मनीष पर क्यों लगा है रा0सु0का ( NSA ) पूरा किस्सा इस लेख में पढ़े
Shubhendu Ke Comments:- लोकतांत्रिक ढांचे में सरकार की आलोचना करना, सुझाव देना, या फिर constructive critsisim करना हमारा अधिकार है to ensure democratic values .
अगर जब सरकार उसको दबाने का प्रयास करेगी या फिर हमारे बोलने पर कुछ कहने पर अंकुश लगाती है तब लोकतांत्रिक ढांचे को तानाशाही में बदलने में समय नहीं लगता ,
ये अधिकार सिर्फ भारत के नागरिक को प्राप्त हैं क्योंकि हम यह नहीं चाहते की कोई यहां पर आकर अपने देश से हमारी देश की तुलना करे और उसको बड़ा और हमको छोटा दिखाने का प्रयास करे। जिससे विवाद उत्पन हो इसलिए ये अधिकारी किसी भी दूसरे देश के व्यक्ति पर इस देश में लागू नहीं होता मतलब विदेशी नागरिक ऐसा नही कर सकते , बोलने और अपनी बातो को रखने का माध्यम : आप लिखकर बोलकर या फिर वीडियो बनाकर सोशल मीडिया के माध्यम से या फिर प्रेस के माध्यम से ।
इसे आप खुले छत पर भी माइक लगाकर कर सकते हैं मगर ऐसा कोई करता नही क्योंकि इससे लोग आपको पागल और बेवकूफ भी समझ सकते हैं और ऐसे में आपकी आवाज और शोर शराबे से तंग आकर परोसी आपको कूट भी सकते हैं ।
तो ज्यादा बेहतर होगा आप अपनी बात को लिखकर बोलकर सोशल मीडिया के माध्यम से रक्खे कोई दूसरा विकल्प हो तो उसको भी चुन सकते हैं जैसे अखबार टीवी रेडियो इत्यादि , सोशल मीडिया अभिव्यक्ति की आजादी यानी की आर्टिकल 19 को empower करने में भी एक अहम रोल अदा किया है जिसमे आप Facebook Meta , YouTube , Twitter , Instagram और भी अन्य प्लेटफार्म है मगर ये परमुख रहें है ।
Freedom of press भी इसी में आता है इसलिए आपको कम बोलने की आजादी है और उनको ज्यादा ऐसा कुछ नही है बस ज्ञान की कमी है , इसीलिए तो रिपोर्टर और जर्नलिस्ट किसी डिग्री का मोहताज नही सिटिजन जॉनलिज्म का जमाना है मगर लिखने बोलने और किसी भी बात को व्यक्त करने में हर व्यक्ति की दक्षता अलग अलग है ,
तो काम काज वही चुनिए जिसमे आपका मन लगता हो देखा देखी में अगर पत्रकार बनने की कोशिश कीजियेगा या फिर खुद को नेता माईक से बनाने की कोशिश करेंगे उस समय आपको मुस्किल का सामना करना पर सकता है , टीवी में ही देखिए किसी भी संस्थान में देखिए अगर कोई व्यक्ति खुद ही संस्थान बनता है तब या तो वो रहता है या फिर संस्था इसका क्लासिक उदहारण चलिए नही देंगे क्योंकि आप लोग उनके फैन हैं और जो किसी व्यक्ति को भगवान मान ले फिर उसके बारे में हम कुछ कहेंगे तो आपको तीत लग जाएगा इसलिए समझ जाइए बहुत सारे लोग अभी भी टीवी छोड़कर youtube पर आ गए बहत है इसमें बिहार से भी है उत्तरप्रदेश से भी है पंजाब से भी होंगे अब समझ जाइए हम नाम नही लेंगे और आप जिसका नाम कहिएगा हम ना में मुड़ी डोला देंगे बुझे तो चलिए आगे की यात्रा पर चलते हैं ।
रुकिए तनी और इसमें जोड़ देते हैं मीडिया संस्थान खोलने के लिए शुरुआत में आप उद्योग आधार का इस्तेमाल कीजिए जिसमे आपको एक कॉलम मिलेगा journalism and मीडिया और आर्ट वर्क इसको अपने उद्योग आधार में सामिल कीजिए जिससे कि आपको बैंक अकाउंट खोलने में मदद मिलेगी लेकिन इसको भी लेकर आप अभी प्रेस का कार्ड जारी नही कर सकते हैं समय के साथ पैसा आएगा अब आप प्राइवेट कम्पनी के रूप दर्ज हो जाइए लेकिन अभी भी आप प्रेस का कार्ड फिर भी जारी नही कर सकते हैं।
