वैसे तो चुनावों के बीच कहीं उत्तराखण्ड में सुरंग में फंसे मजदूरों की खबर उतनी जोर शोर से मीडिया पर दिखाई नहीं दी, मगर इसके पीछे एक वजह और भी थी। सरकार की ओर से एक एडवाइजरी जारी की गयी थी, जिसमें साफ-साफ बता दिया गया था कि जहाँ राहत और बचाव कार्य चल रहे हों, वहाँ मीडिया के कैमरे और परेशानी खड़ी करते हैं। उनसे सुविधा तो कोई होती नहीं, उल्टा कई मीडियाकर्मी जैसे ऊटपटांग सवाल करते हैं, उनसे खीज अलग बढ़ती है। सरकार के ऐसे दिशानिर्देशों के बाद भी मीडिया में जो दिखा, उसे देखकर मीडिया की कंपनियों के लिए कोई सम्मान का भाव तो मन में नहीं ही जागता। हाँ ऐसी विचित्र हरकतों पर हँसा जाए या सर पीट लिया जाए, ये जरूर सोचना पड़ जाता है।

दूसरी तरफ इस घटना पर गिद्धों की तरह नजर जमाये कई राजनीतिज्ञ भी थे, उनके चाटुकार भी थे, कई तो स्वयं को सोशल मीडिया इन्फ्लुएन्सर कहने वाले लोग भी इस ताक में बैठे थे कि किसी तरह कोई दुर्घटना हो, और उन्हें इसके बहाने वहाँ की स्थानीय सरकार के साथ-साथ मोदी सरकार को घेरने का मौका मिल जाए। विदेशियों की फेंकी हुई बोटियों पर पलने वाले – कुछ टुकड़ाखोर ऐसे भी थे जो “वैज्ञानिक सोच” की आड़ में पूरे घटनाक्रम पर निशाना साध रहे थे। इस सुरंग के बाहर स्थानीय लोग बाबा बौख नाग की पूजा अर्चना करते थे। परंपरागत रूप से मंदिर जिस स्थान पर था, उससे थोड़ा हटाकर, सुरंग बनाने के लिए एक अस्थायी मंदिर बना दिया गया था। मजदूरों और स्थानीय लोगों की आस्था का मजाक उड़ाने वाले लोग कह रहे थे कि अन्द्विश्वास नहीं विज्ञान से ही सुरंग बनाने का काम होगा।

 

हाल में ही भारत ने चन्द्रयान भेजने में जो सफलता हासिल की है, उससे खार खाए बैठे लोगों की भी कमी नहीं है। ये भी गोरे साहबों के जाने के बाद भारत में ही पीछे छूट गए भूरे साहबों की जमातें हैं। इन्हें भारत की वैज्ञानिक प्रगति से तकलीफ है। ये विश्वगुरु कहकर खिल्ली उड़ाने आने वाले लोगों के गिरोह अक्सर सोशल मीडिया पर ही ज्यादातर नजर आते हैं। उन्हें खुद भी पता है कि जहाँ चार लोग हों, कोई आयोजन, कोई भाषण इत्यादि अगर आमने-सामने का हो, और वहाँ इन्होंने ऐसा मजाक किया तो जनता के हाथों पिट जाने की पूरी संभावना होती है। ये लोग चन्द्रयान की सफलता से खार खाए थे तो इनका कहना था कि चाँद पर पहुँचने से पहले सुरंग खोदने की तकनीक विकसित करनी थी! चन्द्रमा पर अन्तरिक्ष में जाना और जमीन-पहाड़ों में खुदाई करना दो बिलकुल अलग-अलग एक दूसरे से ताल्लुक न रखने वाली बातें हैं। लेकिन उन्हें तो किसी तरह ये कहना था कि मौजूदा सरकार अपनी प्राथमिकताएँ सही तरीके से तय नहीं कर पायी।

 

अगर देखा जाए कि इस दुर्घटना में हुआ क्या था तो पूरा मामला 41 मजदूरों के एक सुरंग में फंस जाने का था। ये सुरंग साढ़े चार किलोमीटर लम्बी है जो कि केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी “चार धाम यात्रा” परियोजना का एक हिस्सा है। इस चार धाम यात्रा में सभी मौसमों में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को सड़क से जोड़ने के प्रयास जारी हैं। इसके लिए करीब 900 किलोमीटर सड़कें बनाई जा रही हैं। इस सुरंग को सिलक्यारा सुरंग कहा जाता है क्योंकि इसकी एक तरफ सिलक्यारा है और दूसरी तरफ उत्तरकाशी जिले का डंडलगाँव पड़ता है। दो लेन की ये सुरंग इस मार्ग की सबसे लम्बी सुरंगों में से एक है। सिलक्यारा की ओर से इसमें 2.4 किलोमीटर का और दूसरी तरफ से 1.75 किलोमीटर का निर्माण हो चूका था। हैदराबाद की एक कंपनी – नवयुग इंजीनियरिंग इसपर काम कर रही है।

 

