नूपुर को फटकारने वाले जस्टिस पारदीवाला बोले- ‘जजों पर निजी हमले बंद हों, सोशल मीडिया पर लगे लगाम’
जस्टिस पारदीवाला ने कहा था कि नूपुर शर्मा की वजह से उदयपुर में दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई. इसके बाद उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया था.जस्टिस परदीवाल की टिप्पणी पर शुभेंदु के कमैंट्स
भारत सरकार या भारतीय सेवक ? जब नाम मे ही सरकार जुड़ा है फिर अदालत नही राजदरबार लगेगा , समानता वामानता सब बेकार की बाते हैं,
निर्दोष ब्यक्ति को भी जिस तंत्र मे कुछ भी लिखने और बोलने से पहले इस बात का ख्याल रखना पड़े की कोई गला ना रेत दे ।
उस स्थिति मे लोकतंत्र या प्रजा तंत्र खत्म होने के कगार पर आ जाता है , तालिबानी और सरिया कानूनो का ग्राफ खतरे के निसान की ओर इसारा करता है, कोर्ट और जज साहेब को आज सोशल मीडिया ट्रायल ठीक नही लग रहा क्योंकि बात सीधे तौर पर उनके टिप्पणी पर हो रही है उनके वक्तव्य को गलत और सही के चश्मे से देखा जा रहा है |
आज सब सीधा उनके फैसलों पर सवाल उठे तब अभिव्यक्ति की आजादी वाजदी सब खत्म क्योंकि वो गलत कहे सही कहे जनता उसपर टिपन्नी भी नही कर सकती ! मेरे विचार से कोर्ट को सिर्फ आदेश और फैसला देना चाहिए आजकल फटकार और टिपण्णी की सँख्या बढ़ सी गई है, फैसलों और आदेशो में देरी किस बात की ओर इशारा करती है ? ऐसा परतीत होता है मानो पुलिस और प्रसाशन कोई स्कूल का छोटा बच्चा है और जज साहेब मास्टर साहेब ! फटकार डांट और टिप्पणी होनी चाहिए मगर जब बार बार इसी सबसे कोर्ट काम चलाएगी फैसले आने मे वर्षो बीत जाए ऐसे माहौल में हम टिप्पणी भी ना करें ! क्या मुनासिब है या मुनाफिक समझ नही आ रहा !
देश की आधिकारिक भाषा हिंदी है लेकिन आज भी हम सुप्रीम कोर्ट मे अंग्रेजी मे ही बोलेंगे और लिखेंगे इस पर सरकार और कोर्ट कब संज्ञान लेगी ? साहेब यहाँ पर तो सिर्फ सहूलियत का खेल चलता है, फैसलों पर सवाल हमने कब उठाया है ? टिप्पणीयो पर तो सवाल उठेंगे ही सूना है की कोई सुप्रीम कोर्ट का चैनल आ रहा है साहेब मत लाइयेगा नही तो दुनिया देखेंगी और उसपर जो बवाल होगा सम्भाले नही सम्भलेगा ,
क्या कहा है जस्टिस जेबी पारदीवाल ने
जस्टिस जेबी पारदीवाला ने बिलकुल ठीक कहा है की “संवेदनशील मामलों में सोशल मीडिया ट्रायल के जरिए न्यायिक प्रक्रिया में अनुचित हस्तक्षेप किया जाता है” जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि “आधा सच, अधूरी जानकारी रखने वाले, कानून के शासन, सबूत और न्यायिक प्रक्रिया को ना समझने वाले हावी हो गए हैं. ऐसे में सोशल मीडिया को रेगुलेट करने पर विचार करना चाहिए.” जस्टिस पारदीवाला ने CAN फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक प्रोग्राम में ये सब बातें कहीं. रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि “न्यायपालिका अच्छी भावना से की गई आलोचना का स्वीकार करती है, लेकिन जजों पर निजी हमले स्वीकार नहीं हैं.” साथ ही उन्होंने कहा कि भारत पूरी तरह से परिपक्व और शिक्षित लोकतंत्र नहीं है, ऐसे में यहां विचारों को प्रभावित करने में सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया जा रहा है.
मेरी पर्तिकिर्या
बात तो सही है मगर क्यों ना कोर्ट रूम के preceding’s को ही प्राइवेट कर दिया जाए ! सम्वेदनशील मामलो में क्यों ना सिर्फ आदेश बताये जाए मीडिया को ?
बिलकुल ठीक कहा जस्टिस ने की कानूनी मामलो की समझ आम आदमी को नही है फिर आम आदमी तक यह सब पहुचता कौन हैं ?.
परिपक्व और शिक्षित लोकतंत्र नही है इसलिए क्यों ना सिर्फ शिक्षित लोगो को वोट गिराने का अधिकार मिले ! और जज साहेब पर सीधे टिप्पणी करने वालो को काले पानी की सजा !
समानता की बात करनेवाला कोर्ट के जज खुद को खुदा समझने लगने है
एक शेर है Dharmendra Barot साहेब का इबादत को हमारी गुलामी ना मानो इश्क को मेरी कमजोरी न मानो, माना की माना है खुदा हमने तुमको, तुम खुद ही खुद को खुदा ना समझो