डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, अब विशेषज्ञों ने उसकी खोपड़ी और अन्य अवशेषों का उपयोग दो इमेज तैयार करने के लिए किया है। इससे पता चलता है कि जीवित रहते हुए वह महिला कैसी दिखती थी। फोरेंसिक मानवविज्ञानी और वारसॉ ममी प्रोजेक्ट की मेंबर चंतल मिलानी ने कहा कि हड्डियां और खोपड़ी किसी व्यक्ति के चेहरे के बारे में बहुत सारी जानकारी देते हैं। हालांकि इसे एक सटीक चित्र नहीं माना जा सकता है। खोपड़ी अनोखी है और आकार व पैमाने का एक सेट दिखाती है जो फाइनल चेहरे में दिखाई देगा। मिस्टीरियस लेडी की ममी ऊपरी मिस्र के थेब्स में शाही कब्रों में पाई गई थी। कहा जाता है कि वह थेबन समुदाय के कुलीन (elite) वर्ग से ताल्लुक रखती थी।
ममी को 1800 के दशक की शुरुआत में खोजा गया था। दिसंबर 1826 में ममी को मिस्र से पोलैंड के वारसॉ ले जाया गया। दिलचस्प बात है कि शुरुआत में इस ममी को एक पुरुष माना जाता था। 2016 में पता चला कि वह एक महिला की ममी है। महिला की बॉडी बेहतर तरीके से कपड़ों में लपेटी गई थी। माना जाता है कि यह दुनिया की पहली ममी है, जिसके शरीर में भ्रूण संरक्षित था। वर्तमान में यह वारसॉ में नेशनल म्यूजियम में रखी गई है।
दो फोरेंसिक विशेषज्ञों और वारसॉ यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने ममी के चेहरे को फिर से बनाने के लिए 2D और 3D दोनों तकनीकों का इस्तेमाल किया। फोरेंसिक आर्टिस्ट ह्यू मॉरिसन जोकि इस ममी का चेहरा बनाने वाले विशेषज्ञों में शामिल हैं, उन्होंने कहा कि ‘किसी व्यक्ति के चेहरे को उसकी खोपड़ी से पुनर्निर्माण करना यह बताने का उपाय माना जाता है कि वो लोग कौन थे। इसका इस्तेमाल यह दिखाने के लिए भी हो सकता है कि प्राचीन लोग कैसे दिखते होंगे।
पोलिश एकेडमी ऑफ साइंसेज के पुरातत्वविद् डॉ वोज्शिएक एज्समंड ने कहा कि मिस्र की प्राचीन ममी में लोगों की बहुत जिज्ञासा है। इन्हें देखते वक्त कुछ लोग यह भूल जाते हैं कि ये लोग कभी जिंदा थे। उनकी जिंदगी में प्यार से लेकर त्रासदियां भी थीं। मौजूदा ममी यही बताती है कि एक महिला जो 28 महीने की प्रेग्नेंट थी, एक दिन मर गई।
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