मुंबई, 16 दिसंबर 2024:
बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार द्वारा अडानी समूह को अक्षय और थर्मल पावर की आपूर्ति के लिए दिए गए ठेके को लेकर दायर याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने इस याचिका को “अस्पष्ट, अप्रमाणित और लापरवाह” करार देते हुए याचिकाकर्ता श्रीराज नागेश्वर ऐपुरवार पर ₹50,000 का जुर्माना लगाया है।
क्या थे याचिकाकर्ता के आरोप?
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि 6,600 मेगावाट नवीकरणीय और थर्मल बिजली की आपूर्ति के लिए अडानी समूह को दिया गया अनुबंध अनुचित था और यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उचित दर पर बिजली की आपूर्ति के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
याचिका में यह भी कहा गया कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे ने इस ठेके में भ्रष्टाचार किया है। साथ ही, याचिका में अमेरिका के न्याय विभाग द्वारा गौतम अडानी के खिलाफ लगाए गए रिश्वतखोरी के हालिया आरोपों का हवाला दिया गया।
अदालत का फैसला
मुख्य न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि याचिका में कोई ठोस प्रमाण या सहायक सामग्री नहीं है।
अदालत ने कहा,
“अप्रमाणित और लापरवाह बयान वाली ऐसी याचिकाएं अच्छे मुद्दों को भी कमजोर कर सकती हैं। याचिकाकर्ता का यह दावा कि ठेका भ्रष्टाचार का हिस्सा था, केवल घोटाले का शोर मचाने पर आधारित है और इसमें ठोस सबूत नहीं है।”
जुर्माना और अन्य टिप्पणियां
अदालत ने याचिकाकर्ता को यह कहते हुए ₹50,000 का जुर्माना लगाया कि उसने अपनी याचिका में निविदा प्रक्रिया में खुद के किसी भी प्रकार के हिस्सेदारी होने का दावा नहीं किया और उसकी शिकायत केवल निराधार आरोपों पर आधारित थी।
पीठ ने स्पष्ट किया कि अमेरिकी न्याय विभाग द्वारा लगाए गए आरोपों के आधार पर ठोस कानूनी कार्यवाही की मांग नहीं की जा सकती। अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह की याचिकाएं छिपे हुए एजेंडे का हिस्सा हो सकती हैं।
निष्कर्ष:
यह फैसला इस बात का संकेत है कि अदालतें केवल प्रमाण और तार्किक दलीलों पर विचार करेंगी, न कि अटकलों और लापरवाह आरोपों पर। यह मामला न्यायिक प्रक्रिया में सटीकता और प्रमाण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।