बेटा बेटी एक समान फिर एक समान नियम क्यों नही ?

हाइलाइट्स

आज कभी महिलाओं का जींस पेंट बंद कर देते हैं तो कभी मंदिर में ड्रेस code लागू किया जाता है बड़ा सवाल यह है की किस ग्रन्थ में लिखा है की वस्त्र क्या पहन कर भगवान् की स्तुति या वंदना करे ? चलिए मान लेते हैं लिखा भी है तो ये बता दीजिये की फिर रिक्सा वाला, ठेला वाला जो लुंगी और गंजी में काम करता है क्या वो मंदिर नही जाएगा ? क्योंकि जो नियम आप महिला पर लागू करने की बात कर रहे हैं वही तो पुरुषो पर ही लागू होना चाहिए ना ! क्योंकि बेटा बेटी एक समान. आप अपनी सभ्यता को बाधना चाहते है. या जन जन तक पहुचाना चाहते हैं.

वशुधेव कुटुम्बकम कहाँ चला गया ? कोई विदेशी महिला जींस या top में मंदिर की और जाए तो आप उसे रोकेंगे ? फिर जरा सोचिये की भगवान् बुला रहे है और आप बड़का पुजारी है ! ऐसे लोगो को पटक के मारिये. ड्रेस code मंदिर में लागू करेंगे ! मारेंगे एक मुक्का नाच के गिर जाओगे.

जो लोग सिर्फ कर्म करते हैं और बोलते नहीं वो राम के अनुसरण वाले है
जो लोग पहले बोलते हैं फिर करते हैं वो कृष्ण को मानने वाले हैं
ऐसे लोग वाचाल भी हो सकते हैं
लेकिन सयम और बोली भाषा में मर्यादित भी रहना पड़ेगा कृष्ण होना मुश्किल है क्योंकि आप ने कह दिया है मतलब आप भविष्यवाणी कर रहे हैं, की ऐसा होगा और नही हुआ तो वो समाज के लिए डिंग बन जाएगा, मगर फिर भी आप खुद को अगर जबाब दे सकते हैं तो कोई बात नही होता है जिसको जो कहना है कहते रहे आप बोलते रहिये एक दिन आप कृष्ण का अनुसरण करते करते मार्ग ढूंढ ही लेंगे. आसान मार्ग है सिर्फ करना बोलना नही, राम बन्ना आसान है मगर कृष्ण बन्ना बड़ा ही मुश्किल,
कृष्ण समाज को दिशा दिखाते वो समाज में उदाहरण प्रस्तुत करते है और राम समाज में रह कर सामजिक नियमो का निर्वहन.
समय बदला दौर बदला इसलिए राम को लगा की अब समाज में जो कुनित्या आ गई समाजिक नियम बोझ बन रहे हैं इसलिए उन्होंने कृष्ण अवतार लिया और समाज को मार्ग दिखाना शुरू किया जिससे एक खास वर्ग को बड़ी दिक्कत हुई क्योंकि कृष्ण तो जात पात और समाजिक नियम को तोड़ रहे होते है वो औरत पुरुष को समान अवसर देते हैं. समान वस्त्र और चुनने की आजादी इसी से समाज के तथाकथित लोगो को समस्या हुई और उन्होंने महाभारत पर कहना शुरू किया की महाभारत घर में रखोगे तो महाभारत होगा.
गीता जैसे दिव्य ग्रन्थ को हमने घर से बाहर उठा कर फेंक दिया. फिर हम लोग समय में पीछे रह गये. समय के साथ मनुष्य के परिवर्तन का भी समय होता है. श्रीमान Lalu Prasad Yadav जी ने भी यही समाजिक न्याय करने की कोसिस की उन्हें भी हमलोगों ने उठा कर फेक दिया.
मगर काल खण्ड में लालू जी के विचार जिवंत है. आज जात पात से समाज ऊपर उठ रहा है. औरत और पुरुष में भेद भाव खत्म हो रहा है मगर दिक्कत तो होगी पुरुष वादी समाज को.
क्योंकि एक तो वोट बैंक खत्म होगा आप विकास पर वोट करेंगे आज कभी महिलाओं का जींस पेंट बंद कर देते हैं तो कभी मंदिर में ड्रेस code लागू किया जाता है बड़ा सवाल यह है की किस ग्रन्थ में लिखा है की वस्त्र क्या पहन कर भगवान् की स्तुति या वंदना करे ? चलिए मान लेते हैं लिखा भी है तो ये बता दीजिये की फिर रिक्सा वाला, ठेला वाला जो लुंगी और गंजी में काम करता है क्या वो मंदिर नही जाएगा ? क्योंकि जो नियम आप महिला पर लागू करने की बात कर रहे हैं वही तो पुरुषो पर ही लागू होना चाहिए ना ! क्योंकि बेटा बेटी एक समान. आप अपनी सभ्यता को बाधना चाहते है. या जन जन तक पहुचाना चाहते हैं.
वशुधेव कुटुम्बकम कहाँ चला गया ? कोई विदेशी महिला जींस या top में मंदिर की और जाए तो आप उसे रोकेंगे ? फिर जरा सोचिये की भगवान् बुला रहे है और आप बड़का पुजारी है ! ऐसे लोगो को पटक के मारिये. ड्रेस code मंदिर में लागू करेंगे ! मारेंगे एक मुक्का नाच के गिर जाओगे.
बहरहाल ये तो हो गई कृष्ण के विचार. बढ़ते है आगे जो लोग सिर्फ कहते है.
आज से ये रूटीन, आज से ये सिस्टम लेकिन करते कुछ नही, काम करने वक्त उनकी नानी मरती है.
ऐसे ही लोग अकर्मी है और डिंग हाकने वाले हैं
राधे राधे

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