।।सुविचार।।
कुछ लोग को दुसरो की हालत देख कर कुंठा और ईर्षिया होती है और वो उसको नीचा दिखाने की फिराक में रहते है । अब इसमें भला आप पूछेंगे मुझसे की तेरे कन्हैया ने उसको वैसा क्यों बनाया है ?
बड़ा ही सरल जबाब है कन्हैया चाहता है कि वो उससे आगे निकले मगर अपने सोचने का तरीका बदल कर , अपने कर्म से उसको पछाड़ दे , छोटी लाइन के सामने बड़ी लाइन खींच दे ।
यहां पर ईर्ष्या का भाव जलन की भावना मनुष्य की प्रवृत्ति है सांसारिक जीवन में जी रहा हर व्यक्ति का एक दूसरे से आगे निकलना ही कंपटीशन है ।
और ये ईर्ष्या का भाव ये जलन की भावना सब उसने ही दिया है । मगर इन भावनाओं को सही डायरेक्शन देना आपको सीखना पड़ेगा सही दिशा है छोटी लाइन के सामने बड़ी लाइन खींच दीजिए मिटाने वाले एक दिन खुद ही मिट जाते हैं । फिर सुन्य के शिवा कुछ भी हांथ नही लगता ।
कुछ लोग है जिन्हे ईर्ष्या नही होती वो अलग थलग जीते है, पत्नी कह दे अरे उसको देखे है वो कितना आगे निकल गया हमारे पास कुछ भी नही है ! जबाव में पति कहता है “हमको किसी के तरक्की पर ईर्षिया नही करनी चाहिए।”
पति, पत्नी जी का भाव नही समझ पाता, उसे या तो चुप-चाप सुनना चाहिए या फिर अनसुना कर देना चाहिए मगर प्रवृत्ति में फकीरी और भीखमंगे पन की वजह से वो उपदेश देने से नही चुकता है।
ऐसे लोगो को चुकिया कहा जाता है 😁 इस श्रेणी में हम जैसे मूर्ख लोग आते हैं 😁 जो अज्ञानियो को भी ज्ञानी बनाने की कोसिस करते रहते हैं। मगर हमें पता ही नही चलता की कब हम ज्ञानी से चुकिया बन चुके हैं 😁 दिल में निश्चलता के भाव भी आते हैं क्योंकि वो व्यक्ति अपनी नजर में सही है मगर कुल मिलाकर वो चूकिया से चुतिया के स्थिति में पहुंच जाता है।
और कृष्ण इसका मजा लेते हैं 😁 कहते है “बड़ा गया था ज्ञान देने मूर्ख को चुतिया कही का 😁 यहां पर हम जैसे व्यक्ति को ध्यान पूर्वक सुन कर उसे अनसुना कर देना है और ध्यान कर्म में और विश्वास भगवान में रहकर अपने कर्म को करते जाना है ऐसे व्यक्ति का कंपटीशन किसी से भी नही है ऐसा व्यक्ति रोज खुद को बेहतर से बेहतर बनाने में लगता है।
सब कुछ ठीक है मगर उसे चूकिया होने से बचना है। अगर ऐसा करने में आप नाकाम है फिर आपको संसार को त्याग कर मोक्ष के मार्ग के लिए साधु बनना पड़ेगा 😭 और अगर आप चुप रहने में कामयाब हो जाते हैं तब सांसारिक जीवन में रहकर भी मोक्ष संभव है 😀 मतलब संभोग , भावना , प्यार, मोहब्बत सब है। मगर ईर्ष्या का भाव और जो ईर्ष्या कर रहा है उसे सुनकर चुप रहने की क्षमता ही आपके मोक्ष के मार्ग को प्रशस्त करेगी।
जो लोग ईर्ष्या वाले हैं वो अभी पहले लेवल पर है ज्ञान के, जो लोग ईर्ष्या नही करते वो दूसरे लेबल पर है और जो लोग ईर्ष्या और निंदा सुनकर साधु /संन्यासी या फिर चुप रहते है वो बस मोक्ष के द्वार पर खड़े है।
ये सबकुछ करने से नही होता ये ज्ञान आने पर ही संभव है। ये भाव है, कोई शुरू से ही किसी से ईर्ष्या का भाव नही रखता मतलब वो पिछले जन्म में लेवल 2 पर आकर शरीर का नास हो गया, फिर जन्म लिया उसने लेकिन आत्मा उसकी लेवल तय कर दी है। जब तक वो अज्ञानी है उसके मन में सवाल आएगा मैं ऐसा क्यों हु मै ऐसा क्यों हु 😁😁
जबाब है तू ऐसा था नही तू ऐसा बना है। उसे समझ में नही आयेगा क्योंकि वो पूर्व जन्म में नहीं मानता है 😁 लेकिन ज्ञान एक दिन उसको जैसे ही इसका बोध करवाएगा वो लेवल 3 पर पहुंच जाएगा।
अंतिम चरण लेवल 4 पर इसी जन्म में पहुंचना है या अगले में तय उसी मूर्ख को करना है अब चुप रहना है या फिर साधु बनना है ये इन चुकियो को तय करना पड़ेगा तभी मोक्ष संभव है।
स्वयं विचार करे राधे राधे ।।
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