शिक्षा और अधिकारों की हिस्सेदारी में कहीं पीछे छूट गया बिहार का दलित समाज उस वक्त भी चर्चा में आया था जब दलितों के अन्दर एक महादलित वर्ग की घोषणा हुई थी। तब कहीं जा कर लोगों को पता चला था कि इतने वर्षों तक आरक्षण देने के बाद भी आज किसी स्कूल का हेडमास्टर तक डोम समाज से नहीं आता।
लेकिन ये तो बस कुव्यवस्था की एक बानगी भर थी। ऐसी कई छोटी छोटी चीज़ें हैं जो इन समुदायों को मुख्यधारा तक पहुँचने से काफी पहले रोक देती हैं। चाहे फिर वो मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा हो या शारीरिक पोषण का, शिक्षा के उनके अधिकार हों या अधिकारों के बारे में उनकी जागरूकता। हर क्षेत्र ही ऐसा है जहाँ लालफीताशाही उन्हें पीछे धकेल देती है।
ये कहानी है एक ऐसे ही परिवार की जिसके मुखिया की मृत्यु के बाद परिवार को सिर्फ कागज़ी कार्यवाही के लिए वर्षों एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर चक्कर काटना पड़ा।
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