📍 बीरभूम, पश्चिम बंगाल | 6 मार्च 2025
पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के मोहम्मद बाजार ब्लॉक में देचा-पचमी-डेवांगंज-हरीसिंज (DPDH) कोल प्रोजेक्ट के तहत बेसाल्ट खनन का कार्य 6 मार्च को फिर से शुरू हुआ। इस बीच, स्थानीय ग्रामीणों और आदिवासी समुदायों ने खनन परियोजना के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया, जिसके बाद पुलिस और प्रशासन पर दमनकारी कार्रवाई के आरोप लगे हैं।
🔴 क्या है मामला?
📌 6 फरवरी 2025 को इस परियोजना के तहत खनन कार्य शुरू किया गया था।
📌 स्थानीय ग्रामीणों, जिनमें महिलाएं और आदिवासी समुदाय के लोग शामिल थे, ने 4 मार्च से इस परियोजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।
📌 आरोप: खनन से पर्यावरण को नुकसान, जंगलों की कटाई, तथा स्थानीय समुदायों को जबरन हटाने की कोशिश।
📌 प्रदर्शनकारियों ने “चरखा (छड़ी) अनुष्ठान” कर विरोध जताया, जो यह संकेत देता है कि जब तक इसे नहीं हटाया जाएगा, तब तक कोई कार्य नहीं होगा।
🛑 पुलिस पर आरोप: ग्रामीणों का दमन किया गया!
🔹 स्थानीय कार्यकर्ताओं का दावा: पुलिस ने सैकड़ों ग्रामीणों को जबरन खनन के लिए सहमति देने पर मजबूर किया।
🔹 ग्रामों में भारी पुलिस बल की तैनाती, बैरिकेड्स लगाए गए और इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं।
🔹 आदिवासी कार्यकर्ता सुशील मुरमू का आरोप: उन्हें फोन पर धमकाया गया और माओवादी समर्थक कहकर झूठे आरोपों में फंसाने की चेतावनी दी गई।
💬 “यह हमारी पुश्तैनी ज़मीन है, हम इसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे। पुलिस हमें धमका रही है, लेकिन हम पीछे नहीं हटेंगे।” – सुशील मुरमू, आदिवासी कार्यकर्ता
आंदोलनकारियों को धमकी?
📌 पुलिस अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों को 2022 में विरोध के दौरान मारे गए शिक्षक धना हंसदा की याद दिलाई, जिसे कार्यकर्ताओं ने “खुली धमकी” करार दिया।
📌 स्थानीय ग्रामीणों ने सरकार के प्रस्तावित मुआवजे को ठुकरा दिया, जिसमें नकद राशि, भूमि और सरकारी नौकरी का वादा किया गया था।
राज्यभर में श्रमिक संगठनों का समर्थन
📢 पश्चिम बंगाल खेत मजदूर समिति, श्रमजीवी महिला सामूहिकता और पश्चिम बंगाल चाय मजदूर समिति ने खनन परियोजना के खिलाफ चल रहे आंदोलन के प्रति एकजुटता जताई है।
🔴 क्या सरकार पीछे हटेगी या आंदोलन और उग्र होगा?
अब यह देखना होगा कि क्या प्रशासन इस विरोध को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने की कोशिश करता है या फिर पुलिस बल के सहारे आंदोलन को दबाने की कोशिश जारी रहेगी।