📅 21 फरवरी 2025 | नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि स्कूल पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा और लैंगिक समानता पर विशेष ध्यान दिया जाए, ताकि पुरुषों में महिलाओं के प्रति सम्मानजनक व्यवहार की भावना विकसित हो।
👉 न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एससी शर्मा की पीठ ने कहा:
“स्कूलों में नैतिक और नैतिक प्रशिक्षण की आवश्यकता है। बच्चों को कम उम्र से ही यह सिखाया जाना चाहिए कि महिलाओं का सम्मान कैसे किया जाए। लेकिन दुर्भाग्य से, अधिकांश स्कूलों में नैतिक शिक्षा की कक्षाएं या तो नहीं होतीं या रद्द कर दी जाती हैं।”
👨👩👧👦 घर से शुरू होता है भेदभाव?
✅ बेटा-बेटी में समानता की शिक्षा घर से शुरू होनी चाहिए।
✅ अक्सर माता-पिता बेटियों को रोकने पर ध्यान देते हैं, लेकिन बेटों को सही व्यवहार सिखाने में असफल रहते हैं।
✅ महिलाओं को शादी के बाद “अपने घर” के रूप में मान्यता नहीं मिलती, यह मानसिकता बदलनी होगी।
📜 याचिका का मुख्य तर्क
वरिष्ठ अधिवक्ता आबाद पोंडा द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि:
🔹 महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों की जड़ लैंगिक समानता की शिक्षा की कमी है।
🔹 50% आबादी (महिलाएं) असुरक्षा में जी रही हैं, जिसे दूर करना जरूरी है।
🔹 बलात्कार विरोधी कानूनों की जानकारी को सिनेमाघरों और मीडिया में व्यापक रूप से प्रसारित किया जाए।
“इसका क्या मतलब कि कोई अपराधी 20 साल की सजा मिलने के बाद कानून के बारे में जाने? उसे पहले ही यह समझाना जरूरी है कि ऐसे अपराधों का अंजाम क्या होगा।” – आबाद पोंडा
🏫 नैतिक शिक्षा की अनिवार्यता
✅ पर्यावरण शिक्षा की तरह, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर नैतिक शिक्षा को भी अनिवार्य बनाया जाना चाहिए।
✅ सरकार को यह बताने का आदेश दिया गया कि स्कूलों में लैंगिक समानता को पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष
✅ कानून के डर से ज्यादा मानसिकता में बदलाव जरूरी।
✅ भेदभाव खत्म करने की प्रक्रिया स्कूल और घर, दोनों जगहों से शुरू होनी चाहिए।
✅ बलात्कार और अपराध के प्रति समाज में “शून्य सहिष्णुता” होनी चाहिए।
💬 क्या स्कूलों में नैतिक शिक्षा और लैंगिक समानता को अनिवार्य किया जाना चाहिए? अपनी राय दें! ⬇️