“एक काफ़िर मेरा पड़ोसी” से बात शुरू की जा सकती है। इस किताब से इसलिए क्योकि ये एक ऐसे हिन्दू पुजारी की कहानी है जो जम्मू-कश्मीर के आतंकवाद के दौर में बंद हो चुके एक मंदिर को फिर से शुरू करके, वहाँ पूजा-अर्चना करने में जुटा होता है। कैसी समस्याओं से उसे दो-चार होना पड़ता है, वो परिस्थितियों का सामना कैसे करता है, इन बातों पर कहानी आधारित है। अंग्रेजी में ये “इनफिडेल नेक्स्ट डोर” नाम से आई थी। मजहबी हमलावरों का इतिहास कैसे लूट-मार और बलात्कार का इतिहास भी रहा है, उसका अनुमान इस पुस्तक से हो जाएगा। चूँकि ये एक उपन्यास है, इसलिए समस्याओं की बात करके ये किताब रूकती नहीं, कहीं न कहीं ये समाधान की तरफ इशारा भी कर देती है।
“नेहा की लव स्टोरी” भी एक पढ़ने लायक किताब होगी। सोनाली मिश्रा की इस किताब के नाम से ही पता चलता है कि ये नेहा नाम की किसी लड़की को प्रेम हो जाने की कहानी है। प्यार हो जाना ही हमें समस्या पर ले आता है, और यहाँ नेहा का सवाल ये था कि क्या प्रेम में सब जयाज है? नारीवादी वैसे तो आपको ये सिखाते हैं कि लड़की ही हर बार बलिदान दे, ऐसा नहीं होना चाहिए, लेकिन जब प्रेम होने के बाद पता चले कि आपका प्रेमी किसी और मजहब का है, तो धर्म परिवर्तन करके किसी दूसरे मजहब को अपनाने की जिम्मेदारी लड़की की ही क्यों हो, इसपर वो चुप्पी लगा जाते हैं। किसी और मजहब के लड़के से किसी दूसरे धर्म की लड़की ने शादी कर भी ली तो बच्चों को वो अपने तरीके से क्यों नहीं पाल सकती, ये तो नारीवादी कभी पूछते दिखे ही नहीं ना!
“परत” ऐसे ही विषय पर एक तीसरी किताब है। यहाँ परिवेश बदलकर कस्बाई-ग्रामीण हो जाता है, इसलिए उस क्षेत्र से आने वाले पाठक स्वयं को संभवतः किताब से ज्यादा जुड़ा हुआ पाएंगे। इसमें पात्र अपेक्षाकृत अधिक हैं इसलिए पाठकों को तुलना का एक अवसर भी मिलता है। अगर वास्तविकता की बात की जाये तो कई बार हम ऐसा पाते हैं कि पीड़िता के साथ समाज के एक बड़े वर्ग की कोई सहानुभूति नहीं होती। लोगों को ऐसा लगता है कि जब समझाया गया था कि ये गलत है, तब तो समझाने वालों को ही नफरती चिंटू और “माह लाइफ माह चॉइस” कहकर दुत्कार दिया गया था। फिर जब नुकसान हो चुका तो हम आंसू पोंछने क्यों जाएँ? ऐसी एक पात्र से भी “परत” की कहानी में मुलाकात होती है। इसके अलावा कई पात्र हैं, तो कैसे एक सी स्थिति पर लोग अलग-अलग प्रतिक्रिया देते हैं, उससे भी पाठकों का सामना होता है।
अब जिस किताब की बात हम करने जा रहे हैं, वो इस तरह की किताबों में सबसे प्रसिद्ध है। ये पुस्तक है विख्यात लेखक भयरप्पा की “आवरण” जिसे मूलतः कन्नडा भाषा में लिखा गया था। ये पुस्तक हिंदी और अंग्रेजी अनुवादों के रूप में आसानी से उपलब्ध है। अगर आप और कोई किताब इस विषय पर नहीं पढ़ सकते, तो केवल इसे पढ़ लें, तो भी सोचने के लिए कई दिशाएँ मिल जाएँगी। ये किताब इतनी प्रसिद्ध थी कि इसकी प्रतियाँ बाजार में आने के साथ ही समाप्त हो जाती थीं। इसकी कहानी एक ऐसी लड़की की है जो अपने पिता के विरुद्ध जाकर अपने धर्म में किसी को चुनने के बदले दूसरे मजहब के युवक से निकाह कर लेती है। जो पुरुष शादी से पहले तक बड़ा प्रगतिशील दिखता था, वो शादी के बाद कैसे बदलता है, उसके खानदान के कैसे दबावों का लड़की को सामना करना पड़ता है, इसकी कहानी बताई जाती है। अंततः लड़की शादी को छोड़कर अपने पुराने सपने को पूरा करने निकल जाती है। इस क्रम में उसे उस इतिहास का सामना करना पड़ता है, जिसके बारे में हमें-आपको स्कूल-कॉलेज में पढ़ाया ही नहीं गया। भयरप्पा की “आवरण” एक जरूरी किताब है, जिसके बारे में मेरा कहना है कि ये हर घर में होनी ही चाहिए!
अबतक शायद आपका ध्यान चला गया होगा कि हमने सिर्फ हिंदी की किताबों के बारे में नहीं बताया बल्कि अंग्रेजी या उससे किये किये गए अनुवादों की बात भी की है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आपकी भले हिंदी पढ़ने की आदत हो, अंग्रेजी समझ न आने की शिकायत हो, लेकिन जिस पीढ़ी तक आप ये जानकारी पहुंचाना चाहते हैं, उसे तो आपने ही इंग्लिश मीडियम स्कूल-कॉलेज में भेजा है! वो पीढ़ी आपके जितना ही हिंदी के प्रति आग्रह रखती हो, ऐसा जरूरी नहीं। उस पीढ़ी तक अपनी बात पहुंचाने के लिए आपको उसकी भाषा में ही संवाद करना होगा। कई विकल्प इसलिए सुझाये हैं क्योंकि एक से ना सही तो दूसरे से काम हो जाए, ये नहीं तो कोई और पसंद आ जाये, ऐसा भी होता ही है। बाकि अपनी पसंद से पुस्तकें चुनिए, पढ़िए और घर में रखिये। जो सिखाना आपकी जिम्मेदारी है, वो आप नहीं सिखायेंगे तो स्कूल-कॉलेज इसका ठीक उल्टा सिखाता जा रहा है, ये तो आप जानते ही हैं!