जिला चिकित्सा कार्यालय ने जिले भर में स्वीमिंग पूल के उपयोग व रखरखाव के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। शनिवार को यहां जिला चिकित्सा अधिकारी द्वारा जारी एक सलाह में कहा गया है कि स्विमिंग पूल चलाने वालों और उनके उपयोगकर्ताओं को अधिकारियों द्वारा सुझाए गए रोग निवारक कदमों का सख्ती से पालन करना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में स्थिर पानी में तैराकी अभ्यास सत्र आयोजित नहीं करना चाहिए।
स्विमिंग पूल के पानी में क्लोरीन का स्तर 1 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन (पीपीएम/एमएल)) और 2 पीपीएम के बीच बनाए रखा जाना चाहिए। क्लोरीन जमाव की भी दैनिक और बैक्टीरियोलॉजिकल परीक्षा मासिक रूप से जाँच की जानी चाहिए। पानी का पीएच मान 7.2 और 7.8 के बीच बनाए रखना चाहिए। इसी तरह क्षारीयता भी 80-120 पीपीएम और कैल्शियम की कठोरता 200-400 पीपीएम होनी चाहिए। सलाहकार ने कहा कि दिशानिर्देशों में यह भी स्पष्ट किया गया है कि पानी की गुणवत्ता का परीक्षण केवल मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में किया जाना चाहिए और फिल्टर की गुणवत्ता सुनिश्चित की जानी चाहिए।
संक्रामक रोगों वाले लोगों को स्विमिंग पूल का उपयोग नहीं करना चाहिए और स्विमिंग पूल उपयोगकर्ताओं को किसी भी परिस्थिति में पूल का पानी नहीं पीने के लिए कहा जाता है। छोटे बच्चों को शौचालय का उपयोग करने के बाद ही तैराकी सत्र में भाग लेने की अनुमति दी जानी चाहिए। तैराकों को बुखार, आंख, नाक, गला या त्वचा में संक्रमण होने पर तत्काल चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए। एडवाइजरी में कहा गया है कि बीमार होने वालों को नजदीकी स्वास्थ्य कर्मियों और स्विमिंग पूल संचालकों को सूचित करना चाहिए।
बीमारी फैलने की स्थिति में स्विमिंग पूल को बंद कर देना चाहिए और 20 मिलीग्राम प्रति लीटर की दर से क्लोरीनयुक्त करना चाहिए। निस्यंदन लगातार छ: बार करना चाहिए और छन्नी में बचा हुआ पानी निकाल देना चाहिए। डीएमओ ने यह भी सुझाव दिया कि पानी के रासायनिक-भौतिक-सूक्ष्म जीव विज्ञान परीक्षण कराकर निर्धारित मानकों को सुनिश्चित करने के बाद ही पूलों को उपयोग के लिए खोला जाए।