08/08/2024, पटना
बुजुर्गों की अपनी आवश्यकतायें होती हैं। अगर दिन भर की दवाओं, देखभाल की जरूरतों को हटा भी दें, तो भी कई बातें बचती हैं। जैसे कि मनुष्य नाम के सामाजिक प्राणी को बातचीत करने के लिए तो कोई चाहिए न? वो न मिले तो अकेला बैठा मनुष्य दिन भर कुढ़ रहा होगा। फिर स्वास्थ्य कारणों से योगाभ्यास आवश्यक है और कई बार आयु बढ़ने के साथ ही फिजियोथेरेपी की आवश्यकता भी होने लगती है। स्वास्थ्य की नियमित जांच आवश्यक है। इसके अलावा आँखों और कान आदि की भी जांच होती रहे तो बेहतर होगा। अब जब संयुक्त परिवार सिकुड़ रहे हैं, दोनों पति-पत्नी नौकरीपेशा हैं, काम पर जाते हैं, तो घर में रह रहे बुजुर्गों के लिए ये सारे प्रबंध मुश्किल होने लगे हैं।
पुराने दौर में कई भाई-बहन जहाँ एक ही परिवार में, एक ही घर में रह रहे होते थे, वहाँ एक व्यस्त होता भी तो कोई दूसरा देख लेता था। विशेषकर महानगरों और बड़े शहरों में तो ये संभव नहीं रह गया है। पटना जैसे जैसे विकसित हुआ, वैसे-वैसे राजा बाजार तक सिमित रहने के बदले दानापुर की ओर फैला और अब स्थिति ये है कि यहाँ कई अपार्टमेंट हैं जिनमें रहने वाले बुजुर्ग, दिन भर कमरे में अकेले पड़े रहने के अलावा कुछ नहीं कर पाते। उनके अनुभवों का समाज को तो लाभ नहीं ही मिलता, साथ ही सरकारें भी उनके प्रति अभी तक उदासीन रवैया ही दर्शाती हैं। बुजुर्गों के लिए भी बच्चों के क्रेच की ही तरह, डे-केयर की कोई व्यवस्था हो, ये आम आदमी महसूस कर सकता है।
ऐसी ही जरूरतों को ध्यान में रखकर पटना के आरपीएस लॉ कॉलेज के पास “मायानगरी” की शुरुआत हुई है। इस “मायानगरी” में बुजुर्गों की स्वास्थ्य जांच से लेकर फिजियोथेरेपि तक की ही व्यवस्था नहीं है, बल्कि उनके लिए रोचक खेल, पुस्तकें, जिम आदि का भी प्रबंध किया गया है। रोज उन्हें “मायानगरी” तक लाने और वापस घर छोड़कर आने के लिए परिवहन सुविधा भी उपलब्ध करवाई जा रही है। दिन के पौष्टिक भोजन और बौद्धिक खेलों के माध्यम से उनका शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य दुरुस्त रहे, इसका भी पूरा ध्यान रखा गया है। “मायानगरी” की शुरुआत करने वाले दम्पति बताते हैं कि गाँव से शहर में जब उनके माता-पिता आते थे, तो वो दिन भर में अक्सर ऊब जाते थे। उनके परिचितों-पड़ोसियों की भी ऐसी ही शिकायत उन्होंने सुनी थी। इसी से उनका ध्यान इस तरह की व्यवस्था स्वयं शुरू करने पर गया।
पटना के विस्तार को देखते हुए आशा की जानी चाहिए की क्लब या लाइब्रेरी जैसी व्यवस्थाओं से लेकर बच्चों और बुजुर्गों के लिए डे केयर होम बनाने पर सरकारों का भी ध्यान जायेगा। संभव है कि ऐसे निजी प्रयास और बढ़ें, तो सरकारों की भी नींद खुले।