हां संस्थान का नाम और लंद फंद देवा नंद लिख सकते हैं। मगर प्रेस नहीं और ना ही किसी टैग या किसी भी जगह प्रेस लिखा होना चाहिए कुछ लोग लिख लेते हैं मगर लिख नहीं सकते है तब आप पूछिएगा ये कैसे लिखे तो इसके लिए भारत में दो ही माध्यम सुझाए गए है पहला जुमला के साथ सुनिए तो वो है अकबर इलाहाबादी का कलाम जब खींचो न कमानो को न ही तलवार निकालो जब तोप मुक़ाबिल हो तो अखबार निकालो।
कोई भी अखबार साप्ताहिक वीकली मंथली कुछ भी निकाल लीजिए जैसे की हम है Matti Ki Pukar से जो की एक मंथली मैगजीन जिसका RNI Number :- BIHHIN/2011/48031 है जिसको की आप भारत सरकार के समाचार पत्र पंजीकृत वेबसाइट पर भी जाकर इस नंबर को जब आप डालेंगे तब हमारी संस्था का पहचान और सर्टिफिकेट आपको देखने को मिलेगा इसी में अभी भी हम समाचार संपादक है ।
हालांकि की अभी प्रकाशन उतना नही हो पा रहा है संस्था आर्थिक चुनौतियों से जूझ रही है और संपादक Santosh Kumar ने मुझसे इस्तीफा भी नही मांगा है और समय समय पर हम लोग मुलाकात करते रहते हैं और मैगजीन को पुनः जिंदा करने की भरसक कोशिश में लगे हैं यू नो गरीब लोग गरीब अखबार very sad कोई मदद भी नही करता क्योंकि संपर्क में कोई मोटा आसामी नही है जैसे ही मिलेगा हमलोग उसको लूट कर देश सेवा में लगा देंगे है न जी लूटने से मतलब है उसको सब्जबाग दिखाकर उसके advertisement लगाकर उसकी जेब से पैसा निकालना नही तो पता नही इसका भी गलत अर्थ निकलकर कुछ लोग हमको काल कोठडी में बंद कर दे एक रजिस्टर्ड मीडिया कर्मी की आत्मा ही मर जाएगी बताइए ।
दूसरा है टीवी सूचना और प्रसारण मंत्रालय से मान्यता लेना तीसरा मेरे ख्याल से कोई विकल्प नहीं है।
तो जब भी कोई सोशल यूट्यूब का बंदा खुद को पत्रकार कहे उससे तुरत पूछ लीजिए कौन टीवी कौन अखबार उसको लगेगा की लगता है हम छोटे आर्गेनाइजेशन से है इसलिए ये लोग मुझे बेइज्जत कर रहे हैं मगर आपकी मनसा ऐसी नही थी बल्कि आपकी मानसिकता तो मेरे जैसी थी इसलिए मेरा ये पोस्ट उसको दिखा दीजिए।
अच्छा मजे की बात क्या है की इससे भी वो फर्जी पत्रकार नही होता फर्जी पत्रकार वो है जो गलत आईडी का इस्तेमाल करता है नया परिभाषा है नोट कर लीजिए फर्जी आईडी मतलब फर्जी पत्रकार आईडी नही है तब वो पत्रकार हो सकता है आर्टिकल 19 के तहत सिटीजन जर्नलिज्म का जमाना है मगर आपको तो पुलिस को डराना है इसलिए आईडी चाहिए !
आपको ट्रैफिक नियम से बचना है इसलिए आईडी चाहिए देखिए भईया पत्रकार का अब वैल्यू कम हो गया है इसलिए ऐसा काम मत कीजिएगा टार्फिक से बचने के लिए आईडी का इस्तेमाल मत कीजिए कागज पत्तर दुरुस्त कीजिए वैसे पुलिस इस मामले में लिबरल जरूर है और आपकी वय्यस्ता को देख कर थोड़ी बहुत लिबर्टी देती है और यह मानवीय आधार पर देती है आपसे सहयोग की अपेक्षा पर देती है क्योंकि आप संविधान के चौथे स्तंभ है मगर इसका मिसयूज मत कीजिए भाईजी नही तो फर्जी आईडी के चक्कर में आपको जेल में डाल देगी और फर्जी पत्रकार का ठप्पा लगा सो अलग बच के रहिएगा बुझे की नही
वीडियो ये पुराना अभी का पता बदला हुआ है जो की विजुअल में आपको दिखेगा :-
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