हाँ हक़ीक़त है ये , मज़ाक जैसी लगती है,
भीड़ में भी , तन्हाईयों की महफिल सजती है,
कैसी है ये भीड़, अकेला है हर कोई,
क्या ये भीड , भीड जैसी लगती है.
भीड़ बनाई , पर अपने न बनाए,
सपने बनाये, पर अपने न बनाए,
छुपाया अपनों से , सपने बनाने के लिए,
न सपने बनाये, न ही अपने बनाए.
हाँ हक़ीक़त है ये.
खो गए भीड़ में, अकेले रह गए,
अगर अपने होते तो सफर पार हो जाता,
न तू अकेला हो पाता, न में अकेला हो पाता.
अगर हार भी जाता, तो अपनों को बताता,
कोई अपना आता और हिम्मत जगाता,
न तू अकेला हो पाता, न मैं अकेला हो पाता,
तू भी जीत जाता, मैं भी जीत जाता,
लम्बा सफर ,यूहीं पार हो जाता.