मां का दूध इस दुनिया के हर नवजात नागरिक के लिए वरदान है। आइए मिलकर, बिहार में स्तनपान दरों में सुधार और कुपोषण दूर करने के लिए एक अनुकूल वातावरण बनाएं: नफीसा बिंते शफीक
पटना, 5 अगस्त: 1-7 अगस्त तक चलने वाले विश्व स्तनपान सप्ताह के तहत पटना स्थित यूनिसेफ कार्यालय में ‘मीडिया के साथ बातचीत’ का आयोजन किया गया। बैठक में एफएम रेडियो सहित प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों ने भाग लिया।
कोविड महामारी के दौरान मीडिया के कार्यों की सराहना करते हुए यूनिसेफ बिहार की राज्य प्रमुख, नफीसा बिंते शफीक ने कहा कि मीडिया नीतिगत कार्रवाइयों के साथ-साथ लोगों की मानसिकता, व्यवहार और सामाजिक मानदंडों को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
मीडिया आम लोगों को स्तनपान के महत्व के बारे में जागरूक करने के साथ-साथ नीति निर्माताओं द्वारा बिहार में स्तनपान की वर्तमान दर (एनएफएचएस-5 के अनुसार, जन्म के पहले घंटे में स्तनपान- 31.1%, पहले छह महीने तक केवल स्तनपान- 58.9%) में सुधार के लिए प्रभावी नीतिगत फैसले लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। समुचित स्तनपान से दुनिया में आने वाले हर नए नागरिक को जीवित रहने, पनपने के लिए सबसे अच्छा उपहार मिलेगा और वे अपनी पूरी क्षमता को प्राप्त कर सकेंगे।
अपना उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, “एक मां को अपने बच्चे को स्तनपान कराने के लिए परिवार का समर्थन बहुत जरूरी है। एक संयुक्त परिवार में विवाहित होने एवं कई जिम्मेदारियों को निभाने व पूर्णकालिक अध्ययन करने के बावजूद, मैं अपनी बेटी को छह महीने से अधिक समय तक केवल स्तनपान करा सकी। यह मेरे परिवार के सहयोग और घर पर एक बेहतर माहौल के कारण संभव हो सका। हमने बोतल या पाउडर-दूध/दूध के विकल्प का बिल्कुल भी उपयोग नहीं किया। मेरे परिवार ने यह भी सुनिश्चित किया कि मैं पौष्टिक भोजन खाऊं और मुझे अपनी बेटी के साथ स्तनपान कराने और बेहतर बॉन्डिंग का भरपूर समय मिले। दुर्भाग्यवश, हर बच्चा या मां इतनी भाग्यशाली नहीं है कि उसे स्तनपान के लिए इतना मजबूत पारिवारिक समर्थन मिले। यह एक स्थापित तथ्य है कि स्तनपान के दौरान मां के स्पर्श और दुलारने-पुचकारने से बच्चे के संवेदी और भावनात्मक तंत्रिकाएं मजबूत होती हैं, जिससे उसका बेहतर संज्ञानात्मक और सामाजिक-भावनात्मक विकास होता है।
आगे स्तनपान के आर्थिक प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि स्तनपान एक सबसे महत्वपूर्ण निवेश है जो एक देश अपनी भविष्य की समृद्धि के निर्माण के लिए कर सकता है। “नर्चरिंग द हेल्थ ऐण्ड वेल्थ ऑफ़ नेशंस: द इन्वेस्टमेंट केस फ़ॉर ब्रेस्टफीडिंग” रिपोर्ट से पता चलता है कि स्तनपान में निवेश किए गए प्रत्येक यूएस डॉलर के बदले 35 यूएस डॉलर का आर्थिक रिटर्न मिलता है।
अतिथि वक्ता के रूप में बातचीत में शामिल डॉ राकेश कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर, बाल रोग विभाग, एनएमसीएच सह कार्यक्रम समन्वयक, राज्य संसाधन केंद्र, आईवाईसीएफ (शिशु और युवा बाल आहार) ने स्तनपान के बारे में मिथकों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि सभी बीमारियों के खिलाफ नवजात शिशुओं के लिए माँ का दूध सबसे प्रभावी सुरक्षा है। उन्होंने अपनी प्रस्तुति के दौरान स्तनपान से संबंधित कई भ्रांतियों का खंडन करते हुए निम्नलिखित बातें बताईं।
• हर माँ को पर्याप्त दूध होता है। अगर कोई बच्चा 12 घंटे में 4 बार पेशाब करता है, तो इसका मतलब है कि पर्याप्त दूध बन रहा है। इसके अलावा, नियमित अंतराल पर बच्चे का वजन यह पता लगाने का एक और तरीका है। बच्चे का बढ़ता वजन इस बात की पुष्टि करता है कि दूध का समुचित उत्पादन हो रहा है।
• सीजेरियन डिलीवरी में दूध देर से नहीं आता। सी-सेक्शन डिलीवरी होने के बावजूद एक माँ अपने बच्चे को स्तनपान करा सकती है। इसके अलावा, स्तनपान कराने से मां का घाव जल्दी से भरने में मदद मिलती है।
• जुड़वां या तीन नवजात बच्चों के जन्म के बाद भी पर्याप्त दूध बनता है। दरअसल, अधिक दूध पिलाने से अधिक दूध का उत्पादन होता है। यदि जुड़वा बच्चों में से एक कमजोर है, तो उसे स्तन से गार कर दूध दिया जा सकता है।