सिलक्यारा की ओर से 12 नवम्बर 2023 को 205 मीटर से 260 मीटर के बीच सुरंग ढह गयी। इस हिस्से के भर जाने से सुरंग में 260 मीटर से आगे काम कर रहे सभी मजदूर फंस गए। उस समय जो 41 मजदूर फंसे, उनकी किस्मत थोड़ी अच्छी थी। वो जिस जगह फंसे वहाँ बिजली और पानी पहुँच रहा था। ये भूस्खलन क्यों हुआ, सुरंग ढह कैसे गयी, इन सभी मुद्दों पर जांच अभी भी चल ही रही है। हाँ ये आपको जरूर याद ही होगा कि हिमालय का ये क्षेत्र भू-स्खलन के अलावा भूकंप और बाढ़ आने के लिए भी जाना जाता है। यानी प्राकृतिक आपदाएं इस क्षेत्र के लिए नयी नहीं हैं। अगर यहाँ आपको इकोसिस्टम जैसा कुछ याद आया हो तो ये भी सोचिए कि किसी भी क्षेत्र में विकास होगा तो पर्यावरण पर उसका असर तो होगा ही। या तो पर्यावरण की सोचकर विकास को भूल जाना होगा, या फिर मनुष्यों को ये स्वीकार करना होगा कि सड़कें-रेल लाइन इत्यादि बनने का मतलब है कुछ खेतों पर से, कुछ जंगल काट कर वो निकलेंगी। पुल बनेगा तो नदी के दोनों ओर और संभवतः बीच में भी कुछ निर्माण होगा।

 

इल्जाम किसी पर थोपने की जल्दी में कई लोग कहने लगे कि ये संवेदनशील इलाका है, यहाँ तो निर्माण होना ही नहीं चाहिए! सवाल ये है कि पहाड़ों पर बसे लोग आपकी मेट्रो सिटी में, दिल्ली में, मुंबई में, गुजरात के बड़े शहरों में, चंडीगढ़ में, घरेलु नौकरों का काम करने कब तक आते रहेंगे? कब तक वो आपके बड़े शहरों के चाओमिन और मोमो के ठेलों पर काम करने आते रहेंगे? उन्हें क्या ये अधिकार नहीं कि उनके घरों के आस पास कहीं उन्हें रोजगार मिल सके? ये जो करीब नौ सौ किलोमीटर की सड़क बनेगी, उससे पर्यटक और तीर्थयात्री गुजरेंगे, उससे उन्हें रोजगार घर के पास मिल सकेगा। आपकी पर्यावरण संवेदनशीलता का दंश आखिर ये गरीब क्यों झेलें? इतना शौक है पर्यावरण बचाने का तो आप अपने ही घर के तीन एसी क्यों नहीं बंद कर देते? सीएफसी तो आपके फ्रिज ने निकलकर ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचता है। बंद कीजिये अपने फ्रिज का इस्तेमाल। ये जो दो-दो तीन-तीन कार धोने में पानी बर्बाद करते हैं उसे बंद कीजिये। पेड़ काटकर पेपर बनता है तो अखबार खरीदना-छापना बंद कीजिये! लेकिन नहीं, पर्यावरण तो तभी संवेदनशील होता है जब पहाड़ों पर विकास पहुँचने लगे, अपनी बारी आते ही नियम बदल जाते हैं न!

 

इस पूरे घटनाक्रम में जो लोग वैज्ञानिक सोच की दुहाई दे रहे थे उनके मुंह पर अर्नाल्ड डिक्स का बयान एक जोरदार तमाचा है। शायद अबतक अपने उनका बयान सुन लिया हो, नहीं सुना तो सुन लीजिये। उन्होंने कहा कि प्रकृति माँ की तरह है, अपने बच्चों का नुकसान नहीं करती। हम हाथ जोड़े निवेदन कर रहे हैं और प्रकृति जैसे हमें खेलते हुए देख रही है। बाकी इस मामले पर यही कहा जा सकता है कि प्रकृति के साथ जीना पहाड़ों पर रहने वालों का काम है तो अपने एसी घरों और दफ्तरों में बैठकर उन्हें पर्यावरण पर ज्ञान मत दीजिये। अपनी सैकड़ों वर्षों की परम्पराओं में उन्हें आपसे ज्यादा आता है। जहाँ तक राहत-बचाव कार्य करने वालों का प्रश्न है, प्रकृति के सामने वो हाथ जोड़े ही खड़े होते हैं। उन्हें भी आपसे वैज्ञानिक सोच के बारे में कुछ सीखने की जरुरत नहीं, वो भी आपसे ज्यादा जानते हैं।

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है। Note:- किसी भी तरह के विवाद उत्प्पन होने की स्थिति में इसकी जिम्मेदारी चैनल या संस्थान या फिर news website की नही होगी लेखक इसके लिए स्वयम जिम्मेदार होगा, संसथान में काम या सहयोग देने वाले लोगो पर ही मुकदमा दायर किया जा सकता है. कोर्ट के आदेश के बाद ही लेखक की सुचना मुहैया करवाई जाएगी धन्यवाद

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