पौन्नियिन सेल्वन का पहला भाग देखा। मणिरत्नम का स्टाइल शुरू से अंत तक दिखता है। ओवर द टॉप स्लो मोशन एक्शन सीन नहीं हैं, इसलिए चार्ज्ड अप करने वाले सीन कम ही हैं। सच कहूं तो सिनेमा हाल में एक भी सीन पर पब्लिक नहीं चिल्लाई। लेकिन राजनीति और कूटनीति, वो बहुत अच्छे तरह से पिरोई गई है। सीन से ध्यान भंग हुआ तो कहानी मिस भी हो सकती है। कहानी को लेकर अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय है। किसी को अच्छी लगी किसी को खराब। मुझे अच्छी लगी लेकिन स्क्रीनप्ले में कुछ खामियां मान सकते हैं क्योंकि बड़े-बड़े ट्विस्ट्स को भी बहुत आसानी से खोल के रख दिया जाता है, कथानक में टूटन सी लगने लगती है।
साम्राज्य की विशालता का कहीं आभास ही नहीं होता इसलिए संकट की गंभीरता का पता नहीं लगता है। किसी चरित्र को स्क्रीन पर उतना समय नहीं मिलता जिससे कि उसके लिए जुड़ाव पैदा हो जाए। एक अच्छी कहानी के लिए स्टेक (दांव पर लगे चरित्र, स्थिति) बहुत ऊंचे होने चाहिए लेकिन यहां वो महसूस ही नहीं होता इसलिए अंत में जब एक चरित्र की मृत्यु होती है तब भी वो दुख नहीं होता। कुछ सीन को आगे पीछे किया जाता तो शायद ज्यादा प्रभावी कथानक होता।
सभी गाने व्यक्तिगत रूप से अच्छे लगे। उत्तर भारतीयों को कुछ गाने अजीब लग सकते हैं, लेकिन भारतीयता की विविधता को स्वीकार कीजिएगा तो अच्छा लगेगा। तमिल संस्कृति की विशेषताओं को बखूबी दिखाने का प्रयास किया गया है। कावेरी नदी को सम्मानित करने के लिए पूरा एक गाना दिया गया है।
भाषा के स्तर पर काम बहुत अच्छा है। कुछ गानों में उर्दू के शब्द वातावरण के बाहर के लगते हैं लेकिन संवादों में भाषा का चुनाव सटीक है और प्राचीन वातावरण की कहानी बनती है। हिंदी के सेलिब्रिटी राइटर दिव्यप्रकाश दूबे जी ने संवाद लिखे हैं जो सबको पता चल ही गया होगा। संवाद सभी अच्छे हैं, ब्रह्मास्त्र के जैसे बनावटी नहीं लगते। ऐसा लगता है कि चरित्रों ने उस स्थिति में ऐसा कुछ ही बोला होगा।
चरित्रों की संख्या काफी ज्यादा है जो तीन घंटे की फिल्म में भी पर्याप्त स्थान नहीं पाते। चियान विक्रम के आदित्य के किरदार ने अच्छी एक्टिंग के बाद भी निराश किया है क्योंकि चरित्र को विकसित सही से नहीं किया गया है। ऐश्वर्या राय और तृषा के चरित्र बहुत महत्वपूर्ण हैं और दोनों छाप छोड़ने में सक्षम रहे हैं। कार्थी के चरित्र को सभी का प्रेम मिला है और वह सबसे अधिक स्क्रीन टाइम प्राप्त करते हैं किंतु उनके चरित्र का नाम उत्तर भारत में शायद ही किसी को याद हो। ये सबसे बड़ी गलती निर्माताओं की रही है।
RRR की तर्ज पर फिल्म के किरदारों से उत्तर की ऑडियंस को पहले ही परिचय करवाया जाना चाहिए था। हर चरित्र की 30 से 45 सेकंड की इंट्रोडक्शन क्लिप पहले रिलीज करनी चाहिए थी। अगर ये किया जाता तो चरित्र विकास की फिल्म की समस्या काफी हद तक दूर हो जाती। Just a bad promotion thing।
वीएफएक्स ठीक-ठाक थे लेकिन दृश्य अच्छे बनाए। युद्ध के दृश्यों को वास्तविकता के निकट रखा गया है, कोई बहुत ज्यादा सुपरहीरो वाली फिल्म नहीं बनाई है, लेकिन युद्ध नीति यहां नहीं है जैसे बाहुबली में आधा घंटा युद्ध के लिए जाता है। चोल इतिहास के लिए देखने जाने वाले भी कुछ प्राप्त नहीं करेंगे।
फिल्म औसत या थोड़ा सा औसत से ऊपर ही कही जा सकती है। और अगर किसी को स्टोरी समझ नहीं आई तो उसके लिए ये कबाड़ा होगी। इसलिए दिमाग लगाकर फिल्म देखना यदि देखना चाहें तो।
ज्यादा खुशी तो तब होती अगर यह गेम ऑफ थ्रोन की तरह सीरीज बनाई जाती लेकिन अब जो है उसी से संतुष्ट रहना होगा। खैर मुझे दूसरा पार्ट भी देखना है और वो बनकर तैयार भी है। मिलते हैं 2023 में।