• बीमार बच्चों को भी स्तनपान कराया जा सकता है क्योंकि इससे बच्चे को तेजी से ठीक होने में मदद मिलती है। कुछ बीमारियों के लिए जहां इलाज के लिए कोई एंटीबायोटिक उपलब्ध नहीं है, मां का दूध एक प्रभावी एंटीबायोटिक के रूप में काम करता है। गाय/भैंस का दूध या फार्मूला मिल्क इसका विकल्प नहीं है।
• मां के कोविड पॉजिटिव, एचआईवी पॉजिटिव या अन्य बीमारी से ग्रसित होने की स्थिति में स्तनपान जारी रखना चाहिए। कोविड महामारी के दौरान कई अध्ययनों ने स्थापित किया है कि एक कोविड पॉजिटिव मां अपने बच्चे को कोविड उपयुक्त प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करके स्तनपान करा सकती है। यह बच्चे को नुकसान नहीं पहुंचाता है।
• कमजोर या कुपोषित माताएं भी स्तनपान करा सकती हैं। इस दौरान माँ को पौष्टिक भोजन और उचित देखभाल प्रदान की जानी चाहिए जो एक स्वस्थ माँ के लिए भी लागू है।
• स्तनपान बेहतर आईक्यू लेवल में भी मदद करता है।
यूनिसेफ बिहार के पोषण विशेषज्ञ रबी नारायण पाढ़ी ने कहा कि संस्थागत प्रसव (76.2%) में स्तनपान की दर बिहार (22.3%) में काफी कम है। समुदाय में एक मिथक है कि फार्मूला दूध स्तन के दूध से बेहतर है जो कि ग़लत और वैज्ञानिक रूप से अपुष्ट दावा है। बिहार में सर्वेक्षण हमें यह भी बता रहे हैं कि स्तनपान प्रथाओं में मौसमी भिन्नता है; गर्मियों में देखभाल करने वाले बच्चे को प्यास लगने की स्थिति में पानी और अन्य तरल पदार्थ देते हैं। हालांकि, सामुदायिक स्तर पर मीडिया और अन्य संचार चैनलों के माध्यम से यह प्रचारित किया जाना चाहिए कि केवल और केवल स्तनपान ही सभी महीनों में बच्चे की तृप्ति और प्यास को बुझाया जा सकता है। एक घंटे के भीतर छह महीने तक स्तनपान के महत्व और फ़ायदों पर लेख प्रकाशित करके और फिर 2 साल तक पूरक भोजन के साथ स्तनपान कराकर मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इससे माताओं, देखभाल करने वालों विशेष रूप से पिताओं के बीच अधिक जागरूकता पैदा होगी और हमारे बच्चों को बेहतर प्रतिरक्षा में मदद मिलेगी।
यूनिसेफ बिहार के स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. सिद्धार्थ रेड्डी ने कहा कि प्जन्म के पहले घंटे में स्तनपान और फिर छह महीने तक केवल स्तनपान केवल स्तनपान से बिहार में 20 हजार नवजात शिशुओं की सालाना मौत को रोकने में मदद मिलगी और साथ ही राज्य में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की 13 प्रतिशत मृत्यु को भी कम किया जा सकता है।
डॉ. शिवानी दर, पोषण अधिकारी, यूनिसेफ बिहार ने कहा कि यूनिसेफ राज्य संसाधन केंद्र (आईवाईसीएफ) के साथ साझेदारी में बिहार राज्य स्वस्थ्य समिति (एसएचएसबी) और आईसीडीएस को तकनीकी सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। एसआरसी MAA (मातृ पूर्ण स्नेह) कार्यक्रम के तहत तकनीकी दिशानिर्देशों, आईईसी, क्षमता निर्माण और क्षेत्र की गतिविधियों की निगरानी के माध्यम से राज्य का सहयोग करता है। हम एसएचएसबी के साथ मिलकर काम कर रहे हैं ताकि स्वास्थ्य सुविधाओं में जल्दी स्तनपान शुरू करने और सामुदायिक स्तर पर विशेष रूप से स्तनपान कराने की दिशा में काम किया जा सके। बिहार सरकार द्वारा कामकाजी महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर पालना घर (क्रेच सुविधा) शुरू करने की पहल सराहनीय है।
कार्यक्रम का संचालन यूनिसेफ बिहार की संचार विशेषज्ञ निपुण गुप्ता ने किया।
उन्होंने कहा कि मीडियाकर्मी भी एक बच्चे के पिता, माता और रिश्तेदार होते हैं।
इस तरह वे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बच्चों से अच्छी तरह जुड़े हुए हैं। अनुशंसित स्तनपान के तरीक़ों का अभ्यास करने के अलावा उन्हें अपनी रिपोर्टिंग के ज़रिए बच्चों के सर्वोत्तम हितों को ध्यान में रखते हुए स्तनपान को बढ़ावा देना चाहिए।
बिहार में स्तनपान की स्वस्थ प्रथाओं को बढ़ावा देना किसी ख़ास दिन या सप्ताह का नहीं बल्कि रोजमर्रा का मामला होना चाहिए।
कार्यक्रम के अंतिम चरण में, मीडियाकर्मियों ने स्तनपान के विभिन्न पहलुओं से संबंधित प्रासंगिक प्रश्न पूछे जिनका विशेषज्ञों द्वारा विधिवत उत्तर दिया गया।
संवाद के दौरान डॉ संदीप घोष, पोषण अधिकारी और मोना सिन्हा, सामाजिक एवं व्यवहार परिवर्तन विशेषज्ञ, यूनिसेफ बिहार उपस्थित थे।