कभी कभी सोचता हूं, शिक्षा क्या है,
किताबें पढ़ना, नौकरी करना, घर बनाना बस,
अगर ये है तो बस..
शिक्षा किसको कहते हैं मुझे समझ नहीं आता है,
या तो ये समझ लो, मैं समझना नहीं चाहता हूं।
वो सब मुझे अशिक्षित नजर आते हैं,
जो अहंकार, चालाकी, लोभ, लालच, स्वार्थ में लुप्त,
ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं।
प्रेम नाम तो एक शब्द बना रह गया,
पता नहीं यह कौनसा प्रेम प्रचार करते हैं,
मैं रोजाना मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा नहीं जाता हूं,
मगर मन मेरा मंदिर है, वहीं मैं ईश्वर पाता हूं।
इंसान से ज्यादा प्रेम, मुझे एक जानवर में नजर आता है,
माना वो अशिक्षित है, मगर मुझे वो शिक्षित नजर आता है।
बुद्धिमान से ज्यादा चालक नजर आते हैं,
और लोग, चालक को , बुद्धिमान समझ जाते हैं,
ये हर रोज एक नया बबंडर पैदा करते हैं,
और तो और उसको व्यापार कहते हैं।
तो क्या वो शिक्षित हुआ या अशिक्षित,
पर मुझे अशिक्षित नजर आता हैं,
स्वार्थ का रिश्ता बनाते हैं,
कहते हैं ८४ योनियों के बाद एक इंसान पैदा होता है,
क्या इसलिए ही पैदा होता है,
तेरे मेरे में लुप्त ये इंसान,
मुझे समझ नहीं आता है।
शिक्षा किसको कहते हैं मुझे समझ नहीं आता है,
क्या चालक, स्वार्थी, मतलबी आदि होना ही शिक्षा है,
तो मैं शिक्षित नहीं अशिक्षित होना चाहता हूं।
अंकित पौरुष
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