– दयानंद पांडेय
सुबहे-बनारस की ओस में भीगी गमक को आज शामे-अवध की शीत में विगलित हो कर सुर्खरु होते देखा हम ने। लखनऊ के ताज होटल परिसर के उन्मुक्त आकाश के नीचे मालिनी अवस्थी ने जब अपनी मधुर गायकी में बैरन रेल चला दी। अवसर था सारेगामा द्वारा मालिनी अवस्थी के गाए मशहूर गीत रेलिया बैरन पिया को लिए जाए ! के रिलीज का। इस रिलीज इवेंट को भी मालिनी की गायकी ने एक ख़ूबसूरत शाम में तब्दील कर दिया। बहुतेरे गायक और गायिकाओं ने इस रेलिया बैरन को गाया है। पर मालिनी की गायिकी की सुगंध ही कुछ और है। गमक और गुरुर ही कुछ और है। ठाट ही कुछ है। फिर उन की अदायगी के क्या कहने भला ! मालिनी शास्त्रीय गायकी में जहां निपुण हैं , वहीं लोकगायकी की अविकल और अविरल प्रस्तोता हैं।
मालिनी का स्टेज शो पूरी तरह एक फिल्म में तब्दील हुआ जाता है। गायिकी दृश्य में बदल जाती है। दृश्य दिल में उतर जाता है। मालिनी गायिका से शो वुमेन में रुपांतरित हो जाती हैं। इवेंट छोटा हो जाता है , गायिकी विराट हो जाती है। अमूमन हर बार ही ऐसा हो जाता है। आज भी ऐसा ही हो गया। अनायास। मालिनी की गायिकी का लोच , खटका और मुरकी न सिर्फ़ सुनते बल्कि उन के नृत्य में भीग कर देखते भी बनती है। मालिनी गाते-गाते लोगों को अचानक कनेक्ट कर लेती हैं। संवाद स्थापित कर लेती हैं। मौन संवाद। मंच के नीचे से भी लोगों को मंच तक अभिमंत्रित कर लेती हैं। सहज ही मंच के नीचे खुद भी आ जाती हैं , गाते और नाचते हुए। ख़ुद इंजन बनी लोगों को डब्बों की तरह जोड़ती मंच तक उठा ले जाती हैं। मालिनी ने यह कला बड़ी मेहनत से विकसित की है। अर्जित की है। उन की इस अदा ने ही उन्हें शो वुमेन बना दिया है। रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे की गायकी में वह अपने पति की अनुपस्थिति को भी दर्ज करते हुए बताने लगीं कि वह तो कल जहाज में बैठ कर अमरीका चले गए। गोया वह गाना चाहती हों जहजिया बैरन पिया को लिए जाए रे ! रेलिया बैरन गीत में रेल खलनायक की तरह प्रस्तुत है। जिस में विरह में डूबी नायिका रेल द्वारा पति के जाने पर नाराज है। वह कभी टिकट गला देती है , कभी साहबवा को गोली मारने की तजवीज भी देती है। यह अजब संयोग है कि महात्मा गांधी अपनी पुस्तक हिंद स्वराज में भारतीय समाज के जिन तीन दुश्मनों का उल्लेख करते हैं उन में एक रेल भी है। गांधी डाकटर , वकील और रेल तीनों को एक साथ समाज का दुश्मन बताते हैं और बड़े तार्किक ढंग से।
रेलिया बैरन पिया को लिए जाए तो झूम कर मालिनी ने गाया ही , सइयां मिलै लरिकैयां मैं का करुं ! भी नाच कर गाया। पूरे आरोह-अवरोह में गाया। बारंबार वह अपने पतिदेव को भी याद करती रहीं। कहती रहीं तभी तो कल अमरीका चले गए। लखनऊ में मालिनी अवस्थी का कोई शो हो और उन के पति अवनीश अवस्थी उपस्थित न हों , अमूमन शो में ऐसा होता नहीं। पर आज हुआ। भले पीछे की किसी सीट पर बैठे वह मंत्रमुग्ध देखते रहें। पर अनुपस्थित नहीं होते अमूमन। सारी व्यस्तता के बावजूद। और मालिनी इस विछोह को निरंतर दर्ज करती रहीं। मीठे ताने और मीठी गायकी में। सैयां उड़ावै कनकईया में का करुं की गायकी में इस विछोह को धोती रहीं। मालिनी ने इस मौक़े पर गौहर जान की लिखी कजरी भी सुनाई। सेजिया पे लोटे काला नाग हो / कचौड़ी गली सून कइलू बलमू / मिर्जापुर कइलू गुलजार हो, / कचौड़ी गली सून कइलू बलमू ! गा कर अपनी गुरु गिरिजा देवी को भी जैसे याद किया। वाज़िद अली शाह के बहाने एही मिर्जापुर से उड़ल जहजिया, / सैंया चल गइल रंगून हो, /कचौड़ी गली सून कइलू बलमू / पनवा से पातर भइल तोर धनिया,/ देहिया गलेला जइसे नून हो, / कचौड़ी गली सून कइलू बलमू / मनवा की बेदना बैदउ ना जाने, / करेजवा में लागल जैसे ख़ून हो, / कचौड़ी गली सून कइलू बलमू ।
यह मिर्जापुरी कजरी गा कर मालिनी ने मंच को नई ऊंचाई दी और लोगों को भावुक कर दिया। समापन किया एक चैता से। रात ही देखलीं सपनवा पिया घर अइलें ! गा कर मालिनी ने जैसे खुद को विरह के विछोह में डुबो लिया।