदि पहले चरण में प्रदर्शन ठीक रहा तो आगे का सियासी ताना-बाना भी ठीक रहेगा और लोकसभा चुनाव में भाजपा से मोलभाव का आधार भी बनेगा। दोनों दल निकाय चुनाव के पहले चरण को अपने लिए अग्निपरीक्षा मान रहे हैं।
निषाद पार्टी जहां सरकार में सहयोगी है, वहीं, योगी-1 सरकार की सहयोगी रह चुकी सुभासपा के भी लोकसभा चुनाव में फिर से भाजपा के साथ आने के कयास हैं। लोकसभा चुनाव में दोनों दल कुछ सीटें लेने के लिए लामबंदी कर रहे हैं। निषाद पार्टी के खाते में तो एक सीट है, लेकिन सुभासपा चाहती है कि जब वह भाजपा की सहयोगी बने तो उसे भी कम से कम एक सीट तो मिले ही। इसलिए दोनों दल अपनी जाति के वोट बैंक पर पकड़ दिखाकर लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा को संदेश भी देना चाहते हैं।
निषाद पार्टी ने जहां 11 नगर पंचायतों में अध्यक्ष की सीट पर भाजपा के सामने अपने सिंबल पर उम्मीदवार उतारे हैं। गोरखपुर, वाराणसी, प्रयागराज, लखनऊ, आगरा और झांसी नगर निगमों और 70 से अधिक नगर पालिका परिषदों में बड़ी संख्या में पार्षद के उम्मीदवारों को भी चुनाव लड़ा रही है। सुभासपा ने भी पूर्वांचल की ज्यादातर सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं।
सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर का कहना है कि लोकसभा चुनाव को लेकर क्या होगा, यह तो भाजपा जाने, पर पूर्वांचल में हमारी जाति के वोट बैंक का मजबूत आधार है। इसलिए हमारी पार्टी पूर्वांचल में ज्यादातर सीटों पर चुनाव लड़ रही है। विधानसभा चुनाव में हमारे साथ से ही सपा को फायदा हुआ और लोकसभा चुनाव में भी हम जिसके साथ रहेंगे उसे फायदा होगा।
निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद का कहना है कि हम तो भाजपा के साथ विधानसभा चुनाव लड़े थे और लोकसभा चुनाव भी लड़ेंगे। जहां तक निकाय चुनाव की बात है तो हमारे बहुत से कार्यकर्ता हैं, जो चुनाव लड़ना चाहते थे, इसलिए उनको अपने सिंबल पर चुनाव लड़ा रहे हैं। लोकसभा चुनाव अभी दूर है, जब समय आएगा तो भाजपा के साथ बैठकर हिस्सेदारी तय कर लेगें।