लाइव साइंस की रिपोर्ट के अनुसार, इंपीरियल कॉलेज लंदन के ग्रांथम इंस्टीट्यूट (Grantham Institute) के ग्लेशियोलॉजिस्ट और स्टडी के को-ऑथर मार्टिन सीगर्ट ने एक बयान में कहा कि कुछ दशक पहले जब हमने पहली बार अंटार्कटिका की बर्फ के नीचे झीलों की खोज की थी, तो सोचा था कि वे एक-दूसरे से अलग-थलग हैं। अब हम यह समझ रहे हैं कि वहां एक पूरा सिस्टम है, जो विशाल नदी नेटवर्क से जुड़ा है।
बहने वाले इस नेटवर्क का मतलब है कि बर्फ की चादर के नीचे फिसलन है। सिगर्ट ने कहा कि अगर यह सिस्टम पिघल जाए, तो दुनियाभर के समुद्र के स्तर को 14.1 फीट तक बढ़ा सकता है। हालांकि रिसर्चर्स यह नहीं जानते कि पृथ्वी के गर्म होने पर यह सिस्टम कैसे रिएक्ट करेगा। नदी का पूरा सिस्टम धीरे-धीरे बह रही बर्फ की चादर के नीचे है। रिसर्चर्स का कहना है कि अंटार्कटिका में बर्फ की इस चादर के तेजी से पिघलने के कारण इसके नीचे बह रही नदी के सिस्टम में ज्यादा पानी आ सकता है। नदी, बर्फ को होने वाले नुकसान को तेज कर सकती है और बर्फ की शेल्फ का पिघलना बढ़ सकता है। यह रिसर्च भविष्य के लिए उपयोगी साबित हो सकती है। वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश कर सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में अंटार्कटिका कितनी जल्दी अपनी बर्फ को खो सकता है।
इसी साल अगस्त महीने में आई एक रिपोर्ट में पता चला था कि अंटार्कटिका में बर्फ उम्मीद से ज्यादा तेजी से पिघल रही है। NASA की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (JPL) के रिसर्चर्स के नेतृत्व में हुई स्टडी में पता चला था कि जलवायु परिवर्तन अंटार्कटिका में तैरती बर्फ की विशाल सिल्लियों को कमजोर कर रहा है और समुद्र स्तर में बढ़ोतरी कर रहा है। स्टडी में पता चला था कि ग्लेशियर्स के पतले होने और बर्फ की सिल्लियों का टूटने से 1997 के बाद से अंटार्कटिका की बर्फ की सिल्लियों के द्रव्यमान में 12 ट्रिलियन टन की कमी आई है, जो पिछले अनुमान से दोगुना है।
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