उचतम न्यायालय ने 29 अप्रैल को झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अंतरिम जमानत की याचिका पर प्रवर्तन निदेशालय को नोटिस जारी किया।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले को 6 मई से शुरू होने वाले सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया।
इस बीच, पीठ, (जिसमें न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता भी शामिल थे,) ने झारखंड उच्च न्यायालय को जनवरी में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली श्री सोरेन की याचिका पर फैसला सुनाने की स्वतंत्रता दी।
श्री सोरेन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि जालसाजी या धोखाधड़ी सहित कोई भी अपराध उनके मुवक्किल से जुड़ा नहीं हो सकता है। श्री सिब्बल ने ज़ोर देकर कहा, “वह इनमें से किसी में भी शामिल नहीं हैं।” हालाँकि, न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि श्री सोरेन से जुड़े अपराध की आय के आरोप थे। न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, ”8.5 एकड़ का एक भूखंड है।”
श्री सोरेन ने 24 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए कहा था कि उच्च न्यायालय मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली उनकी याचिका पर अपना फैसला नहीं सुना रहा है। झारखंड के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद 31 जनवरी को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। मामले में ईडी द्वारा सात घंटे तक पूछताछ करने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
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ED के मामलो में महीनो ही नहीं सालो से जेल में बंद हैं सिसोदिया पिछले दिनों आम आदमी पार्टी के नेता और राजसभा सांसद को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली थी तो वही अरविन्द केजरीवाल जमानत के लिए संघर्ष कर रहे हैं। पकडे जाने वाला लगभग हर राजनितिक पार्टी का नेता खुद को पाक साफ़ बताता है और जांच एजेंसी दोषी ठहराती मामला सालो तक खींचता और ज़रा सोचिये की इन मामलो में महीनो जेल में रहने के बाद कोई व्यक्ति निर्दोष घोषित होता है फिर जांच एजेंसी या सरकार कोई मुआवजा देती है ? क्या जब तक दोष सिद्ध न हो तब तक लोगो को जमानत मिलना चाहिए या नहीं ? सरकार के पास तमाम शक्तिया है इसके वावजूद मुल्जिम सबूतों से छेड़ छाड कर सकता है इसलिए उसको बंद रक्खो आजाद हैं हम या गुलाम कुछ पता नहीं चलता बहरहाल