दिनांक 31 जनवरी 2025 को भारत सरकार की वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारामन द्वारा लोक सभा में देश का आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 पेश किया गया। स्वतंत्र भारत का पहिला आर्थिक सर्वेक्षण वर्ष 1950-51 में बजट के साथ पेश किया गया था। 1960 के दशक में आर्थिक सर्वेक्षण को बजट से अलग कर दिया गया एवं इसे बजट के एक दिन पूर्व संसद में पेश किया जाने लगा। आर्थिक सर्वेक्षण के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था की समीक्षा की जाती है एवं अर्थव्यवस्था की सम्भावनाओं को देश के सामने लाने का प्रयास किया जाता है। इसे देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार की देखरेख में वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के आर्थिक प्रभाग की ओर से तैयार किया जाता है।
लोक सभा में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत बनी हुई है। हालांकि, वैश्विक स्तर पर कुछ देशों में चल रही आर्थिक परेशानियों के चलते भारत के आर्थिक विकास पर भी कुछ विपरीत प्रभाव पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है, परंतु, चूंकि भारत की आंतरिक अर्थव्यवस्था में मजबूती बनी हुई है अतः वित्तीय वर्ष 2025-26 में देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि 6.3 प्रतिशत से 6.8 प्रतिशत के बीच में रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। हाल ही के समय में ग्रामीण इलाकों में उत्पादों की मांग में तेजी दिखाई दी है और कृषि क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर बढ़ने की सम्भावना है क्योंकि देश में अच्छे मानसून के चलते रबी की फसल के बहुत अच्छे स्तर पर रहने की सम्भावना है और इससे खाद्य पदार्थों की महंगाई की दर भी कम होगी, जिससे नागरिकों के हाथ में अन्य उत्पादों को खरीदने के लिए धन की उपलब्धता बढ़ेगी। आज केवल खाद्य पदार्थों की महंगाई की दर कुछ अधिक मात्रा में बनी हुई हुई है अन्यथा कोर महंगाई की दर तो पूर्व में ही नियंत्रण में आ चुकी है। वित्तीय वर्ष 2025-26 के प्रथम अर्द्धवार्षिकी में समग्र महंगाई की दर भी नियंत्रण में आ जाएगी। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें घटने की सम्भावना भी व्यक्त की गई है। भारत आज अपने कच्चे तेल की कुल मांग का 87 प्रतिशत हिस्सा आयात करता है। यदि कच्चे तेल की कीमतें कम होंगी तो भारत में महंगाई भी कम होगी।
विनिर्माण के क्षेत्र में जरूर कुछ चुनौतियां बनी हुई है एवं कई प्रयास करने के बावजूद विनिर्माण क्षेत्र की सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सेदारी बढ़ नहीं पा रही है। विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित करने की क्षमता है। अतः विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए भूमि, श्रम एवं पूंजी की लागत को कम करने की आवश्यकता है। इसके लिए आर्थिक एवं वित्तीय क्षेत्र में सुधार कार्यक्रमों को गति देने की आवश्यकता है ताकि इन इकाईयों की उत्पादकता में सुधार हो सके एवं इनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं की उत्पादन लागत कम हो सके। विनिर्माण क्षेत्र में कार्य कर रही इकाईयों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाए जाने की आज महती आवश्यकता है।
सेवा क्षेत्र लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहा है एवं इस क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर अतुलनीय बनी हुई है। भारत में वर्तमान में महाकुम्भ मेला चालू है। आज प्रतिदिन एक करोड़ के आसपास श्रद्धालु गंगा स्नान करने के लिए प्रयागराज में पहुंच रहे हैं। रेल्वे द्वारा प्रतिदिन लगभग 3,000 विशेष रेलगाड़ियां चलाई जा रही हैं। उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा जारी किए गए कुछ आंकड़ों के अनुसार, महाकुम्भ मेले से उत्तरप्रदेश में 2 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त व्यवसाय एवं 25,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय उत्तरप्रदेश सरकार को होने की सम्भावना है। रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं। यह समस्त कार्य न केवल धार्मिक पर्यटन, होटल व्यवसाय, छोटे छोटे उत्पादों के निर्माण एवं बिक्री में अतुलनीय वृद्धि दर्ज करने में सहायक हो रहे हैं बल्कि इससे देश के सेवा क्षेत्र में भी विकास दर तेज हो रही है।
