📅 नई दिल्ली | 21 फरवरी 2025 – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय भाषाओं की साझा सांस्कृतिक विरासत, देश में भाषाओं के नाम पर विभाजन करने के प्रयासों का सटीक उत्तर देगी।
वे 98वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन का उद्घाटन कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने भारतीय भाषाओं को मुख्यधारा में लाने और शिक्षा में उनकी भूमिका को मजबूत करने पर जोर दिया।
“सभी भाषाओं को अपनाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। भारतीय भाषाओं के बीच कोई शत्रुता नहीं है। वे हमेशा एक-दूसरे को स्वीकार और समृद्ध करती रही हैं,” – प्रधानमंत्री मोदी।
भारतीय भाषाओं के महत्व पर जोर
🔹 राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत सभी भाषाओं को समान अवसर देने का प्रयास
🔹 मराठी सहित भारतीय भाषाओं में उच्च शिक्षा को प्रोत्साहन
🔹 भाषा, संस्कृति और ज्ञान के आदान-प्रदान से भारत की समृद्ध परंपरा को मजबूती
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की विशाल भाषाई विविधता ही उसकी एकता का आधार है। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि अब महाराष्ट्र के छात्र मराठी में इंजीनियरिंग और चिकित्सा की पढ़ाई कर सकते हैं, जिससे भाषा के कारण अवसरों से वंचित होने की मानसिकता को बदला जा सकेगा।
मराठी साहित्य सम्मेलन की प्रमुख बातें
📌 स्थान: नई दिल्ली
📌 विशेष आकर्षण:
✅ पुणे से दिल्ली तक ‘साहित्यिक ट्रेन यात्रा’ जिसमें 1,200 प्रतिभागी शामिल
✅ 2,600 से अधिक कविता प्रस्तुतियां, 50 पुस्तक विमोचन, 100 पुस्तक स्टॉल
✅ देशभर के प्रतिष्ठित लेखक, विद्वान और साहित्य प्रेमियों की भागीदारी
📌 उपस्थित प्रमुख हस्तियां:
✔ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस
✔ एनसीपी (एसपी) प्रमुख शरद पवार
भाषा को लेकर बहस के बीच पीएम मोदी का संदेश
प्रधानमंत्री का यह बयान ऐसे समय आया है जब तमिलनाडु सरकार और केंद्र के बीच ‘तीन भाषा नीति’ के मुद्दे पर मतभेद चल रहे हैं।
“भारत को विभाजित और शासित नहीं किया जा सकता। कोई भी यह तय नहीं कर सकता कि हमें कौन-सी भाषा सीखनी चाहिए,” – प्रधानमंत्री मोदी।
इस कार्यक्रम में मराठी भाषा और साहित्य के योगदान को सराहा गया, साथ ही भारतीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता पर बल दिया गया।
📌 क्या भारतीय भाषाओं को शिक्षा और प्रशासन में अधिक महत्व मिलना चाहिए? अपनी राय दें! 💬