जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 05 अक्टूबर ::
नौ दिनों की आराधना और अनुष्ठान विधि को नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। शक्ति जागरण के लिए ऋषि-मुनियों ने नौ दिवसीय साधना अनुष्ठान दिया है, इसलिए इसे नवरात्र कहते है। प्रथम दिन से नवमी दिन तक उपासना और साधना का, जीवन जीने का अवसर भक्त को मिलता है। शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो चुका है, घरो से लेकर दुर्गा मंदिरों तक मंत्रोच्चारण हो रहे हैं। नवरात्र के पहले तीन दिन देवी दुर्गा के शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी और चन्द्रघंटा की पूजा हो चुका है और अब अगले तीन दिन मां कूष्मांडा, मां स्कंदमाता और मां कात्यायनी की पूजा होगी।
मां दुर्गा का चौथा स्वरूप कूष्मांडा है। शारदीय नवरात्र के चौथा दिन मां कूष्मांडा की आराधना होती है। इस दिन साधक का मन ‘अनाहत’ चक्र में अवस्थित होता है। इसलिए साधक इस दिन पवित्र होकर और अचंचल मन से मां कूष्माण्डा का पूजा-आराधना करता है।
शास्त्रों के अनुसार, जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी, और सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार छाया हुआ था, तब मां कुष्मांडा ने अपने ईषत् हास्य (मंद मुस्कान) से सृष्टि की उत्पत्ति की। इसलिए मां कुष्मांडा को सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति कहा जाता है। मंद हंसी के द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण ही इनका नाम कुष्मांडा पड़ा।
मां कुष्मांडा के पास इतनी शक्ति है कि, मां का वास सूर्यमंडल के भीतर है। केवल मां कुष्मांडा में ही सूर्यलोक के भीतर रहने की क्षमता है और इन्हीं के तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। कहा जाता है कि इन्हीं के तेज से ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में तेज व्याप्त है। मां कूष्माण्डा का शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं।
मां कूष्मांडा की आठ भुजाएँ हैं।इसलिए मां कूष्मांडा को अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता हैं। मां कूष्मांडा के सात हाथों में कमंडल, धनुष-बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है और आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला। मां कूष्मांडा का वाहन शेर है और मां कूष्मांडा को कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृति में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए भी देवी को मां कूष्मांडा कहा गया है।
मां कूष्मांडा का पूजा-आराधना, अचंचल और पवित्र मन से करने पर भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा आयु, यश, बल, सुख-समृद्धि, उन्नति और आरोग्य प्राप्त होता है। क्योंकि मां कूष्मांडा अत्यल्प सेवा और भक्ति भाव से ही प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। भक्त को कम समय में ही कृपा का सूक्ष्म भाव का अनुभव होने लगता है।
नवरात्र में भोजन के रूप में केवल गंगा जल और दूध का सेवन करना अति उत्तम माना जाता है, कागजी नींबू का भी प्रयोग किया जा सकता है। फलाहार पर रहना भी उत्तम माना जाता है। यदि फलाहार पर रहने में कठिनाई हो तो एक शाम अरवा भोजन में अरवा चावल, सेंधा नमक, चने की दाल, और घी से बनी सब्जी का उपयोग किया जाता है।
मां कूष्मांडा का मंत्र है :-
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
पूजा मंत्र
ॐ कूष्माण्डायै नम:
ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
———————