किसी भी देश में मध्यमवर्गीय परिवारों की संख्या जितनी अधिक होगी उस देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर अधिक रहेगी क्योंकि विभिन्न उत्पादों को खरीदने के लिए अर्थव्यवस्था में मांग तो इसी वर्ग के माध्यम से उत्पन्न होती है। अतः देश में प्रयास किए जाने चाहिए कि मध्यमवर्गीय परिवारों के हाथ में अधिक राशि उपलब्ध रहे। भारत में हालांकि समावेशी विकास हुआ है क्योंकि गरीबों की संख्या में तेजी से एवं भारी मात्रा में कमी दर्ज हुई है। परंतु, गरीबी रेखा से हाल ही में ऊपर आकर मध्यमवर्गीय परिवारों की श्रेणी शामिल हुए परिवार कहीं फिर से गरीबी रेखा के नीचे नहीं चले जायें, इस सम्बंध में भरसक प्रयास किए जाने चाहिए।
वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों में हो रही आर्थिक परेशानियों के चलते भारत निर्मित विभिन्न उत्पादों के निर्यात में उतनी वृद्धि दर्ज नहीं हो पा रही है जितनी आर्थिक विकास की दर को 8 प्रतिशत से ऊपर रखने के लिए होनी चाहिए। इससे विदेशी व्यापार घाटा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। साथ ही, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में भी कमी दृष्टिगोचर हो रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की कीमत पर भी लगातार दबाव बना हुआ है। हालांकि विदेशी निवेश में आ रही कमी को अस्थायी समस्या बताया गया है और विभिन्न देशों में स्थितियों के सुधरने एवं अमेरिका में आर्थिक नीतियों के स्थिर होने के साथ ही, भारत में विदेशी निवेश पुनः बढ़ने लगेगा।
वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर के 6.2 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। वृद्धि दर में गिरावट के मुख्य कारणों में शामिल हैं देश में लोक सभा एवं कुछ राज्यों में विधान सभा चुनाव होने के चलते आचार संहिता लागू की गई थी, इससे केंद्र सरकार एवं कुछ राज्य सरकारों को अपने पूंजीगत खर्चों को रोकना पड़ा था। नवम्बर 2024 तक केंद्र सरकार द्वारा केवल 5 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्चे किये जा सके हैं, जबकि औसतन 90,000 करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्च प्रति माह होने चाहिए थे। क्योंकि, पूंजीगत खर्चों के लिए पूरे वर्ष भर का बजट 11.11 लाख करोड़ रुपए का निर्धारित हुआ था। अब सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में केवल 9 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्च ही हो सकते हैं। विभिन्न कम्पनियों द्वारा अदा किए जाने वाले कर में भी कमी दिखाई दी है और कुछ कम्पनियों की लाभप्रदता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। जिन जिन कम्पनियों की लाभप्रदता बहुत अच्छे स्तर पर बनी हुई है, इन कम्पनियों से अपेक्षा की गई है कि केंद्र सरकार के साथ साथ वे भी अपने पूंजीगत खर्चों में वृद्धि करें ताकि देश में नई विनिर्माण इकाईयों की स्थापना हो और विभिन्न उत्पादों की आपूर्ति बढ़े, रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित हों और महंगाई पर नियंत्रण बना रहे। विशेष रूप से देश में आधारभूत ढांचे को और अधिक मजबूत करने में निजी कम्पनियों द्वारा अपनी भागीदारी बढ़ाई जानी चाहिए। भारतीय रिजर्व बैंक को ब्याज दरों में कमी करने के सम्बंध में भी अब गम्भीरता से विचार करना चाहिए ताकि विनिर्माण इकाईयों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की उत्पादन लागत कम की जा सके और वैसे भी अब मुद्रा स्फीति तो नियंत्रण में आ ही चुकी है। भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में मुद्रा बाजार में 1.5 लाख करोड़ रुपए की राशि से तरलता को बढ़ाया ही है, इससे बैकों द्वारा विभिन्न कम्पनियों, कृषकों एवं व्यापारियों को ऋण प्रदान करने में आसानी होगी।
आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद का आकार 273 लाख करोड़ रुपए का रहा है जो वर्ष 2023-24 में बढ़कर 295 लाख करोड़ रुपए का हो गया, अब वित्तीय वर्ष 20224-25 में 324 लाख करोड़ रुपए एवं वित्तीय वर्ष 2025-26 में 357 लाख करोड़ रुपए का रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। इस प्रकार सम्भव है कि भारत आगामी 2/3 वर्षों में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। इसी प्रकार बजट घाटा जो वित्तीय वर्ष 2022-23 में 6.4 प्रतिशत एवं वित्तीय वर्ष 2023-24 में 5.6 प्रतिशत का रहा था वह अब वित्तीय वर्ष 2024-25 में घटकर 4.8 प्रतिशत एवं वित्तीय वर्ष 2025-26 में 4.5 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। इस प्रकार केंद्र सरकार द्वारा देश की वित्तीय स्थिति को लगातार मजबूत बनाए रखने के प्रयास सफल रहे हैं। केंद्र सरकार के बजट में कुल आय 34.3 लाख करोड़ रुपए एवं कुल व्यय 50.3 लाख करोड़ रुपए रहने की सम्भावना है, इससे बजट घाटा 16 लाख करोड़ रुपए का रह सकता है।