पिछले कई सालों से चीन आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) पर काम कर रहा है और इसके जरिए ऐसे डिवाइसेज तैयार कर रहा है जिससे कि युद्ध में सैनिकों की बजाए AI डिवाइसेज को दुश्मन के सामने खड़ा किया जाए। इनमें रोबोट और ड्रोन जैसे डिवाइसेज शामिल हैं। हाल ही में रूस और यूक्रेन के बीच हुए युद्ध में ड्रोन इस्तेमाल होने की खबरें आईं थीं। इसलिए टेक्नोलॉजी अब जंग के मैदान में नया हथियार बन चुकी है, जिसको चीन तेजी से विकसित कर रहा है और इससे अमेरिका की चिंता बढ़ गई है।
चीन की इस टेक आर्मी को टक्कर देने के लिए अमेरिका और भारत साथ आ गए हैं। अब अमेरिका भी आर्टिफिशल इंटेलिजेंस वाले डिवाइसेज बनाने में लगा है। इसी के चलते भारत और अमेरिका के बीच एक डील हुई है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका ने भारत के साथ सेमीकंडक्टर और AI डिवाइसेज में डील की है। दोनों देश मिलकर चीन की एडवांस्ड इमेजिंग टेक्नोलॉजी को मात देने की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए भारत और अमेरिका ने क्रिटिकल एंड इमेजिंग टेक्नोलॉजी की पहल की है। इससे चीन के खिलाफ टेक्नोलॉजी की लड़ाई में दोनों देशों के बीच सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर का आदान-प्रदान हो सकेगा।
चीन को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका ने भारत के साथ गठजोड़ किया है। इसके लिए वह भारतीय उपमहाद्वीप में वेस्टर्न मोबाइल फोन नेटवर्क लगाना चाह रहा है ताकि चीन की हुवावे टेक्नोलॉजी को मात दी जा सके। क्योंकि भारत में मोबाइल टेलीकॉम क्षेत्र में चीन की हुवावे टेक्नोलॉजी भी बड़ी मौजूदगी रखती है। इसके जरिए अमेरिका अपने देश में भारत से बड़ी संख्या में कम्प्यूटर चिप स्पेशलिस्ट आने की उम्मीद कर रहा है। जिसके बाद दोनों देशों को आधुनिक मिलिट्री हथियारों को बनाने में भी फायदा होगा।
बाइडन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलीवान और भारत की ओर से उनके समकक्ष अजीत डोवाल ने व्हाइट हाउस में मंगलवार को सीनियर अधिकारियों से मुलाकात करते हुए भारत-अमेरिका क्रिटिकल और इमरजिंग टेक्नोलॉजी पर गठजोड़ की शुरुआत की। अमेरिका के राष्ट्रपति चाहते हैं कि भारत का टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर पुराने ढांचे से हटकर अमेरिकी तकनीक पर नए तरीके से विकसित हो। इस गठजोड़ के जरिए दोनों देशों को दूरसंचार के साथ ही मिलिट्री में भी अत्याधुनिक हथियारों में फायदा होने की बात कही गई है।
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