📅 21 फरवरी 2025 | देहरादून – उत्तराखंड सरकार ने हाईकोर्ट को सूचित किया कि वह जल्द ही एक हलफनामा दायर करेगी, जिसमें लिव-इन जोड़ों के पंजीकरण में आधार और पिछले रिश्तों की जानकारी मांगने का कारण स्पष्ट किया जाएगा।
👉 यह पंजीकरण हाल ही में लागू किए गए यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) के तहत अनिवार्य किया गया है।
⚖️ याचिका में क्या कहा गया?
🔹 वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन की ओर से पेश याचिकाकर्ता अनिरुद्ध भागवत ने लिव-इन जोड़ों के अनिवार्य पंजीकरण को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
🔹 उन्होंने UCC के “फॉर्म 3” को लेकर सवाल उठाया, जिसमें पहले के रिश्तों, तलाक के आदेश और आधार से जुड़े बायोमेट्रिक डेटा की जानकारी मांगी गई है।
🔹 उन्होंने पूछा कि “इस तरह की जानकारी क्यों मांगी जा रही है और इसका क्या औचित्य है?”
🔹 याचिका में तर्क दिया गया कि “यह निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है और अनावश्यक रूप से व्यक्तिगत जानकारी जुटाने का प्रयास है।”
🏛️ सरकार का पक्ष
🔹 सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार इस पर एक हलफनामा दायर करेगी और बताएगी कि इस जानकारी को मांगने का असली उद्देश्य क्या है।
🔹 उन्होंने अदालत को आश्वासन दिया कि “इसका उद्देश्य किसी का व्यक्तिगत डेटा इकट्ठा करना नहीं है, बल्कि इसका एक अलग मकसद है।”
🔹 राज्य सरकार ने कहा कि वह अदालत को संतुष्ट करने के लिए पूरी पारदर्शिता से जवाब देगी।
🔥 27 फरवरी की ‘डेडलाइन’ को लेकर चिंता!
📌 UCC उत्तराखंड में 27 जनवरी को लागू हुआ था, और लिव-इन जोड़ों को 27 फरवरी तक पंजीकरण कराने का समय दिया गया है।
📌 याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह समयसीमा जल्दबाजी में तय की गई है और नागरिकों पर अनावश्यक दबाव डाल रही है।
🕌 शरिया कानून पर भी विवाद
📌 ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की सदस्य रजिया बैग ने भी याचिका दायर की है, जिसमें UCC को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह शरिया कानून के खिलाफ है।
📌 इस पर भी हाईकोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।
📅 अब आगे क्या?
🔹 हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई 1 अप्रैल 2025 को तय की है।
🔹 देखना होगा कि उत्तराखंड सरकार के हलफनामे में क्या तर्क दिए जाते हैं।
🔹 क्या 27 फरवरी की डेडलाइन पर रोक लगेगी या फिर लिव-इन जोड़ों को पंजीकरण कराना ही होगा?
💬 क्या लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीकरण अनिवार्य किया जाना चाहिए? आपकी राय हमें कमेंट में बताएं! ⬇️