मैं भी अछूत था | Poetry By Ankit Paurush | Used Royal free music of @KevinDcosta
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कोविड के महीने में, मैं भी अछूत था,
सगे संबंधी साथ छोड़ गए, शून्य मेरा वजूद था,
कोविद के महीने में, मैं भी अछूत था।
वो पंडित भी अछूत थे,
जो मंदिर में बैठा करते थे,
आस पड़ोस सब उनसे,
छुआ छूत करते थे।
कोविड के महीने में, मैं भी अछूत था,
गांव के एक चाचा आकार,
बड़े घमंड में हमसे बोले थे,
उनने समझा हम निपटने वाले हैं,
अपने दिल के बोल उनने खोले थे।
कोविड के महीने में, मैं भी अछूत था।
कुछ रिश्ते भी काम आए,
कुछ दिल के रिश्ते ने भरपूर साथ निभाए,
मेरी नजर में बस वो दिल महान है,
बाकी सब बईमान है।
कोविड के महीने में, मैं भी अछूत था।
जो वक्त पर साथ दे गए,
जात उनकी समान भी थी, न भी थी,
जात धर्म से बड़ी,
हृदय की आवाज महान थी।
कोविड के महीने में, मैं भी अछूत था।
मैं तो मैं , मेरा बच्चा भी अछूत हो गया,
किस जात की बात करते हो आप,
मेरा जात ही मुझसे दूर हो गया।
कोविड के महीने में, मैं भी अछूत था।
जब में गहराई से सोचता है,
मेरा गांव भी मुझे नजर नहीं आता,
जिस गांव को अपना कहता था,
वो गांव भी अजनबी सा दिखता जाता।
गांव शहर सब ढकोसले हैं,
जहां लोग तुमसे मोहब्बत करें,
वो लोग तुम्हारे अपने हैं।
कोविड के महीने में, मैं भी अछूत था।
नॉर्थ वाले मुझसे कहते,
तूने अपना शहर खो दिया,
तू साउथ इंडियन हो गया।
साउथ इंडियन मुझे कहते,
तू नॉर्थ यहां क्यूं शिफ्ट हो गया।
मुझे समझ नहीं आता,
मैं नॉर्थ हूं, या साउथ हूं,
बस इतना समझ में आता,
जो प्यार कर ले,
वो मेरा और मैं उसके साथ हूं।
कोविड के महीने में, मैं भी अछूत था।
इस पूरी कहानी से,
एक सवाल मेरे जहन में आता,
कुछ पल के लिए में अछूत बन गया,
उन पर क्या गुजरी होगी,
जो वे वजह बना दिए।
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Very nice
वाह वाह और वाह वाह बहुत खूब
Gajab bhaiya
👌👌👌🙏
Bilkul sahi..!
Waahhh mere bhai❤
Awesome 👌