उपेन्द्र तिवारी की समीक्षा
विकास कुमार झा द्वारा रचित महागाथा ‘मैकलुस्कीगंज’ दुनिया के एकलौते एंग्लो इंडियन गाँव की कथा है। यह चार भागों में विभक्त है। विकास कुमार झा की इस रचना को पढ़ते हुए आप खो जाते है कंका पहाड़ी के घने जंगलो की नीरव शांति में बसे हुए गांव मैकलुस्कीगंज में और एकाकार हो जाते है ठहरे हुए वक्त के साथ, रच बस जाते है आधुनिक दुनिया की चहल पहल से दूर शांत आदिम जीवनचर्या में।
इस उपन्यास ने एंग्लो इंडियन के ‘संतप्त सत्य’ से लेकर’ अलग झारखण्ड’ तक की कहानी को वाया हांगकांग बहुत हो रोचक तरीके से समेटा है बीच बीच में आदिवासी लोक संस्कृति के साथ साथ एंग्लो इंडियन की संस्कृति और उनके मध्य के संक्रमण को भी बहुत ही सुन्दर और प्रभावी तरीके से सामने रखा है साथ ही वर्तमान राजनीतिक सामाजिक परिदृश्य को भी सामयिक रखा गया है। यह उपन्यास एक तरह से हर भारत के गाँव की कहानी है जो लगातार पलायन का सामना कर रहा है और एक मायने में ‘घोस्ट विलेज’ बनने के लिए अभिशप्त है।
साथ ही इसका दूसरा पहलु भी विचारणीय है जिसमे हर व्यक्ति अपनी जड़ो से दूर जाकर लगातार वापसी का प्रयास करता है। यह उपन्यास कहानी सुनाता है हाशिये पर रहे एक ‘समुदाय’ की महत्वपूर्ण पहचान के शनैः शैनेः नष्ट होने की। उपन्यास में हांगकांग में बसे डेनिस मैगावन और मैक्लुस्कीगंज के उसके दोस्त टुईया गंझू और खुसिया उरांव ने कहानी के सूत्रधार का काम बखूबी किया है। मैगावन का यह कथन कि ‘ जो भी हो,इंसान चाहे बड़ी से बड़ी चीज ईजाद कर ले , लेकिन पेट भरने के लिए अनाज तो खेतो में ही होता है। मैं तो अपनी मिट्टी और जड़ो से ही कट गया’ स्पष्टत उपन्यास का मूल आधार विषय है।
टुइँया गंझू और खुसिया के बहाने लेखक ने आदिवासी सस्कृति के महुआ के मद से भरे लोकगीतों को पूरे उपन्यास में पिरोया है। उपन्यास में रोबिन और नीलमणि को कोमल प्रेम कहानी भी है लेकिन झारखण्ड के मसीहा ‘बिरसा आबा ‘की भांति ही मैकलुस्कीगंज के भले के लिए संघर्ष करते हुए रॉबिन और नीलमणि शहीद हो जाते हैं। उपन्यास दुखांत के साथ साथ भविष्य की क्रांति…उलगुलान की तरफ इंगित करते हुए समाप्त होता है “ हवा अचानक तेज हो गई है. आंधी के आसार है। माघ की दोपहरी में कंका की नुकीली छोटी पर सूरज कांसे की थाली की तरह स्याह लाल हो रहा है। उधर रक्त मेघो के दल से गोरलटका पहाड़ी घिर रही है।”
लेखक- विकास कुमार झा
प्रकाशक- राजकमल
प्रकाशन वर्ष-2010
पृष्ठ-534